इससे पहले झारखंड, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों ने जांच के लिए सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली थी. पिछले दो महीनों में पंजाब चौथा राज्य है, जिसने ऐसा किया है.
चंडीगढ़ः पंजाब सरकार ने राज्य में मामलों की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को दी गई आम सहमति (जनरल कंसेंट) को वापस ले लिया है, जिसके बाद अब सीबीआई को पंजाब में किसी भी नए मामले की जांच के लिए राज्य सरकार की मंजूरी लेनी होगी.
सामान्य सहमति वापस लेने का मतलब है कि राज्य सरकार की अनुमति के बिना इन राज्यों में प्रवेश करते ही किसी भी सीबीआई अधिकारी के पुलिस अधिकारी के रूप में मिले सभी अधिकार खत्म हो जाते हैं.
पंजाब अब उन गैर भाजपा शासित राज्यों में शामिल हो गया है, जिन्होंने पिछले कुछ समय में इसी तरह का कदम उठाया है. इतना ही नहीं बीते दो महीनों (अक्टूबर-नवंबर) में पंजाब चौथा राज्य है, जिसने ऐसा किया है. इस महीने में तीन राज्य सीबीआई को दी गई आम सहमति वापस ले चुके हैं.
पंजाब सरकार द्वारा आठ नवंबर को जारी एक अधिसूचना के मुताबिक, सीबीआई को राज्य में किसी भी मामले की जांच करने के लिए पंजाब सरकार से पहले मंजूरी लेनी होगी. सीबीआई दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम के तहत आती है.
गृह एवं न्याय विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 की धारा छह के तहत दी गई शक्ति का इस्तेमाल करते हुए पंजाब सरकार दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना के सदस्यों को दी गई सामान्य सहमति को वापस लेती है.
दरअसल सीबीआई ‘दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम’ द्वारा शासित है. सीबीआई इस अधिनियम की धारा छह के तहत काम करती है. सीबीआई और राज्यों के बीच सामान्य सहमति होती है, जिसके तहत सीबीआई अपना काम विभिन्न राज्यों में करती है, लेकिन अगर राज्य सरकार सामान्य सहमति को रद्द कर दे, तो सीबीआई को उस राज्य में जांच या छापेमारी करने से पहले राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी.
पंजाब सरकार की अधिसूचना में कहा गया है कि पहले जारी की गई सभी सामान्य सहमतियों को रद्द करने के मद्देनजर, दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना को राज्य में मामलों की जांच के लिए पंजाब सरकार से पूर्व मंजूरी लेने की जरूरत होगी.
पंजाब सरकार ने 2015 में धार्मिक ग्रंथ की बेअदबी की घटनाओं की जांच के लिए सीबीआई को दी गई मंजूरी को वापस ले लिया था. इस बाबत 2018 में राज्य विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया था. बाद में सरकार ने इस मामले की जांच पंजाब पुलिस की विशेष जांच टीम को सौंपी थी.
पंजाब से पहले ऐसा आदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश (उस समय चंद्रबाबू नायडू की सरकार थी), केरल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, सिक्किम, त्रिपुरा और राजस्थान सरकार पहले ही जारी कर चुकी हैं. हालांकि, बाद में आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली सरकार ने सीबीआई को वापस यह अधिकार अपने राज्य में दे दिया था.
इससे पहले बीते छह नवंबर को झारखंड और चार नवंबर को केरल ने भी मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दिए गए आम सहमति के प्रावधान को वापस ले लिया था. बीते अक्टूबर महीने में महाराष्ट्र सरकार ने सीबीआई को दी गई सहमति को वापस लेने संबंधी एक आदेश जारी किया था.
बीते जुलाई महीने में राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने भी ‘आम सहमति’ के प्रावधान को रद्द कर दिया था. इसी तरह जनवरी 2019 में कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ ने राज्य में मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दी गई सामान्य सहमति वापस ले ली थी. साल 2018 में पश्चिम बंगाल सरकार ने सीबीआई को राज्य में छापे मारने या जांच करने के लिए दी गई ‘सामान्य रजामंदी’ वापस ले ली थी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)