लेखकों और निर्देशकों के एक तबके ने कहा है कि ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म को सूचना और प्रसारण मंत्रालय के दायरे में लाए जाने के निर्णय से वैश्विक स्तर पर भारतीय कंटेंट क्रियेटरों को नुकसान हो सकता है. इससे निर्माताओं और यहां तक कि दर्शकों की रचनात्मक एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने नेटफ्लिक्स, डिज्नी प्लस हॉटस्टार और अमेजॉन प्राइम सहित सभी ओटीटी प्लेटफॉर्म, समाचार और सम सामयिक घटनाओं से जुड़ी सूचना देने वाले सभी ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत लाने का फैसला करते हुए उसे डिजिटल स्पेस के लिए नीतियों और नियमों का विनियमन करने का अधिकार सौंप दिया है.
इसके तहत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत ऑनलाइन सामग्री पर रोक लगाने संबंधी आवश्यक निर्देश देने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के राष्ट्रीय साइबर समन्वय केंद्र (एनसीसीसी) के निदेशक को नोडल अधिकारी नियुक्त किया है. एक अधिसूचना में यह जानकारी दी गई.
एक अधिकारी ने कहा कि 10 नवंबर 2020 को जारी हुई ताजा अधिसूचना इससे पहले जारी अधिसूचना का स्थान लेगी. कोई नई शक्ति प्रदान नहीं की गई है. इससे पहले 20 जनवरी, 2010 को अधिसूचना जारी की गई थी. पहले एक अन्य अधिकारी को यह शक्ति प्रदान की गई थी और अब एनसीसीसी के निदेशक को शक्तियां दी गई हैं.
आईटी अधिनियम के मुताबिक, प्राधिकृत अधिकारी एक समिति की सिफारिश के आधार पर वेबसाइट को ब्लॉक करने का आदेश दे सकता है.
ताजा अधिसूचना के मुताबिक, एनसीसीसी के निदेशक वेबसाइट ब्लॉक करने को लेकर धारा 69 के प्रावधानों का उपयोग करेंगे और जरूरी आदेश जारी करेंगे.
ताजा अधिसूचना के मुताबिक, ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए के उपखंड (1) के अंतर्गत दी गईं शक्तियों के साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2009 के नियम 3 के तहत, केंद्र सरकार ने एनसीसीसी के निदेशक को उक्त नियमों के उद्देश्य के वास्ते प्राधिकृत अधिकारी के रूप में अधिकृत एवं नामित किया है.’
बता दें कि बीते ऑनलाइन समाचार पोर्टलों और कंटेंट प्रोवाइडरों को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत लाने के लिए केंद्र सरकार ने 10 नवंबर को एक आदेश जारी किया है. मंत्रिमंडल सचिवालय द्वारा 10 नवंबर की रात को जारी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा हस्ताक्षरित अधिसूचना तत्काल प्रभाव से लागू हो गई है.
इससे पहले तक देश में डिजिटल सामग्री के विनियमन के लिए कोई कानून या स्वायत प्राधिकार मौजूद नहीं था, लेकिन अब डिजिटल समाचार वेबसाइट सहित सभी ओटीटी प्लेटफॉर्म सरकार के नियमों और नियमन के दायरे में आएंगे.
अधिसूचना में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 77 के खंड (3) के तहत प्रदत शक्तियों का उपयोग करते हुए भारत सरकार (कार्य आवंटन) नियमावली, 1961 में संशोधन करके ऐसा किया गया है.
इसके साथ ही सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध समाचार, दृश्य श्रव्य कार्यक्रमों और फिल्मों से संबंधित नीतियों को विनियमित करने का अधिकार मिल गया है.
इसके तहत विदेशी ओटीटी प्लेटफॉर्म जैसे नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम वीडियो, डिज्नी प्लस हॉटस्टार और देश में विकसित सोनीलिव, डिजिटल समाचार वेबसाइट भी आएंगे.
सूचना और प्रसारण मंत्रालय के तहत आने वाले व्यवसाय नियम 1961 के आवंटन की अनुसूची में नौ बड़ी श्रेणियां आती हैं जिनमें प्रसारण नीति और प्रशासन, केबल टेलीविजन नीति, रेडियो, दूरदर्शन, फिल्में, विज्ञापन और दृश्य प्रचार, प्रेस, प्रकाशन, और अनुसंधान और संदर्भ शामिल हैं.
दिलचस्प यह है कि ऑनलाइन मंचों पर उपलब्ध समाचार व समसामयिक विषयों से संबंधित सामग्रियों को ‘प्रेस’ उपश्रेणी के तहत न रखकर ‘फिल्म’ उपश्रेणी के तहत रखा गया है.
ओटीटी प्लेटफॉर्म के कंटेंट क्रियेटर निराश
सरकार के इस कदम पर मीडिया से जुड़े अनुभवी लोगों का कहना है कि देश में डिजिटल मीडिया पहले से ही संविधान के ढांचे तहत रहते हुए सूचना एवं प्रौद्योगिकी कानून और अन्य कानूनों से विनियमित है.
पत्रकारों, डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़े लेखकों, निर्देशकों और ओटीटी पर सामग्री उपलब्ध कराने वालों ने अधिसूचना को लेकर निराशा जताते हुए कहा कि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है की मंत्रालय का नियमन कैसा होगा.
गौरतलब है कि सरकार के इस फैसले से करीब एक महीने पहले उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से एक जनहित याचिका पर जवाब मांगा था, जिसमें एक स्वायत प्राधिकार द्वारा ओटीटी प्लेटफॉर्म के नियमन का अनुरोध किया गया था.
एमएक्स प्लेयर नाम के ओटीटी प्लेटफॉर्म के मुख्य कार्याधिकारी करण बेदी ने कहा कि वह स्व-नियमन की दिशा में प्रयासों को क्रियान्वित करने के लिए मंत्रालय के साथ काम करने को लेकर आशान्वित हैं.
बेदी ने कहा, ‘जिम्मेदार कंटेंट क्रियेटर की तरह हम चाहते हैं कि यह कदम न सिर्फ प्रसारित की जा रही सामग्री की प्रकृति का संज्ञान ले, बल्कि यह भी सुनिश्चित करे कि हम इस तेजी से बढ़ते क्षेत्र में रचनात्मकता की रक्षा कर सकें.’
संपर्क करने पर अन्य कई ओटीटी प्लेटफॉर्म ने इस संबंध में टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है, लेकिन फिल्मकारों ओर लेखकों ने अपनी राय खुलकर जाहिर की.
लेखकों और निर्देशकों के एक तबके ने बुधवार को कहा कि ओटीटी (ओवर द टॉप) प्लेटफॉर्म को सूचना और प्रसारण मंत्रालय के दायरे में लाए जाने के निर्णय से वैश्विक स्तर पर भारतीय कंटेंट क्रियेटरों को नुकसान हो सकता है तथा इससे निर्माताओं और यहां तक कि दर्शकों की रचनात्मक एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है.
नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम और डिज्नी प्लस हॉटस्टार जैसे ओटीटी मंचों तथा ऑनलाइन समाचार एवं समसामयिक मामलों से जुड़ी सामग्री को मंत्रालय के दायरे में लाए जाने के फैसले पर निराशा व्यक्त करने वालों में हंसल मेहता और रीमा कागती जैसे फिल्मकार शामिल हैं.
अमेजॉन प्राइम वीडियो पर आए शो ‘मेड इन हैवेन’ में जोया अख्तर और अलंकृता श्रीवास्तव के साथ मिलकर काम करने वाली फिल्मकार कागती का कहना है, ‘वैश्विक मंच पर प्रतिद्वंद्विता में यह भारतीय कंटेंट क्रियेटरों के लिए नुकसानदेह साबित होगा. मुझे इसके कानूनी असर का पता नहीं है. अभी इसके बारे में बात करना जल्दबाजी होगी. हमें इंतजार करना चाहिए और आशा करना चाहिए कि जो भी दिशा-निर्देश या नीति आने वाली है उससे चीजें स्पष्ट होंगी.’
उन्होंने कहा, ‘हालांकि अब तक सेंसर को लेकर कुछ नहीं कहा गया है, सिर्फ इतना कहा गया है है कि यह सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत आ रहा है.’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘ए’ (वयस्क) प्रमाणपत्र मिलने के बावजूद क्रियेटर्स से कई सीन काटने को कहा जाता है.
ओटीटी प्लेटफॉर्म सोनीलिव पर हाल ही में रिलीज हुई वेब सीरीज ‘स्कैम 1992’ के साथ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर कदम रखने वाले मेहता का कहना है कि फैसला अप्रत्याशित नहीं था, लेकिन यह निराशाजनक है.
मेहता ने कहा, ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने का यह प्रयास सही नहीं है. मैं बहुत निराश हूं.’
निर्देशक एवं लेखक अंशुमन ने फैसले को ‘अस्वीकार्य’ बताया और दर्शकों तथा क्रियेटरों से इसे चुनौती देने की अपील की.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)