सुशांत मामला: हाईकोर्ट ने केंद्र से पूछा- क्या ‘ज़्यादा रिपोर्टिंग’ न्याय के शासन में दखलअंदाज़ी है

सुशांत आत्महत्या मामले में 'मीडिया ट्रायल' के आरोपों को लेकर सुनवाई कर रहे बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि यदि अत्यधिक रिपोर्टिंग होती है तो यह आरोपी को लोगों की नज़र में ला सकती है, जिसके चलते वह साक्ष्य मिटा सकता है या भाग सकता है.

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सुशांत सिंह राजपूत. (फोटो साभार: ट्विटर)

सुशांत आत्महत्या मामले में ‘मीडिया ट्रायल’ के आरोपों को लेकर सुनवाई कर रहे बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि यदि अत्यधिक रिपोर्टिंग होती है तो यह आरोपी को लोगों की नज़र में ला सकती है, जिसके चलते वह साक्ष्य मिटा सकता है या भाग सकता है.

सुशांत सिंह राजपूत. (फोटो साभार: ट्विटर)
सुशांत सिंह राजपूत. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट ने बीते गुरुवार को केंद्र और उसके सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से पूछा कि संवेदनशील आपराधिक मामलों और इसके जांच की मीडिया कवरेज को लेकर दिशानिर्देश क्यों नहीं बनाए जाने चाहिए.

कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या प्रेस द्वारा ‘अत्यधिक’ रिपोर्टिंग अदालत की अवमानना कानून के तहत न्याय के प्रशासन में दखलअंदाजी है.

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस जीएस कुलकर्णी की पीठ कई जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिनमें आग्रह किया गया है कि प्रेस को सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में इस तरह की रिपोर्टिंग से रोका जाए.

याचिकाओं में टीवी चैनलों को मामले में मीडिया ट्रायल करने से रोकने का आग्रह भी किया गया है. ये याचिकाएं कई सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों, कार्यकर्ताओं और नागरिकों ने दायर की है और दावा किया है कि मामले में प्रेस और चैनल ‘मीडिया ट्रायल’ कर रहे हैं, जिससे मामले की निष्पक्ष जांच प्रभावित हो रही है.

बीते 23 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने मीडिया के आचरण को लेकर कड़ी फटकार लगाई थी और कहा था कि प्रेस का बहुत ‘ध्रुवीकरण’ हो गया है. उन्होंने कहा कि पत्रकार पहले की तहत ‘तटस्थ और जिम्मेदार’ नहीं हैं.

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बीते गुरुवार को आठ पूर्व पुलिस अधिकारियों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील एस्पी चिनॉय ने कहा कि मृत्यु के मामले में रिपोर्ट करते समय समाचार चैनलों द्वारा विभिन्न व्यक्तियों के अधिकारों का घोर उल्लंघन किया गया है.

उन्होंने कहा कि चैनलों ने अभिनेता की मौत के मामले में ‘पूर्व-निर्णय’ लेने और ‘गैर-जिम्मेदाराना’ कवरेज का कार्य किया है और यह न्याय के प्रशासन और आरोपी के मौलिक अधिकारों को प्रभावित कर रहा है. भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है और दोषी होने तक व्यक्ति निर्दोष होता है.

चिनॉय ने आगे कहा कि मीडिया ने केबल टीवी रेगुलेशन एक्ट के वैधानिक ढांचे के ‘दायरे’ को पार किया है, जो अदालत की अवमानना है.

उन्होंने आगे कहा कि वैसे तो केबल टीवी एक्ट और टीवी के लिए प्रोग्राम कोड के तहत केंद्र सरकार को अधिकार मिला हुआ लेकिन वे राजपूत मौत मामले में हो रही ‘मीडिया ट्रायल’ के संबंध में संज्ञान लेने में विफल रहे हैं.

इन बातों को ध्यान में रखते हुए वकील ने कहा कि सरकार द्वारा ‘मजबूत तंत्र’ होने का दावा करना अपर्याप्त है, इसलिए न्यायालय को इस संबंध में दिशानिर्देश बनाने चाहिए.

याचिकाकर्ताओं को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश दत्ता की अगुवाई वाली पीठ ने सवाल तैयार किए और केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह से इस पर जवाब मांगा.

पीठ ने कहा, ‘जांच का मुख्य उद्देश्य उन साक्ष्यों को जुटाना है जिसके आधार पर ये तय किया जा सके कि आरोपी के खिलाफ मामला बनता है या नहीं, क्या उसे जेल में रखा जा सकता है. यह हमारा प्रथमदृष्टया विचार है. यदि अत्यधिक रिपोर्टिंग होती है तो यह आरोपी को लोगों की नजर में ला सकता है, जिसके चलते वह साक्ष्य मिटा सकता है या भाग सकता है.’

पीठ ने आगे कहा, ‘यदि व्यक्ति वाकई निर्दोष है तो अत्यधिक मीडिया रिपोर्टिंग से उसी छवि खराब होगी. यदि मीडिया ये पता लगा लेती है कि कोई व्यक्ति प्रमुख गवाह है तो उसका मुंह बंद कराया जा सकता है, धमकाया जा सकता है, उसे शारीरिक क्षति भी पहुंचाई जा सकती है ताकि वो प्रमाण न दे.’

इन सवालों पर जवाब मांगते हुए पीठ ने मामले की अगली सुनवाई छह नवंबर को करने को कहा है.

इससे पहले मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा था कि टीवी समाचार चैनलों द्वारा प्रसारित सामग्री को विनियमित करने के लिए न्यूज ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (एनबीएसए) जैसे निजी निकायों के दिशा-निर्देशों को सरकार द्वारा लागू क्यों नहीं किया जा सकता है.

दिनभर चली सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि केंद्र प्रिंट और टीवी मीडिया के लिए एक स्व-नियामक तंत्र के पक्ष में है.

सिंह ने कहा कि कई अवसर पर केंद्र प्राप्त शिकायतों को न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स फेडरेशन (एनबीएफ) जैसे निजी निकायों को भेज देती है. ये प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब चैनल इसके सदस्य होते हैं.

मालूम हो कि 34 वर्षीय अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत बीते 14 जून को मुंबई के बांद्रा स्थित अपने घर में मृत पाए गए थे.

सुशांत के पिता केके सिंह ने पटना के राजीव नगर थाना में अभिनेता की प्रेमिका और लिव इन पार्टनर रहीं अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ अभिनेता को खुदकुशी के लिए उकसाने और अन्य आरोपों में शिकायत दर्ज कराई थी.

सुशांत की मौत को लेकर उठ रहे सवालों के बीच बिहार सरकार के अनुरोध पर केंद्र सरकार ने मामले की जांच बीते पांच अगस्त को सीबीआई को सौंप दी थी.

इसके बाद बीते 19 अगस्त को बिहार सरकार की अनुशंसा को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया था कि वे अभिनेता की मौत के मामले की जांच करें. अदालत ने महाराष्ट्र पुलिस से मामले में सहयोग करने को कहा था.

इस मामले की जांच के दौरान ड्रग्स खरीदने और उसके इस्तेमाल का भी खुलासा होने के बाद नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने पिछले कुछ दिनों में मामले की जांच के दौरान अभिनेत्री रिया के छोटे भाई शौविक चक्रवर्ती (24), सुशांत सिंह राजपूत के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा (33) और अभिनेता के निजी स्टाफ सदस्य दीपेश सावंत को भी गिरफ्तार किया था.

आठ सितंबर को कई दिनों की पूछताछ के बाद एनसीबी ने अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती को भी अभिनेता की मौत से जुड़े ड्रग्स मामले में गिरफ्तार किया था.

रिया को बीते सात अक्टूबर को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा जमानत दी गई है.

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