सुशांत मामले में रिपब्लिक टीवी को कोर्ट की फटकार, कहा- यदि आप ही जज बन जाएंगे तो हम किसलिए हैं

बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी उन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की, जिनमें सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में टीवी चैनलों को मीडिया ट्रायल करने से रोकने का आग्रह किया गया है.

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अर्णब गोस्वामी (फोटो साभार: ट्विटर)

बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी उन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की, जिनमें सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में टीवी चैनलों को मीडिया ट्रायल करने से रोकने का आग्रह किया गया है.

अर्णब गोस्वामी (फोटो साभार: ट्विटर)
रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी. (फोटो साभार: ट्विटर)

मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीते बुधवार को रिपब्लिक टीवी से जानना चाहा कि जिस मामले की जांच चल रही है, उसके बारे में क्या दर्शकों से यह पूछा जाना कि किसे गिरफ्तार किया जाना चाहिए, खोजी पत्रकारिता है?

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में चैनल के हैशटैग ट्रेंड्स और इससे संबंधित विभिन्न खबरों के मुद्दे पर यह बात कही.

अदालत ने ट्विटर पर चले चैनल के हैशटैग ‘रिया को गिरफ्तार करो’ का उल्लेख किया. कोर्ट ने चैनल की ओर से पेश वकील मालविका त्रिवेदी से यह भी पूछा कि रिपब्लिक टीवी ने शव की तस्वीरें क्यों प्रसारित कीं और क्यों अभिनेता की मौत के मामले में हत्या या आत्महत्या की अटकलबाजी उत्पन्न की.

पीठ ने कहा, ‘शिकायत ‘हैशटैग-रिया को गिरफ्तार करो’ के बारे में है. यह आपके चैनल के समाचार का हिस्सा क्यों है.’ उन्होंने कहा, ‘जब किसी मामले की जांच चल रही है और मुद्दा यह है कि यह हत्या है या आत्महत्या है, तब एक चैनल कह रहा है कि यह हत्या है, क्या यह सब खोजी पत्रकारिता है.’

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, पीठ ने वकील मालविका त्रिवेदी से पूछा, ‘यदि आप ही जांचकर्ता, अभियोजक और न्यायाधीश बन जाएंगे, तो हमारी क्या जरूरत है? हम यहां क्यों बैठे हैं?’

कोर्ट ने आगे कहा, ‘यदि आप सच को सामने लाने में इतनी ही रुचि रखते हैं तो आपको सीआरपीसी को पढ़ना चाहिए था. कानून की अज्ञानता का बहाना नहीं चलेगा.’

अदालत ने यह टिप्पणी कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए की जिनमें आग्रह किया गया था कि प्रेस को सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में इस तरह की रिपोर्टिंग से रोका जाए. याचिकाओं में टीवी चैनलों को मामले में मीडिया ट्रायल करने से रोकने का आग्रह भी किया गया है.

याचिकाएं कई सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों, कार्यकर्ताओं और नागरिकों ने दायर की है और दावा किया है कि मामले में प्रेस और चैनल ‘मीडिया ट्रायल’ कर रहे हैं, जिससे मामले की निष्पक्ष जांच प्रभावित हो रही है.

अपनी याचिकाओं में कार्यकर्ताओं ने कहा है कि समाचार चैनलों को केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 के अनुसार, प्रोग्राम कोड का सावधानीपूर्वक पालन करने की आवश्यकता है और केंद्र को इस संबंध में निर्देश जारी करना चाहिए.

पीठ ने सभी पक्षों से यह स्पष्ट करने को कहा था कि क्या टीवी चैनलों की प्रसारण सामग्री के नियमन के लिए किसी कानूनी तंत्र की आवश्यकता है.

इस पर केंद्र सरकार ने कहा था कि वह प्रिंट और टीवी मीडिया के लिए स्व-नियमन तंत्र के पक्ष में है. वहीं, रिपब्लिक टीवी ने अदालत के सवालों के जवाब में कहा कि राजपूत की मौत के मामले में रिपोर्टिंग और फिर जांच से मामले में कई महत्वपूर्ण पहलुओं का खुलासा करने में मदद मिली.

चैनल की ओर से पेश वकील ने कहा, ‘जनता की राय सामने लाना और सरकार की आलोचना करना पत्रकारों का अधिकार है. यह आवश्यक नहीं है कि चैनलों द्वारा जो प्रसारित किया जा रहा है, हर कोई उसकी सराहना करेगा. हालांकि, यदि किसी समाचार से कोई तबका असहज महसूस करता है, तो यह लोकतंत्र का सार है.’

अदालत ने कहा कि वह मीडिया का गला घोंटने के लिए नहीं कह रही, लेकिन प्रेस को कुछ सीमा रेखा खींचनी चाहिए.

कोर्ट ने कहा, ‘हम पत्रकारिता के बुनियादी नियमों का जिक्र कर रहे हैं, जहां आत्महत्या से संबंधित रिपोर्टिंग के लिए बुनियादी शिष्टाचार का पालन करने की जरूरत है. सुर्खियों वाले शीर्षक नहीं, लगातार दोहराव नहीं. आपने यहां तक कि मृतक को भी नहीं छोड़ा, गवाहों को तो भूल जाइए.’

अदालत ने कहा, ‘आपने एक महिला को ऐसे तरीके से पेश किया जो उसके अधिकारों का उल्लंघन है. यह हमारा प्रथमदृष्टया मत है.’

एनबीएसए और इसकी भूमिका

पिछले हफ्ते की सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा था कि टीवी समाचार चैनलों द्वारा प्रसारित सामग्री को विनियमित करने के लिए न्यूज ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (एनबीएसए) जैसे निजी निकायों के दिशा-निर्देशों को सरकार द्वारा लागू क्यों नहीं किया जा सकता है.

दिनभर चली सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि केंद्र प्रिंट और टीवी मीडिया के लिए एक स्व-नियामक तंत्र के पक्ष में है.

सिंह ने कहा कि कई अवसर पर केंद्र प्राप्त शिकायतों को न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन (एनबीएफ) जैसे निजी निकायों को भेज देती है. ये प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब चैनल इसके सदस्य होते हैं.

मालूम हो कि 34 वर्षीय अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत बीते 14 जून को मुंबई के बांद्रा स्थित अपने घर में मृत पाए गए थे.

सुशांत के पिता केके सिंह ने पटना के राजीव नगर थाना में अभिनेता की प्रेमिका और लिव इन पार्टनर रहीं अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ अभिनेता को खुदकुशी के लिए उकसाने और अन्य आरोपों में शिकायत दर्ज कराई थी.

सुशांत की मौत को लेकर उठ रहे सवालों के बीच बिहार सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने मामले की जांच बीते पांच अगस्त को सीबीआई को सौंप दी थी.

इसके बाद बीते 19 अगस्त को बिहार सरकार की अनुशंसा को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया था कि वे अभिनेता की मौत के मामले की जांच करें. अदालत ने महाराष्ट्र पुलिस से मामले में सहयोग करने को कहा था.

इस मामले की जांच के दौरान ड्रग्स खरीदने और उसके इस्तेमाल का भी खुलासा होने के बाद नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने पिछले कुछ दिनों में मामले की जांच के दौरान अभिनेत्री रिया के छोटे भाई शौविक चक्रवर्ती (24), सुशांत सिंह राजपूत के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा (33) और अभिनेता के निजी स्टाफ सदस्य दीपेश सावंत को भी गिरफ्तार किया था.

आठ सितंबर को कई दिनों की पूछताछ के बाद एनसीबी ने अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती को भी अभिनेता की मौत से जुड़े ड्रग्स मामले में गिरफ्तार किया था.

रिया को बीते सात अक्टूबर को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा जमानत दी गई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)