मौजूदा समय में केंद्रीय सूचना आयोग के समक्ष 37,000 से अधिक अपीलें और शिकायतें लंबित हैं. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष त्वरित सुनवाई के लिए दायर किए गए आवेदन के बाद हाल ही में मुख्य सूचना आयुक्त समेत तीन सूचना आयुक्तों की नियुक्तियां की गई हैं, जिसके बाद भी तीन पद अब भी रिक्त हैं.
नई दिल्लीः सूचना आयुक्तों (आईसी) की नियुक्ति में देरी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले दो याचिकाकर्ताओं ने केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के मुख्य सूचना आयुक्त के तौर पर यशवर्धन कुमार सिन्हा की नियुक्ति का स्वागत किया है.
सिन्हा को शनिवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पद की शपथ दिलाई.
आरटीआई और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज और सतर्क नागरिक संगठन की अमृता जौहरी ने सिन्हा की नियुक्ति और सीआईसी में तीन अन्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के कदम का स्वागत करते हुए कहा कि बिना प्रमुख के आयोग का कामकाज गंभीरता से प्रभावित हो रहा था.
बता दें कि इससे पहले केंद्रीय सूचना आयोग बिना प्रमुख के ही संचालन कर रहा था और इसके कर्मचारियों की संख्या पचास फीसदी से भी कम है.
नए सूचना आयुक्त पत्रकार उदय माहुरकर, पूर्व श्रम सचिव हीरा लाल समारिया और पूर्व उपनियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक सूरज पुन्हानी ने भी अपना पदभार संभाल लिया है.
निराशा है सभी पदों पर नियुक्त नहीं हुई
नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि वे इस बात से निराश हैं कि सीआईसी में सभी खाली पदों पर नियुक्तियां नहीं की गई.
सीआईसी के प्रमुख बिमल जुल्का की 26 अगस्त 2020 को सेवानिवृत्ति के बाद और सितंबर 2020 के अंत में एक अन्य आयुक्त के पद से हटने के बाद आयोग के प्रमुख सहित छह पद खाली पड़े थे.
यहां तक कि चार पदों पर नियुक्ति के बाद तीन पद अभी भी खाली हैं क्योंकि आयोग में सिन्हा पहले सूचना आयुक्त के पद पर थे.
उन्होंने बयान में कहा, सूचना आयुक्त पदों पर तीन और खाली पद हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि निवर्तमान आयुक्तों के नियमित सेवानिवृत्ति की वजह से बढ़ रहे खाली पदों के बावजूद केंद्र सरकार आयुक्तों की समय पर नियुक्ति में लगातार असफल हो रही है.
इन्होंने कहा कि मौजूदा समय में सीआईसी के समक्ष 37,000 से अधिक अपीलें और शिकायतें लंबित हैं और सुप्रीम कोर्ट के समक्ष त्वरित सुनवाई के लिए दायर किए गए आवेदन के बाद नियुक्तियां की गईं.
नियुक्ति प्रक्रिया पारदर्शी नहीं
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामले में याचिकाकर्ताओं ने कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन हुआ है.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2019 के अपने फैसले (अंजलि भारद्वाज बनाम अन्य बनाम केंद्र सरकार) में नियुक्ति प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के निर्देश दिए थे.
याचिकाकर्ताओं ने कहा, यह निर्देश दिए जाते हैं कि खोज एवं चयन समितियों के सदस्यों के नाम, एजेंडा और समिति की बैठकों के मिनट्स, पदों के लिए जारी विज्ञापन विशेष रूप से आवेदक, शॉर्टलिस्ट किए गए उम्मीदवारों के नाम, फाइल नोटिंग और नियुक्ति से संबंधित पत्राचार आदि को सार्वजनिक डोमेन में रखा जाना चाहिए.
दोनों कार्यकर्ताओं ने कहा कि अदालत ने अपने अंतिम निर्देशों में कहा था, खोज समिति के लिए यह उचिता होगा कि वह उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए मानदंड बनाएं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ऑब्जेक्टिव और तर्कसंगत मापदंड के आधार पर शॉर्टलिस्टिंग को सुनिश्चित किया जा सके.
विज्ञापन को छोड़कर अन्य जानकारी सार्वजनिक डोमेन में नहीं
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के विपरीत सिर्फ रिक्त पदों के लिए विज्ञापन ही सार्वजनिक डोमेन में है. मापदंड सहित अन्य जानकारी किसी को नहीं पता है.
उन्होंने कहा कि वास्तव में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने आरटीआई के तहत इसकी जानकारी देने से इनकार कर दिया.
भारद्वाज और जौहरी ने कहा, आरटीआई एक्ट 2005 की धारा 8(1) के तहत उम्मीदवारों की संबंधित जानकारी को छूट दी गई है.
चूंकि अभी चुनाव की प्रक्रिया का पूरा होना बाकी है इसलिए मांगी गई जानाकरी को पेश करना अनुकूल नहीं है. सरकार में अन्य उच्चस्तरीय पदों पर नियुक्तियों में भी इस तरह की जानकारी को उजागर नहीं किया जाता.
विपक्षी नेता का कहना है कि सूचना आयुक्त का नाम एकाएक सामने आया
कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सीआईसी में नियुक्तियों के लिए चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है, जिससे जनता के बीच संदेह पैदा हुआ है और संस्था में विश्वास कम हुआ है.
उनहोंने विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी का चुनाव समिति की बैठक के दौरान असहमित नोट देने का मुद्दा भी उठाया. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन नहीं करने का मुद्दा भी उठाया. इस समिति की अध्यक्षता प्रधानमंत्री ने की थी.
उन्होंने कहा कि नियुक्त किए गए सूचना आय़ुक्तों में से एक ने रिक्त पद के लिए दिए गए विज्ञापन पर आवेदन भी नहीं किया था और उनका नाम एकाएक सामने आ गया.
द वायर ने इससे पहले इस मुद्दे पर हुए हंगामे पर रिपोर्ट भी प्रकाशित की थी कि चुनाव समिति ने भाजपा के समर्थक और पत्रकार को बतौर सूचना आयुक्त नियुक्त किया और सीआईसी प्रमुख पद के लिए सबसे वरिष्ठ केंद्रीय सूचना आयुक्त की अनदेखी की.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)