ग्राउंड रिपोर्ट: तीन नदियों से घिरे मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के औराई विधानसभा क्षेत्र के कई गांव आज भी आवागमन के लिए ग्रामीणों द्वारा चंदा इकठ्ठा करके बनाए गए बांस-बल्ली के अस्थायी पुलों पर निर्भर हैं. ग्रामीण बताते हैं कि कई बार इस बारे में नेताओं से मिले, पर आज तक उनके आश्वासन का कोई नतीजा नहीं निकला.
मुजफ्फरपुर जिले के औराई विधानसभा क्षेत्र के डुमरी गांव जाने के लिए मुख्य सड़क से दाएं मुड़कर लखनदेई नदी पर ग्रामीणों द्वारा बनाए गए चंचरी पुल को पार करना पड़ता है.
चंचरी पुल पार कर आ रही कई महिलाओं के आगे चल रही महिला फोटो खींचते देख नाराज हो जाती है. वह तेज स्वर मे बोलती हैं-‘ पुला नहीं तो वोट नहीं. यहां वोट नहीं है. ’
बांस और बल्लियों से बना यह चंचरी पुल डुमरी, बसुआ सहित चार गांव के सैकड़ों लोगों के आने-जाने के लिए एकमात्र सहारा है. इस चंचरी पुल को गांव के लोगों ने चंदे से जुटाए दो लाख रुपये से एक महीने की मेहनत में तैयार किया है.
पुल से गुजर रहे जय प्रकाश ठाकुर कहते हैं, ‘करेंट वाला बाढ़ आ गया तो एके साल में इ बेकार हो जाएगा नहीं तो दो पानी देख लेगा.’
हर एक-दो वर्ष में इस तरह का चंचरी पुल बनाना डुमरी और आस-पास के गांव के लोगों की मजबूरी है क्योंकि अभी तक सरकार यहां पर कोई पुल नहीं बना सकी है.
औराई विधानसभा क्षेत्र में यह एक मात्र चंचरी का पुल नहीं है. पूरे विधानसभा क्षेत्र में दर्जनों चंचरी पुल हैं जिसके जरिये ही लोग अपने नजदीकी हाट, प्रखंड, अस्पताल, स्कूल आ-जा सकते हैं.
बागमती, लखनदेई और मनुस्मारा नदी से घिरे इस विधानसभा क्षेत्र के लोगों के लिए आजादी के इतने वर्ष बाद भी आवागमन ही सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है.
बाढ़ के समय तो इस विधानसभा क्षेत्र के औराई और कटरा प्रखंड के गांवों का संपर्क टूट जाता है क्योंकि ये चंचरी पुल टूट जाते हैं या बह जाते हैं. ये चार-पांच महीने लोगों के सबसे मुश्किल दिन होते हैं. बाढ़ में घर-खेत पानी में डूब जाते हैं और पुल-पुलियों के अभाव में उन तक जरूरी सुविधाएं भी नहीं पहुंच पाती हैं.
औराई विधानसभा क्षेत्र में औराई प्रखंड के 26 और कटरा प्रखंड के 22 ग्राम पंचायत हैं. दोनों प्रखंडों का अनुमंडल और जिला मुख्यालय मुजफ्फरपुर है.
मुजफ्फरपुर-सीतामढ़ी राष्ट्रीय राजमार्ग पर कटौझा में बागमती नदी पर पुल बना है. इसके अलावा और कोई पुल नहीं है. पुल के अभाव में गांव के लोग अपने प्रयास से चंचरी पुल बनाते हैं और उसके जरिये आते-जाते हैं.
डुमरी के चंचरी पुल को बनाने में गांव के युवाओं के संगठन डुमरी युवा मंच ने बहुत योगदान दिया है.
पुल के दोनों तरफ युवा मंच का एक चेतावनी बोर्ड लगा हुआ है जिस पर लिखा हुआ है, ‘बाइक से चंचरी पर डबल सवारी, जानवर एवं ठेला का प्रवेश निषेध है. पकड़े जाने पर 500 रुपये जुर्माना हो सकता है. यह डुमरी का चंचरी पुल है, आरसीसी नहीं. पकड़े जाने पर वाहन चालक स्वंय जिम्मेदार होंगे.’
युवा मंच से जुड़े रब्बन बताते हैं, ‘हम लोगों ने चार वर्ष पहले इस संगठन को बनाया था. इसमें 150 लोग जुड़े हैं. हम चंचरी पुल को बनाने, उसकी देखरेख व व्यवस्था करने का काम तो करते ही हैं, यहां पर पुल बनाने के लिए भी आवाज उठा रहे हैं. हम सभी नेताओं से मिले और इस बारे में बताया. सबने आश्वासन दिया, लेकिन किया कुछ नहीं.’
उन्होंने बताया, ‘लोकसभा चुनाव के पहले सांसद अजय निषाद चुनाव प्रचार में आए तो उन्होंने भी आश्वासन दिया लेकिन अभी तक अपना वादा पूरा नही कर सके. हम लोगों ने पुल की मांग को लेकर जिला मुख्यालय पर धरना भी दिया था.’
चंचरी पुल पर बहुत सावधानी से चलना होता है, नहीं तो गिरने का खतरा हमेशा बना रहता है.
डुमरी के मोहम्मद मुश्ताक ने बताया, ‘दो सप्ताह पहले गांव में जल नल वाला कर्मचारी आया था. पुल से गुजरते हुए नदी में गिर गया. हम लोगों ने उसे निकाला. इस तरह की घटनाएं अक्सर होती हैं. कई बार साइकिल और मोटरसाइकिल वाले नदी में गिर चुके हैं. हम खतरे के साथ चल रहे हैं.’
जय प्रकाश ठाकुर, मो. खालिद और रजीउर्रहमान ने बताया कि ‘नेता चुनाव के समय आते हैं, तो पुल बनाने का आश्वासन देते हैं. कहते हैं कि अब बन जाएगा. इस साल बन जाएगा. अभी तक वह दिन नहीं आया.’
औराई विधानसभा क्षेत्र में चंचरी पुल एक बड़ा मुद्दा है. यहां से महागठबंधन से चुनाव लड़ रहे भाकपा माले के प्रत्याशी आफताब आलम कई वर्षों से औराई क्षेत्र को ‘चंचरी मुक्त’ बनाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्होंने अपने स्तर से पूरे क्षेत्र में चंचरी पुल का सर्वे भी किया है.
उन्होंने बताया, ‘विधानसभा क्षेत्र में तीन दर्जन से अधिक चंचरी पुल हैं. ये पुल बंसघट्टा, बरैठा, डुमरी, मोहनपुर, सुंदरखौली, परसामा, कोकिलवारा, अमनौर, अतरार, बभनगांवा आदि स्थानों पर ग्रामीणों ने बनाए हैं. इन स्थानों पर पुल न होने से लोगों को प्रखंड मुख्यालय आना-जाना काफी मुश्किल होता है.’
मुजफ्फरपुर के भाजपा सांसद अजय निषाद ने लोकसभा चुनाव के समय वादा किया था कि वह औराई को चंचरी मुक्त कर देंगे लेकिन एक वर्ष से अधिक समय हो जाने के बाद भी वह एक भी स्थान पर चंचरी पुल की जगह पक्का पुल नहीं बनवा पाए हैं.
दो वर्ष पहले जून 2018 में बिहार के लोक निर्माण मंत्री नंद किशोर यादव ने ट्वीट किया था कि बिहार में चंचरी पुल का जमाना खत्म हो गया है. यह ट्वीट करते ही वह सवालों के घेरे में आ गए.
कई लोगों ने औराई क्षेत्र के चंचरी पुल की तस्वीरें ट्वीटर पर साझा करते हुए कहा कि मंत्री जी झूठ बोलना बंद करें.
बागमती नदी पर बोक्ची घाट पर 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले पक्का पुल बना लेकिन उद्घाटन के पहले ही पुल बीच में धंस गया.
इस पुल के बनने से बेनीबाद होते हुए दरभंगा और मुजफ्फरपुर आना-जाना आसान हो जाता. यहां से मुजफ्फरपुर जाने के लिए सिर्फ 37 किलोमीटर की ही यात्रा करनी पड़ती लेकिन अब लोगों को रून्नीसैदपुर होकर जाना पड़ता है. पुल के टूट जाने से लोगों सपने टूट गए.
पुल के टूटने के बाद बोक्ची और बांसघट्टा के कुछ लोगों ने टूटे हुए हिस्से और एप्रोच पर चंचरी डालकर इस पर आवागमन के लिए खोल दिया.
इससे होकर टेंपो व चार पहिया वाहन भी आ-जा सकते हैं. पुल का संचालन करने वाले लोग वाहनों से पैसा लेते हैं. इसको लेकर अक्सर विवाद भी होता रहता है.
अब इस ध्वस्त पुल के पास एक दूसरा पुल बनाया जा रहा है. इसके अलावा नदी में कम होने पर पीपा पुल लगाया जाता है. अभी इसे लगाने का काम हो रहा है.
बोक्ची घाट पर ध्वस्त पुल पर बने चंचरी पुल को पार कर रहे एक राहगीर गुस्से में कहते हैं, ‘सांसद-विधायक किसलिए हैं ? उद्घाटन के पहले ही पुल धंस गया. दूसरा पुल नहीं बना पाए. सीतामढ़ी के सांसद को देखिए. उन्होंने अधवारा नदी पर पुल बनवा दिया. यहां के सांसद कुछ नहीं पाए. अब लोग बदलाव चाहते हैं.’
एक दूसरे राहगीर, जो चंचरी पुल के उस पार बांसघट्टा के रहने वाले हैं, पुल न बनने के लिए भाजपा सांसद का बचाव करते हैं और कहते हैं, ‘बदलकर क्या करियेगा. जो कुर्सी पर बैठता है बदल जाता है. कुर्सिये चोर है.’
इस चंचरी पुल के पास ही बागमती पर तटबंध बन रहा है. तटबंध का काम फिलहाल रुका हुआ है. योजना नाम से चर्चित यह तटबंध हायाघाट तक बनने वाला है.
कई गांव के लोग तटबंध को बाढ़ बचाव के लिए अनुपयोगी और अवैज्ञानिक बताते हुए इसका विरोध कर रहे हैं. इस वजह से एक दशक से तटबंध का काम रुका हुआ है. लोगों ने 2011 में चास वास बचाओ, बागमती संघर्ष मोर्चा बनाकर आंदोलन शुरू किया.
इस मोर्चा के संयोजक जितेंद्र यादव कहते हैं, ‘यह तटबंध गैरजरूरी और अवैज्ञानिक है. इसके बनने से औराई का पूरा इलाका जलजमाव वाला इलाका बनता जा रहा है. यदि यह तटबंध बन गया तो बूढी गंडक और बागमती नदी के बीच का बड़ा इलाका स्थायी रूप से जलजमाव वाला हो जाएगा. यह इस क्षेत्र के लिए विनाशकारी होगा.’
उन्होंने आगे बताया, ‘आंदोलन के दबाव में 2017 में रिव्यू कमेटी बनी जिसमें नागरिक संगठन से चार लोग है, शेष पांच सरकार के प्रतिनिधि हैं. रिव्यू कमेटी के कार्यकाल का विस्तार होता जा रहा है लेकिन अभी इसकी रिपोर्ट नहीं आई है. रिपोर्ट आने के पहले ही सरकार ने तटबंध बनाने का काम फिर शुरू कर दिया, जिसे लोगों ने रोक दिया.’
इस विधानसभा क्षेत्र में चंचरी पुल लोगों के लिए लाइफलाइन की तरह है. इसको लेकर खूब राजनीति होती है. चंचरी पुल का उद्घाटन और शिलान्यास भी होता है. सप्ताह भर पहले ही औराई प्रखंड के मधुबन प्रताप घाट पर चंचरी पुल का उद्घाटन हुआ है.
इस बारे में स्थानीय अखबारों में खबर भी छपी, जिसमें कहा गया है कि ‘… चंचरी पुल को मधुबन प्रताप गांव के मनोज सहनी ने बनाया है और इसकी लागत तीन लाख रुपये आई है. इस चंचरी पुलिस से औराई के दक्षिण क्षेत्र के हंसवारा, पटोरी, सरहंचिया, करहली, बहुआरा सहित एक दर्जन गांवों के लोगों को आसानी होगी. रून्नीसैदपुर होकर औराई जाने में 25 किलोमीटर की दूरी तय नहीं करनी होगी.’
बसघट्टा के बलराज सहनी कहते हैं, ‘यह क्षेत्र ही ऐसा है. चारों तरफ जल ही जल है. नेपाल से तीन नदियों की धार आकर यहां जमा होती है. तटबंध बहुत उंचा बना दिया गया है. इस तरफ खूब पानी लग रहा है. देखिए कहीं हरीहरी बुझा रहा है?’
बाढ़, तटबंध और चंचरी पुल के अलावा औराई विधानसभा क्षेत्र में खराब शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था भी बड़ा मुद्दा है.
औराई विधानसभा क्षेत्र से महागठबंधन के प्रत्याशी आफताब आलम हैं, तो भाजपा-जद यू गठबंधन से भाजपा के रामसूरत राय चुनाव लड़ रहे हैं.
मौजूदा विधायक सुरेंद्र राय भी चुनाव लड़ रहे है. यहां से कई बार विधायक रहे गनेश राय के पुत्र अखिलेश राय सहित 15 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं.
औराई विधानसभा क्षेत्र दरभंगा जिले का जाले विधानसभा और सीतामढ़ी जिले का रून्नीसैदपुर व बाजपट्टी विधानसभा क्षेत्र से लगा हुआ है.
इन सभी विधानसभा क्षेत्रों में प्रत्याशियों के प्रचार वाहन लगातार घूम रहे हैं. प्रत्याशियों के कार्यालयों में रणनीति बन रही और चौराहों, बाजारों में जीत-हार की चर्चा हो रही है.
बासघट्टा गांव के पास तटबंध पर मछली पकड़ने के लिए जाल तैयार कर रहे वीरेंद्र सहनी नीतीश सरकार से नाराज हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशंसक हैं.
वे कहते हैं, ‘ऐसे इलाके में रहते हैं जहां एक अन्न नहीं उपजता है. बंधा पर घर है. मछली पकड़ते हैं, तो घर में चावल आता है. नीतीश जी ने दारू बंद कर दिया और ऐसा बंद किया कि अब और फास्ट चल रहा है. फोन कइला नाहीं कि घरहीं आ जावेला. नीतीश बोले कि कोरोना में बिहारी लोग उधरिए रहिए, बिहार में मत आइए. सबको छोड़ दिया. ए बेरी उ फेंका जइहें.’
सहनी कहते हैं, ‘हम रोड लाइन का आदमी है. सब जानकारी रखता है. डबल राशन से हम लोगों को फायदा हुआ है. कोरोना ने जान मार दिया, नहीं मोदी जी हम लोगों को बहुत देखता. उनका चेहरा सूखकर चोकटी हो गईल बा. अब कुछ मुस्कराहट दीखल ह.’
वीरेंद्र ने मुकेश सहनी और उनकी पार्टी वीआईपी के बारे में सुन रखा है. वे कहते हैं, ‘आपन पार्टी त बनल बा लेकिन हम मुकेश को चीन्हते नहीं. कभी इधर आया नहीं. औराई में महागठबंधन और भाजपा में ही मुकाबला है. बाकी लोग गया धोती पहनने.’
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)