‘नेता पुल बनवा देंगे कहकर वोट ले जाते हैं और हम वहीं के वहीं रह जाते हैं’

ग्राउंड रिपोर्ट: यूपी-बिहार सीमा पर पश्चिम चंपारण के वाल्मीकिनगर विधानसभा क्षेत्र के गंडक नदी के किनारे बसे आखिरी धूमनगर गांव के कुछ टोले केवल नावों के सहारे जुड़े हैं. ग्रामीणों का कहना है कि लंबे समय से पुल बनाने की मांग उठने के बावजूद प्रशासन की तरफ से कोई सुनवाई नहीं है.

//
गंडक नदी के किनारे नाव का इंतजार करते धूमनगर गांव के लोग. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

ग्राउंड रिपोर्ट: यूपी-बिहार सीमा पर पश्चिम चंपारण के वाल्मीकिनगर विधानसभा क्षेत्र के गंडक नदी के किनारे बसे आखिरी धूमनगर गांव के कुछ टोले केवल नावों के सहारे जुड़े हैं. ग्रामीणों का कहना है कि लंबे समय से पुल बनाने की मांग उठने के बावजूद प्रशासन की तरफ से कोई सुनवाई नहीं है.

गंडक नदी के किनारे नाव का इंतजार करते धूमनगर गांव के लोग. (सभी फोटो: मनोज सिंह)
गंडक नदी के किनारे नाव का इंतजार करते धूमनगर गांव के लोग. (सभी फोटो: मनोज सिंह)

पश्चिम चंपारण के ठकराहा प्रखंड के धूमनगर गांव के भरपटिया टोले के पास दो दर्जन लोग गंडक नदी के किनारे नाव का इंतजार कर रहे हैं. शाम का गहराने लगी है.

एक छोटी नाव अभी कुछ देर पहले छह-सात लोगों को लेकर निकली है. ग्रामीण नविक से जल्दी लौटने का आग्रह करते हैं ताकि सूरज डूबने के पहले अपने गांव तक पहुंच जाएं. घाट पर दो और नावें हैं, जो मछुआरे मछली पकड़ने के लिए उपयोग करते हैं.

घाट पर खड़े लोगों के घर गंडक नदी के पूरब में दो किलोमीटर दूर हैं. ये सभी लोग नदी पार कर बिहार-यूपी बॉर्डर पर बाजार करने आए थे.

धूमनगर के हदीस अंसारी कहते हैं, ‘हम लोगों के लिए रोज की यह कहानी है. नाव कम है. इस पार से उस पार जाने में आधे घंटे से अधिक लगते हैं. जब तक नाव वापस लौटकर नहीं आती हमें यहां बैठकर इंतजार करना होगा. हम लोगों ने अधिक संख्या में नाव इसलिए नहीं रखी है कि यहां से कुछ दूर दूसरे घाट पर 15 अक्टूबर से पीपा का पुल लगना था, लेकिन अभी तक वो नहीं लगा है इसलिए अपने गांव जाने का एकमात्र सहारा नाव ही है.’

यह गांव उत्तर प्रदेश और बिहार की सीमा पर है. यह पश्चिम चंपारण के वाल्मीकिनगर विधानसभा क्षेत्र का आखिरी गांव है. धूमनगर ग्राम पंचायत में चार गांव- भरपटिया, धूमनगर, खरखूंटा और कुसहां हैं.

धूमनगर, खरखूंटा और कुसहां नदी पार पूरब हैं जबकि एक टोला भरपटिया नदी के इस पार तटबंध के किनारे है. गंडक नदी के पश्चिम ठकरहा से धनहा तक उत्तर दिशा में एक तटबंध बना है तो दक्षिण-पूर्व दिशा में भी एक तटबंध है.

तटबंध से सटे भरपटिया गांव में सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक 60 परिवार रहते हैं, हालांकि बहुत कम घर यहां दिख रहे हैं.

राजभर जाति के लोगों की अधिकता के कारण इस टोले का नाम भरपटिया पड़ा लेकिन लगातार बाढ़ और कटान के कारण लोग यहां से विस्थापित होते जा रहे हैं. कई लोगों ने उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के बरवा पट्टी थाना क्षेत्र के रामपुर बरहन गांव में घर बना लिया है.

भरपटिया में उच्चतर माध्यमिक स्कूल है. तटबंध से करीब 100 मीटर तक सीमेंट ईंट का खड़ंजा बिछा है. चुनाव की घोषणा के एक महीने पहले भरपटिया में 28 अगस्त को मुख्यमंत्री ग्रामीण पेयजल निश्चय योजना के तहत जलापूर्ति शुरू हुई है.

जलापूर्ति होने से कांति देवी जैसी महिलाओं को काफी राहत हुई है. उनके घर के पास पानी की टोंटी लगी है और वह बाल्टी में पानी भर रही हैं.

वे कहती हैं कि अब चापाकल से पानी भरने की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन उनके घर से बमुश्किल 600 मीटर दूर विधवा रमावती के घर के पास न चापाकल है न जलापूर्ति का पाइप.वे कहती हैं, ‘इहां एक ठो चापाकल लग जाइत तो स्कूल से पानी भर के नाहीं लावे के पड़त.’

जलापूर्ति के संचालन की जिम्मेदारी गांव के ही एक शख्स बिहारी यादव को मिली है. वे बताते हैं, ‘इस काम के लिए एक हजार रुपये देने की बात कही गई है. अभी तक एक भी महीना का पैसा मिला नहीं है.’

कांति देवी के घर के पास स्थित सामुदायिक शौचालय बेहद खराब हालत में है. इसका कोई उपयोग नहीं करता है. कांति देवी बताती हैं, ‘दस-बारह वर्ष पहले बना था. बाढ़ का पानी यहां तक आ गया था, तो सीट धंस गया. तबसे यह इसी हालत में है.’

गंडक नदी और इस गांव के बीच सिवान में कुछ जगह गन्ने की फसल दिखती है. धान की फसल कहीं नहीं दिख रही है.

बिहारी यादव कहते हैं, ‘जो भी खाली प्लाट देख रहे हैं, वहां धान की फसल थी, इस बार एक दाना अनाज नहीं मिला है.’

नदी उस पर 200 से अधिक परिवार रहते हैं. नदी पार और इस पार के चारों गांवों में कुल 582 मतदाता हैं.

साल 1979 में बाढ़ और कटान के कारण धूमनगर ग्राम पंचायत के तीनों गांव-धूमनगर, खरखूंटा और कुसहां खत्म हो गए. गांव में नदी की धारा बहने लगी. यहां के लोग विस्थपित हो गए.

विस्थापित परिवार भरपटिया, ठकरहा सहित यहां से 20 से 25 किलोमीटर की दूरी यूपी में बस गए, जिनको कहीं ठौर नहीं मिला वे नदी के दियारे में ही रहने लगे.

विस्थापित परिवारों को पुनर्वास नहीं मिला. तमाम लोगों ने यूपी और बिहार के हिस्से में जमीन खरीदी. आजीविका का कोई और प्रबंध न होने के कारण इन लोगों ने नदी उस पार अपने खेतों को एक बार फिर बड़ी मेहनत से तैयार किया और खेती करने लगे.

यहां के किसान मुख्यतः धान, गेहूं, गन्ने की खेती करते हैं. यूपी के रामपुर बरहन व दूसरे गांवों में बस गए लोग बाढ़ के समय यहां आ जाते हैं. बाकी समय वे नदी पार अपने गांवों में रहकर खेती करते हैं.

आने-जाने का साधन नाव है. पानी कम होने पर पीपा का पुल (लोहे से बना अस्थायी पुल) बन जाता है, तो उन्हें आने-जाने में आसानी हो जाती है.

भरपटिया से कुछ ही दूर यूपी के रामपुर बरहन गांव में रह रहे 76 वर्षीय हरिहर यादव बताते हैं कि उन्होंने 80 के दशक में एक हजार रुपये कट्ठा जमीन खरीदकर घर बनवा लिया. खेत भरपटिया और नदी के उस पार धूमनगर में हैं.

यही कहानी रामाशंकर साह की भी है. वे भी रामपुर बरहन में रहते हैं और खेती के लिए यहां आते हैं.

इस बार की बाढ़ में इस गांव के नदी इस पार और नदी उस पार दोनों तरफ की धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है. जो कुछ बचा उसमें रोग लग गया.

इससे किसानों को भारी नुकसान हुआ है लेकिन उन्हें न तो बिहार राज्य फसल सहायता योजना का लाभ मिला है न बाढ़ राहत के छह हजार रुपये मिले हैं.

भरपटिया टोला.
भरपटिया टोला.

साल 2017 में बाढ़ प्रभावितों को छह हजार की सहायता राशि मिली थी. किसानों का कहना है कि इस बार की बाढ़ से नुकसान ज्यादा हुआ है लेकिन सरकार ने अभी तक सहायता राशि नहीं भेजी है.

सादिक अंसारी की छह बीघा धान की फसल खराब हो गई है. हरिहर यादव की 3 बीघा और अशोक यादव की 12 बीघा धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई.

अशोक यादव कहते हैं कि गांव का कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है जिसकी धान की फसल खराब नहीं हुई है. गांव के कुछ लोगों ने गन्ना लगा रखा है. बाढ़ ने गन्ने की फसल को भी नुकसान पहुंचाया है.

हरिहर यादव कहते हैं कि गन्ने की फसल चौथाई ही बची है. इस गांव के गन्ने की खरीद के लिए कोई चीनी मिल निर्धारित नहीं किया गया है. इससे गन्ना किसान अपने गन्ने को ठकरहा या यूपी के क्रशर पर बेचने को मजबूर होते हैं.

पहले उनका गन्ना खरीदने के लिए गोपालगंज जिले की हरखुआ चीनी मिल का कांटा लगता था, लेकिन अब कोई भी चीनी मिल अपना सेंटर इस इलाके में स्थापित नहीं करती है.

यूपी की चीनी मिलें भी उनका गन्ना नहीं खरीदती हैं इसलिए उन्हें गन्ने को अधिकतम 200 रुपये क्विंटल के दाम पर क्रशर या बिचैलियों को बेचना पड़ता है.

जून के आखिरी सप्ताह से लेकर सितंबर तक इस गांव में कई बार बाढ़ आई. एक बार बाढ़ का पानी 15 से 20 दिन तक रुका रहा.

इसी गांव के निवासी और पत्रकार धीरज श्रीवास्तव ने बताया कि हर वर्ष धूमनगर और श्रीनगर पंचायत क्षेत्र की 100 फीसदी और मोतीपुर की 40 फीसदी धान व खरीफ की फसल बाढ़ से तबाह हो जाती है.

पुल की मांग

गांव के लोगों की प्रमुख मांग ठकराहा से पटिजरवा को जोड़ते हुए पक्का पुल बनाने की है. यह पुल बनने से न सिर्फ धूमनगर पंचायत बल्कि कई और पंचायतें जिला मुख्यालय से सीधे जुड़ जाएंगे.

उन्हें खेती करने और अपनी फसल को निकट के बाजार में पहुंचाने में आसानी होगी. यहां के लोग चाहते हैं कि जब तक पक्का पुल नहीं बन जाता है, पीपा पुल को लगा दिया जाए और इसे कम से कम जून महीने तक लगा रहने दिया जाए जिससे लोगों को आने-जाने में आसानी हो.

इस अस्थायी पुल को 15 अक्टूबर तक लगा दिया जाना था, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है.

गांव वालों की शिकायत है कि प्रशासन दो से तीन महीने में ही पीपा पुल हटवा लेता है, इस कारण वे गेहूं की फसल काटने के बावजूद बाजार तक नहीं ले जा पाते हैं.

गांव के लोग इस बात से निराश और क्षुब्ध हैं कि उनकी मांग न तो अफसर सुन रहे हैं न नेता. विषम भौगोलिक परिस्थिति के कारण उन्हें अलगा दिया गया है.

गंडक नदी.
गंडक नदी.

राजकुमार गुप्ता कहते हैं, ‘हम लोगों ने कई बार आवाज उठाई, लेकिन कोई सुनता ही नहीं. चुनाव के समय विधायक, एमपी और उम्मीदवार आते हैं. कोई कहता है कि विधानसभा में चर्चा किए थे. कभी कहते है कि क्या करें हमारी सरकार नहीं थी इस बार. इस बार वोट दीजिए, पुल बनवा देंगे. हर बार यही कहकर वोट ले जाते हैं, हमारा मकसद वहीं का वहीं रह जाता है.’

वार्ड सचिव रतन कुमार पटेल बताते हैं कि दो वर्ष में 60 लोगों को आवास के लिए धन मिला है लेकिन घर इसलिए नहीं बन पाया कि घर बनवाने के लिए ईंट, सीमेंट, बालू कैसे ले जाएं. जब तक पीपा का पुल नहीं लगेगा, ये सामान गांव तक पहुंच नहीं पाएंगे.

नदी उस पार के तीन गांवों में अभी तक बिजली नहीं पहुंची है. गांव में स्कूल भी नहीं है. भरपटिया में स्कूल जरूर बना है लेकिन गांव के बच्चे नदी पार कर पढ़ने नहीं आ पाते. भरपटिया टोले के बच्चे ही यहां पढ़ते हैं.

हाफी अंसारी बताते हैं, ‘हम लोगों का वोट भी नदी इस पार भरपटिया स्कूल में ही पड़ेगा. हमें नदी पार कर वोट देने आना पड़ेगा. प्रशासन ने नाव की व्यवस्था करेगा तभी लोग वोट देने के लिए आ पाएंगे.’

धीरज श्रीवास्तव बताते हैं, ‘पुल की मांग एक दशक से जोर पकड़ रही है. पुल बनने से केवल धूमनगर पंचायत के लोगों को ही फायदा नहीं होगा, गंडक नदी के पूरब नदी की कई धाराओं के बीच अलग-थलग पड़ गए श्रीनगर, मोतीपुर, जजीरहा, कोईलपट्टी, हरपुर आदि पंचायत जिला मुख्यालय से जुड़ जाएंगे.’

अभी हालत यह है कि धूमनगर पंचायत का ब्लॉक मुख्यालय नदी इस पार ठकराहा में है. सबसे नजदीकी हाट भी यही है. यूपी का तमकुहीराज और दुदही बाजार काफी नजदीक पड़ता है जबकि जिला मुख्यालय बेतिया और पुलिस मुख्यालय बगहा नदी के उस पार हैं.

यदि इन गांवों के लोग बेतिया या बगहा जाना चाहें तो उन्हें यूपी तमकुही राज-गोपालगंज होते हुए जाना पड़ेगा या दुदही-धनहां, चौतरवा, लौरिया होकर जाना पड़ेगा जो 100 से अधिक किलोमीटर पड़ेगा.

हरिहर यादव गांव में रुकने का आग्रह करते हुए कहते है, ‘रात के रूकीं तब न पता चली कि हमन के कितना दुख बा. राति में सुख-दुख गंवाइल जाई. विधायक-सांसद हमन के दुख सुने नाहीं आवेलें. हरदेव मास्टर विधायक रहलन तो उ खूब आवें. सबसे मिले-जुलें. ई 88-89 के बात ह. अब त केहू ना आवेला. एगो पूर्व विधायक कबे-कबे आवेलन. ऐही समय के विधायक त झांकिहो पड़े ना अइलन. एमपी तो कबहो न अइलन. अइसन लगता बा कि उन लोगन के यहां के धरती काटेला.’

इस बार के चुनाव का माहौल पर उनका कहना था, ‘ए बेरी के चुनाव पूरा फरकइने बुझात बा.’

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)