बिहार: कोसी में बाढ़ से बचने को बनाए जा रहे तटबंध सभी रहवासियों के लिए ख़ुशी का सबब नहीं हैं

ग्राउंड रिपोर्ट: आज़ादी के बाद कोसी की बाढ़ से राहत दिलाने के नाम पर इसे दो पाटों में क़ैद किया गया था और अब लगातार बनते तटबंधों ने नदी को कई पाटों में बंद कर दिया है. इस बीच सुपौल, सहरसा, मधुबनी ज़िलों के नदी के कटान में आने वाले गांव तटबंध के लाभार्थी और तटबंध के पीड़ितों की श्रेणी में बंट चुके हैं.

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कोसी की कटान रोकने के लिए लगाए गए पॉर्क्यूपाइन. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

ग्राउंड रिपोर्ट: आज़ादी के बाद कोसी की बाढ़ से राहत दिलाने के नाम पर इसे दो पाटों में क़ैद किया गया था और अब लगातार बनते तटबंधों ने नदी को कई पाटों में बंद कर दिया है. इस बीच सुपौल, सहरसा, मधुबनी ज़िलों के नदी के कटान में आने वाले गांव तटबंध के लाभार्थी और तटबंध के पीड़ितों की श्रेणी में बंट चुके हैं.

कोसी की कटान रोकने के लिए लगाए गए पॉर्क्यूपाइन. (सभी फोटो: मनोज सिंह)
कोसी की कटान रोकने के लिए लगाए गए पॉर्क्यूपाइन. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा के 15 दिन पहले 10 सितंबर को जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा ने मधुबनी जिले के बैद्यनाथपुर में विस्तारित सिकरहट्टा-मझारी निम्न तटबंध को परसौनी से महिषा तक 4.60 किलोमीटर और आगे बनाने के कार्य का शिलान्यास किया.

उन्होंने फेसबुक और ट्विटर पर लिखा कि ‘इस तटबंध के बनने से क्षेत्र की बड़ी आबादी को अगले साल बाढ़ से राहत मिलेगी. यहां गर्मी के बावजूद क्षेत्रवासियों का उत्साह चरम पर था.’

इसी दिन उन्होंने भतुही बलान नदी के बाए तटबंध को रामनगर ग्राम से घोघरडीहा निर्मली लिंक रोड तक विस्तारित करने के कार्य का शिलान्यास किया. यह तटबंध 25वें किलोमीटर से 6.61 किलोमीटर तक बढ़ाया जाएगा.

जल संसाधन मंत्री ने बताया कि इस कार्य से 56 गांवों की बड़ी आबादी को बाढ़ राहत से राहत मिलेगी. इन दोनों स्थानों पर कोसी और उसकी सहायक नदियों पर बने तटबंधों की लंबाई में अब 10 किलोमीटर का और इजाफा हो जाएगा.

जल संसधान मंत्री ने जिस स्थान पर शिलान्यास किया है, उससे कुछ दिन पहले ही सात गरीब परिवारों के घर कोसी नदी की धारा में कट गए.

ये घर विस्तारित सिकरहट्टा-मंझारी लो तटबंध के बसूबट्टी गांव के शैलेशपुर चौक के पास हैं. ये घर तटबंध के अंदर नदी किनारे है.

तटबंध के विस्तारीकरण से कुछ गांवों को बाढ़ से जरूर राहत मिलेगी, लेकिन तटबंध के अंदर स्थित गांवों की हालत और खराब होती जाएगी.

शैलेशपुर चौक पर मिले पूरन शर्मा, जंगल शर्मा, सुरेश शर्मा और विजय पासवान बताते हैं कि उनका पूरा घर नदी में समा गया है. अब वे विस्थापित होकर दूसरों के घर में रह रहे हैं.

वे बताते हैं, ‘तूफान की तरह पानी आया था. उस समय मदद करने वाला कोई नहीं था. जब तटबंध के विस्तारीकरण का कार्य हो रहा था तब हम लोग मंत्री और विधायक जी से मिले और कहा कि चलकर देखिए कि हम लोगों की क्या हालत है. वे आश्वासन देकर चले गए. इन कटान पीड़ितों को सरकार की छह हजार की सहायता राशि भी नहीं मिली है.’

इसी गांव के महेश चौपाल कहते हैं, ‘वोट के समय ही नेता आता है. तीन साल से से छह हजारिया हमरे गांव में नहीं चल रहा है.’

कटान प्रभावित लोगों का कहना है कि तटबंध के विस्तारीकरण से उनको बाढ़-कटान से राहत नहीं मिलेगी. बसूबट्टी गांव के पास स्थित बेला गांव के रहने वाले भागवत कहते हैं, ‘तटबंध बनने से किसी को फायदा होगा, तो कुछ को नहीं होगा. नदी के कटान से प्रभावित लोगों को कुछ फायदा नहीं होगा. बल्कि उनकी हालत और खराब होगी.’

इंद्रजीत कहते हैं कि विस्तारित तटबंध से गांव के पश्चिम बसे गांवों को फायदा होगा. नया बना स्कूल भी नदी की कटान से बचेगा.

मधुबनी जिले के ही मधेपुर प्रखंड के गड़गांव ग्राम पंचायत का मैनाही गांव इस वर्ष कोसी की बाढ़ और कटान में पूरी तरह खत्म हो गया.

बाढ़-कटान से विस्थापित होने के बाद यहां के 400 परिवार अब पास के एक जंगल में अपने लिए आश्रय ढूंढ रहे हैं. ये गांव मधुबनी जिले के फूलपरास विधानसभा क्षेत्र में आते हैं.

कोसी नदी क्षेत्र में सुपौल, सहरसा, मधुबनी और दरभंगा जिले के आधा दर्जन से अधिक विधानसभा क्षेत्र आते हैं और बाढ़-कटान, राहत कार्य, तटबंध और तटबंधों के सुरक्षा कार्य इन विधानसभा क्षेत्रों की राजनीति को प्रभावित करते हैं.

नया बनने वाला तटबंध 2009 में बने 21 किलोमीटर विस्तारित सिकरहट्टा-मझारी निम्न तटबंध को और अधिक विस्तारित करेगा.

वर्ष 1976 में 18 किलोमीटर लंबा सिकरहट्टा मझारी निम्न तटबंध रसुआर गांव तक बना था. इसके आगे के गांव-महुआ, सखुआ, कदमाहा, डुमरिया, कटैया, सिसौनी, बड़हारा, कोनी, पंचगछिया, तुलसियाही, घोघरिया, मरकियाही, गिदराही, मंगासिहोल आदि सुपौल जिला के मरौना प्रखंड में आते हैं.

तटबंध बनने से ये सभी ग्राम पंचायत कोसी नदी की बाढ़ से सुरक्षित तो हुए लेकिन इन ग्राम पंचायतों के जो गांव तटबंध के अंदर रह गए उनको बाढ़ और कटान से ज्यादा नुकसान होने लगा.

जब विस्तारित सिकरहट्टा-मझारी तटबंध बना तो इससे सुरक्षित होने वाले गांवों ने इसका खूब स्वागत किया, जबकि तटबंध के अंदर रह जाने वाले गांवों में मायूसी थी.

तटबंध के अंदर आने गांव के लोग भली-भांति समझ रहे थे कि इससे उनके गांव में बाढ़ और कटान की समस्या और गंभीर हो जाएगी.

उस वक्त बेला गांव के वार्ड नंबर एक के निवासी कार्तिक कामत ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर इस बारे में आवाज उठाई थी. उनके पत्र पर आयोग ने रिपोर्ट मांगी थी.

जवाब में भू-अर्जन एवं पुनर्वास विभाग की ओर से कहा गया कि ‘नदी को एक सुरक्षित पैसेज देते हुए बहुमूल्य जमीन, आबादी, पशुधन, फसल, गांव को सुरक्षित रखना, नदी के कोर्स परिवर्तन की प्रवृत्ति पर नियंत्रण रखना, कोर्स परिवर्तन के चलते नदी की अपरिभाषित कोर्स को परिभाषित के रूप में परिवर्तित करना, इलाके के लोगों को आवागमन की सुविधा प्रदान करना और आकस्मिक बाढ़ से संभावित क्षति पर नियंत्रण रखना किसी भी तटबंध बनाने से लाभ होते हैं. इस तटबंध के सुपौल के मरौना प्रखंड के 13 ग्राम पंचायतों को लाभ मिलेगा.’

विस्तारित सिकरहट्टा-मझारी निम्न तटबंध को बनवाने में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. परिसीमन के बाद तटबंध से सुरक्षित होने वाले ग्राम पंचायत उनकी विधानसभा क्षेत्र सुपौल में आ गए.

यादव को इसका काफी सियासी फायदा हुआ और इस क्षेत्र के लोग उन्हें नायक के रूप में देखने लगे.  यादव लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं और उनकी जीत में यह तटबंध निर्माण महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है.

आज जब इस तटबंध को विस्तारित किया जा रहा है, तो इसी तरह के लाभ गिनाए जा रहे हैं.

कार्तिक कामत कहते हैं, ‘तटबंध बनने से तटबंध के पूर्व के गांवों को पहले लाभ मिला लेकिन अब वे जलजमाव का शिकार हो रहे हैं. तटबंध के अंदर आए मेरे गांव सहित दूसरे गांव अब कोसी की कटान से जूझ रहे हैं. कोसी की धारा अब गांव के काफी पास आ गई है. कई स्थानों पर नदी कटान करते हुए इस तटबंध के काफी करीब तक पहुंच गई है.’

वे आगे बताते हैं, ‘तटबंध को सुरक्षित करने के लिए जल संसाधन विभाग को सुरक्षात्मक कार्यों में काफी धन खर्च करना पड़ रहा है.

सुरक्षा तटबंध की राजनीति

मूल कोसी प्रोजेक्ट पर कोसी नदी पर पूर्वी और पश्चिमी तटबंध बनाने की ही बात थी, लेकिन इसके बाद भी तटबंध विस्तार का काम चलता रहा.

वरिष्ठ इंजीनियर और लेखक दिनेश कुमार मिश्र ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘दुई पाटन के बीच में’ इस बारे में विस्तार से जिक्र किया है कि कैसे दोनों तटबंधों के भीतर अप्रोच, सुरक्षा तटबंध, रिंग बांध बनाए गए.

पूर्वी कोसी तटबंध के 10 से 19 किलोमीटर के बीच भटनिया अप्रोच बांध का निर्माण 1962 में सुपौल जिले के बसंतपुर प्रखंड के छतौनी, लक्ष्मीपुर, लालमनपट्टी, टेढी बाजार, परसाही, भटनिया नरपतपट्टी, रूपौली आदि गांव को बाढ़ से सुरक्षा दिलाने के मकसद से किया गया.

सुपौल जिले के व्यापारिक कस्बे निर्मली को सुरक्षित करने के लिए पश्चिमी कोसी तटबंध के साथ-साथ निर्मली के चारों तरफ रिंग बांध का निर्माण किया गया. महादेव मठ को कोसी की बाढ़ से सुरक्षित करने के लिए रिंग बांध बनाया गया.

वर्ष 2012 में सुपौल जिले में निर्मली और सरायगढ़ गांव के कोसी नदी की मुख्यधारा पर चार लेन वाला कोसी महासेतु बना.

सड़क और महासेतु की सुरक्षा के लिए महासेतु के पश्चिमी दिशा में दीघिया चौक तक 10.657 किलोमीटर और महासेतु की पूर्वी दिशा में भपटियाही तक 10.408 किलोमीटर गाइड तटबंध बनाया गया.

इसके बनने से कोसी क्षेत्र के कुछ गांव और उनके खेत बाढ़ व कटान से मुक्त हुए लेकिन कटान-बाढ़ के नए क्षेत्रों का निर्माण भी हुआ.

सुपौल के सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर बताते हैं, ‘कोसी महासेतु के पूरब और पश्चिमी दिशा में बने गाइड तटबंध के प्रभाव से महासेतु के उत्तर (कोसी बराज की ओर) लगभग 60 गांव के लोग प्रत्येक वर्ष बाढ़, कटाव की भयंकर पीड़ा झेलते हैं. महासेतु से दक्षिण के 25 से ज्यादा गांवों में बाढ़ से होने वाला नुकसान बढ़ता जा रहा है. पूर्वी गाइड तटबंध से सड़क के बीच 500 से ज्यादा परिवार प्रत्येक वर्ष बड़े स्तर पर जल जमाव की समस्या से परेशान रहते हैं.’

कोसी क्षेत्र में तटबंध निर्माण बना लोकप्रिय मांग

कोसी और उसकी सहायक नदियों पर बने तटबंधों व लिंक रोड की लंबाई अब 706.85 किलोमीटर हो चुकी है. इसके अलावा 51.20 किलोमीटर लंबाई में 6 जमींदारी बांध भी बने हैं.

इन तटबंधों के निर्माण के जरिए राजनेताओं ने अपने-अपने वोट बैंक और राजनीतिक हित को साधने की कोशिश की. यह सिलसिला आज भी जारी है. हाल में दो तटबंधों के विस्तार को लोग इसी नजरिये से देख रहे हैं.

भागवत कहते हैं कि तटबंधों का निर्माण लोगों के फायदे के लिए कम राजनीतिक फायदे के लिए अधिक हो रहा है.

सुरक्षा तटबंधों को बनता देख अब तटबंधों के भीतर रहने वाले लोग अपने-अपने गांवों को सुरक्षित करने के लिए तटबंध बनाने की मांग करने लगे हैं. तटबंध निर्माण कोसी क्षेत्र में अब एक लोकप्रिय मांग हो गई है.

सरकार-प्रशासन द्वारा इन मांगों की अनदेखी पर ग्रामीण सामूहिक सहयोग से सुरक्षा तटबंध बनाने लगे हैं. साल 2019 में सुपौल जिले के किशुनपुर प्रखंड के नौआबाखर के पास ग्रामीणों और जन प्रतिनिधियों ने 10 लाख रुपये खर्च कर महासेतु के गाइड बांध से सटे करीब 800 मीटर का सुरक्षा तटबंध बना लिया.

इस बांध को बनाने के लिए ग्रामीणों ने चंदा एकत्र किया और श्रमदान किया. यह बांध अप्रैल 2019 महीने में बनना शुरू हुआ था और जून के तीसरे सप्ताह तक तैयार हो गया.

शुरू में प्रशासन या कोसी प्रोजेक्ट के अभियंताओं ने इस पर कोई आपत्ति नहीं की लेकिन जब यह बन गया, तो उन्होंने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह तटबंध तकनीकी रूप से ठीक नहीं है और इसके टूटने से पूर्वी तटबंध के अंदर बसे गांवों में बड़ी तबाही होगी. इसके बनने से पश्चिमी तटबंध पर दबाव बनेगा.

इस तटबंध को लेकर प्रशासन और ग्रामीण आमने-सामने आ गए थे. प्रशासन चाहता था कि ग्रामीण इसे खुद तोड़ दें लेकिन वे तैयार नहीं हुए. सितंबर 2019 में आई बाढ़ में यह तटबंध खुद टूट गया हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन ने तटबंध कटवा दिया.

पिछले वर्ष नौआबाखर सुरक्षा बांध की तरह परसामाधो में भी ग्रामीणों ने करीब पांच किलोमीटर लंबा सुरक्षा बांध बना डाला. सुरक्षा तटबंध के निर्माण में बकायदा जेसीबी मशीन लगाई गई है.

इस गांव के लोगों ने लोकसभा चुनाव के दौरान तटबंध के निर्माण की मांग को जोरशोर से उठाया था और बांध न बनने पर मतदान बहिष्कार का आह्वान किया था.

ग्रामीणों का कहना है कि इस बांध के बनने से परसा माधोपुर, बरोहा, परसा, एकडेरा, सम्पतहा, सरायगढ़, बुरजा, सोनबरसा, बेंजा, कानुपर, डुमरिया आदि गांव बाढ़ से सुरक्षित होंगे.

इस बांध को बनवाने में इन गांवों के लोगों ने करीब चार लाख रुपये खर्च किए. गांववालों का कहना था कि इस तटबंध के बनने से दो हजार एकड़ भूमि सुरक्षित हो रही है, अब इस भूमि पर खेती भी हो सकेगी.

कोसी क्षेत्र में खेती.
कोसी क्षेत्र में खेती.

सुपौल जिले के पिपरा विधानसभा क्षेत्र के विधायक यदुवंश कुमार यादव ने जिला पदाधिकारी को पत्र लिखकर ग्रामीणों द्वारा बनाए गए सुरक्षा बांध के रखरखाव व देखरेख की मांग भी की थी.

उन्होंने लिखा था, ‘परसा माधोपुर और बौराहा पंचायत की जनता द्वारा पांच किमी सुरक्षा बांध जन सहयोग से बनाया गया है. बरसात के समय ग्रामीणों के बूते सुरक्षा देना संभव नहीं है. इसलिए प्रशासन स्थल की जांच कर अपने स्तर से बांध की सुरक्षा दी जाए. इस बांध से परसा माधोपुर पूर्णतः, बौराहा पंचायत आंशिक, सरायगढ़ प्रखंड के सनपतहा गांव को लाभ मिल सकता है. यदि सरकारी स्तर से सुरक्षा नहीं दी जाएगी तो बरसात के समय बांध टूट कर बह सकता है.’

13 जुलाई की रात कोसी नदी में 3,71,110 क्यूसेक डिस्चार्ज आने पर यह सुरक्षा बांध कट गया.

सिकरहट्टा मझारी निम्न तटबंध के निर्माण और उसके विस्तारीकरण ने पूर्वी और पश्चिमी कोसी तटबंध के अंदर सुरक्षा तटबंध बनाने की मांग को काफी प्रोत्साहित किया है. इस सुरक्षा तटबंधों के दूरगामी प्रभावों की चिंता किए बगैर लोग इसके समर्थन में आने लगे हैं.

सियासी महात्वाकांक्षा रखने वाले लोग इस मांग को बढ़ावा दे रहे हैं और कह रहे हैं कि महसेतु की लंबाई में पूरे कोसी नदी को सवा किलोमीटर की परिधि में सीमित कर देना चाहिए. इससे दर्जनों गांव और हजारों एकड़ भूमि बाढ़ से सुरक्षित होगी. लोग अपने खेतों में खेती करने लगेंगे और पलायन रुकेगा.

तमाम लोग तो महासेतु के बाद कोसी नदी को एक नहर के रूप में गंगा से मिलने तक बांधने की हिमायत भी कर रहे हैं, हालांकि उनके पास इसके सिल्टेशन से नदी तल के बहुत अधिक ऊंचे हो जाने के खतरे के समाधान का कोई जवाब नहीं है.

देश की आजादी के बाद कोसी की बाढ़ से लोगों को राहत दिलाने के नाम पर कोसी को दो पाटों में कैद किया गया, लेकिन लगातार बनते तटबंधों ने अब कोसी को कई पाटों (तटबंधों) में बंद कर दिया है.

कोसी क्षेत्र में अब गांवों की स्थिति तटबंध के अंदर और तटबंध के बाहर से परिभाषित होती है. लोग तटबंध के लाभार्थी और तटबंध के पीड़ित में बंट गए हैं.

सुपौल, सहरसा, मधुबनी जिले के दर्जनों ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जिनके आधे गांव तटबंध के अंदर हैं तो आधे तटबंध के बाहर.

तटबंध के बाहर के गांवों में सड़क-नाली, पुल-पुलिया, बिजली, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाओं से संपन्न हैं तो तटबंध के अंदर कोसी की कई धाराओं के साथ रहने वाले गांव हर साल बाढ़ और कटान से विस्थापित होने को मजबूर हैं.

इन गांवों में बाढ़ और कटान के नाम पर सरकार विकास कार्यों को भी नहीं कराती है.

कोसी नवनिर्माण मंच के अध्यक्ष महेंद्र यादव का कहना है, ‘आज की तारीख में तटबंधों के अंदर फंसे गांवों की स्थिति आर्थिक-सामाजिक रूप बहुत कमजोर हो गई है. परिसीमन ने इन गांवों को कई विधानसभा क्षेत्रों में बांट दिया है. इससे उनकी आवाज राजनीतिक रूप से भी कमजोर हुई है. अब वे किसी भी विधानसभा में जीत-हार को निर्णायक रूप में प्रभावित करने की क्षमता में नहीं रह गए हैं. यही कारण है कि चुनाव लड़ने वाले नेता अब उनकी ज्यादा परवाह नहीं करते.’

तटबंधों, सड़क, पुल-पुलियों के जरिये कोसी नदी की लगातार हो रही जैकेटिंग ने इसको अपनी धारा का रुख में बार-बार बदलाव करने पर मजबूर किया है.

कोसी नदी का अपनी सहायक नदियों से प्राकृतिक रूप से मिलने की प्रक्रिया में भी बाधा आई है. नदी की इकोलॉजी बुरी तरह प्रभावित हुई है लेकिन इसकी चिंता नदी विशेषज्ञों और भागवत जैसे ग्रामीणों के अलावा अब बहुत कम लोगों को रह गई है.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)