भारत-चीन सीमा विवाद: आठवें दौर की बातचीत के बाद भी नहीं निकला कोई ठोस नतीजा

6 नवंबर को हुई आठवें दौर की वार्ता के बाद भारत और चीन की सेनाओं ने एक संयुक्त बयान में कहा कि दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी महत्वपूर्ण सहमति को गंभीरता से लागू करने और यह सुनिश्चित करने पर रज़ामंदी हुई है कि सीमा पर तैनात बल संयम बरतें एवं ग़लतफ़हमी से बचें.

//
(फोटो: रॉयटर्स)

6 नवंबर को हुई आठवें दौर की वार्ता के बाद भारत और चीन की सेनाओं ने एक संयुक्त बयान में कहा कि दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी महत्वपूर्ण सहमति को गंभीरता से लागू करने और यह सुनिश्चित करने पर रज़ामंदी हुई है कि सीमा पर तैनात बल संयम बरतें एवं ग़लतफ़हमी से बचें.

(फोटो: रॉयटर्स)
(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच जारी गतिरोध बरकरार है और दोनों पक्षों के बीच आठ दौर की कोर कमांडर स्तर की बातचीत किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने में सक्षम रही है. हालांकि, दोनों पक्ष एक और दौर वार्ता के लिए तैयार हुए हैं.

भारतीय सेना ने रविवार को कहा कि चीनी सेना के साथ लद्दाख में गतिरोध को लेकर हुई आठवें दौर की सैन्य वार्ता रचनात्मक रही और इस दौरान गहराई से एवं स्पष्ट बातचीत हुई.

सेना ने अत्यधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र से सैन्य बलों के पीछे हटने को लेकर ठोस सफलता मिलने के कोई संकेत नहीं होने के बीच यह बयान दिया.

भारत और चीन की सेनाओं ने एक संयुक्त बयान में कहा कि वार्ता के दौरान दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी महत्वपूर्ण सहमति को गंभीरता से लागू करने और यह सुनिश्चित करने पर रजामंदी हुई कि सीमा पर तैनात बल संयम बरतें एवं गलतफहमी से बचें.

बीजिंग और नई दिल्ली में जारी बयान में कहा गया कि दोनों पक्षों ने सैन्य एवं राजनयिक माध्यमों से वार्ता एवं संवाद बनाए रखने और पुराने मसलों के समाधान के लिए वार्ता को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई.

भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारतीय हिस्से में स्थित चुशुल में शुक्रवार को आठवें दौर की उच्च स्तरीय सैन्य वार्ता हुई थी. यह वार्ता करीब साढ़े 10 घंटे चली थी. वार्ता में दोनों देशों की सेनाओं ने जल्द ही पुन: मुलाकात करने पर सहमति जताई थी.

बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों के बीच भारत-चीन सीमा क्षेत्रों के पश्चिमी सेक्टर में नियंत्रण रेखा के पास से सेनाओं को पीछे हटाने को लेकर रचनात्मक, स्पष्ट और गहराई से बातचीत हुई.

इसमें कहा गया, ‘दोनों देशों के नेताओं के बीच बनी महत्वपूर्ण सर्वसम्मति को गंभीरता से लागू करने और यह सुनिश्चित करने पर सहमति बनी कि सीमा पर तैनात बल संयम बरतें और गलतफहमी से बचें.’

बयान में कहा गया है, ‘दोनों पक्षों ने सैन्य एवं राजनयिक माध्यमों से वार्ता एवं संवाद बनाए रखने और पुराने मसलों के समाधान के लिए वार्ता को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई, ताकि सीमावर्ती इलाकों में शांति कायम रहे.’

सरकारी सूत्रों ने बताया कि भारतीय सेना ने वार्ता के दौरान पूर्वी लद्दाख में टकराव के सभी बिंदुओं से चीन द्वारा बलों की शीघ्र वापसी पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि विवाद का समाधान खोजने को लेकर अभी कोई सफलता नहीं मिली है.

पूर्वी लद्दाख के विभिन्न पहाड़ी इलाकों में करीब 50 हजार भारतीय सैनिक शून्य से भी नीचे तापमान में युद्ध की उच्चस्तरीय तैयारी के साथ तैनात हैं. दोनों पक्षों के बीच गतिरोध को खत्म करने के लिए हुई कई दौर की बातचीत का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है.

अधिकारियों के मुताबिक, चीन ने भी लगभग इतने ही सैनिक तैनात किए हैं.

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने शुक्रवार को कहा था कि भारत एलएसी में कोई बदलाव स्वीकार नहीं करेगा और सीमा पर झड़पों, अतिक्रमण और बिना उकसावे की सामरिक सैन्य कार्रवाइयों के बड़े संघर्षों में बदलने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.

आठवें दौर की सैन्य बातचीत में भारतीय पक्ष का नेतृत्व लेह स्थित 14वीं कोर के नवनियुक्त कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन ने किया था.

विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) नवीन श्रीवास्तव भी भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे.

सातवें दौर की बातचीत में दोनों पक्षों ने ‘यथाशीघ्र’ सैनिकों की वापसी के परस्पर स्वीकार्य समाधान तक पहुंचने के लिये सैन्य एवं कूटनीतिक माध्यमों से बातचीत एवं संवाद कायम रखने पर सहमति व्यक्त की थी.

भारत का रुख शुरू से स्पष्ट है कि सैनिकों की वापसी और पहाड़ी क्षेत्र के गतिरोध वाले बिंदुओं पर तनाव कम करने की प्रक्रिया को आगे ले जाने का दायित्व चीन पर है.

छठे दौर की सैन्य बातचीत के बाद दोनों पक्षों ने सीमा पर और सैनिकों को न भेजने, जमीनी स्थिति को बदलने की एकपक्षीय कोशिश से बचने और स्थिति को और अधिक गंभीर बनाने वाले किसी भी कदम या कार्रवाई से बचने समेत कई फैसलों की घोषणा की थी.

बता दें कि भारतीय सैनिकों द्वारा वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सामान्य गश्त के बिंदु से परे चीनी घुसपैठ का पता लगाए जाने के बाद पूर्वी लद्दाख में मई की शुरुआत से ही भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच कई झड़पें हो चुकी हैं.

दोनों देशों के बीच चल रही तनातनी के दौरान पहला संघर्ष गलवान घाटी में 5-6 मई की रात हुआ था. इसके बाद ‘फिंगर्स 4’ के पास 10-11 मई को पैंगोंग त्सो झील के उत्तरी किनारे पर संघर्ष हुआ था.

चीन ने ‘फिंगर 4 तक एक पक्की सड़क और रक्षात्मक पोस्टों का निर्माण किया था. भारतीय सैनिक पहले नियमित तौर पर ‘फिंगर 8’ तक गश्त करते थे, लेकिन चीन द्वारा किए गए ताजा अतिक्रमण के बाद भारतीय सैनिकों की गश्ती ‘फिंगर 4’ तक सीमित हो गई है.

भारत दावा करता है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा ‘फिंगर 8’ से होकर गुजरती है, जबकि चीन की दावा है कि यह ‘फिंगर 2’ पर स्थित है.

सबसे गंभीर झड़प 15 जून को पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में हुई थी, जब एक हिंसक लड़ाई में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे. चीन ने अपनी तरफ भी हताहतों की संख्या को स्वीकार की है, लेकिन किसी भी संख्या का खुलासा नहीं किया था.

गलवान घाटी में हिंसक झड़प के ढाई महीने बाद बीते 29 अगस्त की रात पैंगोंग त्सो के दक्षिणी किनारे पर स्थित ठाकुंग में एक बार फिर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच गतिरोध देखने को मिला था.

भारतीय सेना ने बयान जारी कर कहा था कि पीएलए ने 29-30 अगस्त की रात को यथास्थिति को बदलने के लिए उकसाने वाली सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)