लंबित वेतन को लेकर अदालत ने कहा, डीयू शिक्षकों को परेशान होते हुए नहीं छोड़ा जा सकता

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ ने दिल्ली सरकार के 16 अक्टूबर के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें सरकार द्वारा पूर्ण वित्तपोषित 12 महाविद्यालयों को 1500 से अधिक ​शिक्षकों एवं शिक्षण कर्मचारियों का वेतन छात्र निधि से भुगतान करने कहा गया था.

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दिल्ली यूनिवर्सिटी. (फोटो: विकीमीडिया)

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ ने दिल्ली सरकार के 16 अक्टूबर के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें सरकार द्वारा पूर्ण वित्तपोषित 12 महाविद्यालयों को 1500 से अधिक शिक्षकों एवं शिक्षण कर्मचारियों का वेतन छात्र निधि से भुगतान करने कहा गया था.

दिल्ली यूनिवर्सिटी (फोटो: विकिमीडिया)
दिल्ली यूनिवर्सिटी (फोटो: विकिमीडिया)

नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि आप सरकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों के बीच आरोप-प्रत्यारोप में शिक्षकों को पिसने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है. अदालत ने छात्र सोसायटी निधि से कर्मचारियों के बकाया वेतन के भुगतान के निर्णय को चुनौती देने वाली एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए यह बात कही.

उच्च न्यायालय ने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) को इस याचिका में कॉलेजों को पक्ष बनाने को कहा है.

डूसू ने दिल्ली सरकार के 16 अक्टूबर के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें सरकार द्वारा पूर्ण वित्तपोषित 12 महाविद्यालयों को 1500 से अधिक शिक्षकों एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों की तनख्वाह का भुगतान करने कहा गया था.

अदालत ने यह भी कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय अपने सभी कॉलेजों का अभिभावक है तथा चीजें दुरुस्त रखना और मुद्दों का समाधान करना विश्वविद्यालय की जिम्मेदारी है.

जस्टिस ज्योति सिंह ने सवाल किया कि संबंधित कॉलेजों को इस याचिका में पक्षकार क्यों नहीं बनाया गया है और कहा कि जब उन्हें इस अर्जी में प्रतिवादी बनाया जाएगा तब वह मामले की सुनवाई करेंगी.

सिंह ने कहा कि कॉलेजों को पक्षकार बनाया जाए. उन्होंने कहा कि इस आरोप-प्रत्यारोप के खेल में शिक्षकों को परेशान होते हुए नहीं छोड़ा जा सकता.

न्यायालय ने कहा कि कॉलेजों की गैर-मौजूदगी में कोई आदेश जारी करना सही नहीं होगा.

दिल्ली सरकार के वकील ने अदालत से कहा कि उच्च न्यायालय की एक समन्वय पीठ ने 23 अक्टूबर को उस फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें डीयू के 12 कॉलेजों को छात्र निधि से कर्मचारियों के बकाया वेतन का भुगतान करने को कहा गया था.

दैनिक जागरण के मुताबिक अदालत ने कहा था कि छात्र निधि का इस्तेमाल वेतन देने में करने के बजाय सरकार को वेतन देना चाहिए.

डूसू की तरफ से अदालत को बताया गया था कि यह फंड छात्रों से जमा किया जाता है और इसमें सरकार से कुछ नहीं मिलता है. ऐसे में इस फंड को वेतन में खर्च करने पर रोक लगनी चाहिए.

डूसू ने कहा था कि छात्रों के फंड को वेतन देने के लिए खर्च नहीं किया जा सकता. इस फंड का इस्तेमाल सिर्फ छात्र कल्याण के लिए किया जा सकता है.

दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि कॉलेज अवश्य ही इस अर्जी में पक्षकार हैं और याचिकाकर्ता ने उन पर अभियोग नहीं चलाने का चुनाव किया, इसलिए अंतरिम स्थगन आदेश हटाया जाए.

उच्च न्यायालय ने कहा कि उसे दिल्ली सरकार के वकील की इस दलील में दम है कि कॉलेजों को पक्षकार बनाया जाए लेकिन उसने इस चरण में कोई आदेश जारी करने से इनकार किया.

मामले की अगली सुनवाई पांच नवंबर को होगी.

दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध तथा दिल्ली सरकार द्वारा पूरी तरह से वित्तपोषित 12 कॉलेजों में आचार्य नरेंद्र देव कॉलेज, डॉक्टर भीमराव अंबेडकर कॉलेज, भास्कराचार्य कॉलेज ऑफ अप्लायड साइंस, भगिनी निवेदिता कॉलेज, दीनदयाल उपाध्याय कॉलेज, अदिति महाविद्यालय महिला कॉलेज, इंदिरा गांधी शारीरिक शिक्षा एवं खेल विज्ञान संस्थान, केशव महाविद्यालय, महाराजा अग्रसेन कॉलेज, महर्षि वाल्मीकि कॉलेज ऑफ एजुकेशन, शहीद राजगुरु कॉलेज ऑफ अप्लायड साइंस फॉर वीमेन और शहीद सुखदेव कॉलेज ऑफ बिजनेस स्टडीज शामिल हैं.

बता दें कि इससे पहले अगस्त महीने में दिल्ली यूनिवर्सिटी के शिक्षकों ने अदालत से चार महीने का वेतन देने का निर्देश देने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी.

याचिका में कहा गया था कि इन शिक्षकों के अलावा अन्य शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों को भी मई, जून, जुलाई और अगस्त का वेतन नहीं मिला है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)