85 वर्षीय सौमित्र चटर्जी कोविड संक्रमित होने के बाद क़रीब एक महीने से कई बीमारियों के चलते अस्पताल में भर्ती थे. सत्यजीत रे की अपुर संसार से फिल्मी सफर शुरू करने वाले चटर्जी को पद्मभूषण समेत ढेरों राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था.
कोलकाता/नई दिल्ली: बांग्ला फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता सौमित्र चटर्जी का रविवार को कई बीमारियों की वजह से एक महीने से ज्यादा समय तक अस्पताल में भर्ती रहने के बाद रविवार को निधन हो गया. वह 85 वर्ष के थे.
जिस अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था उसने एक बयान जारी कर यह जानकारी दी. चटर्जी को कोविड-19 से पीड़ित पाए जाने के बाद छह अक्टूबर को अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
उनका संक्रमण ठीक हो गया था, लेकिन उनकी सेहत में सुधार नहीं हुआ क्योंकि वह तंत्रिका तंत्र संबंधी जटिलताओं समेत कई अन्य बीमारियों से भी पीड़ित थे.
अस्पताल ने एक बयान में कहा, ‘हम बेहद भारी मन से यह घोषणा कर रहे हैं कि श्री सौमित्र चट्टोपाध्याय ने बेल व्यू क्लीनिक में आज (15 नवंबर 2020) को 12 बजकर 15 मिनट पर आखिरी सांस ली. हम उनकी आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चटर्जी के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि उनका दिवंगत होना विश्व सिनेमा के साथ-साथ पश्चिम बंगाल और पूरे देश के सांस्कृतिक जीवन के लिए बहुत बड़ी क्षति है.
শ্রী সৌমিত্র চট্টোপাধায়ের প্রয়াণ চলচ্চিত্র জগত, পশ্চিমবঙ্গ সহ ভারতের সাংস্কৃতিক পরিমন্ডলে এক অপূরণীয় ক্ষতি। তাঁর কাজের মধ্যে বাঙালির চেতনা, ভাবাবেগ ও নৈতিকতার প্রতিফলন পাওয়া যায়। তাঁর প্রয়াণে আমি শোকাহত। শ্রী চট্টোপাধ্যায়ের পরিবার ও অনুরাগীদের সমবেদনা জানাই। ওঁ শান্তি ।
— Narendra Modi (@narendramodi) November 15, 2020
मोदी ने ट्वीट कर कहा, ‘श्री सौमित्र चटर्जी का निधन विश्व सिनेमा के साथ-साथ पश्चिम बंगाल और पूरे देश के सांस्कृतिक जीवन के लिए बहुत बड़ी क्षति है. उनके निधन से अत्यंत दुख हुआ है. परिजनों और प्रशंसकों के लिए मेरी संवेदनाएं. ओम शांति!’
Best known for his films with Satyajit Ray, Soumitra Da was conferred with Legion of Honor, Dadasaheb Phalke Award, Banga Bibhushan, Padma Bhushan & several National Awards. A great loss. Saddened. Condolences to his family, the film fraternity & his admirers across the world 2/2
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) November 15, 2020
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चटर्जी के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनके जाने से बांग्ला सिनेमा अनाथ हो गया.
चटर्जी ने प्रख्यात फिल्म निर्देशक दिवंगत सत्यजीत रे की 14 फिल्मों समेत 300 से ज्यादा अन्य फिल्मों में अभिनय किया.
उन्होंने समानांतर सिनेमा के साथ ही व्यवसायिक फिल्मों में विभिन्न किरदारों में खुद को बखूबी ढाला. उन्होंने मंच पर भी अभिनेता, पटकथा लेखक और निर्देशक के तौर पर अपनी मौजूदगी का एहसास कराया.
वे विश्व सिनेमा के श्रेष्ठ उदाहरण थे जिन्होंने देश, राज्य और भाषा की सीमाओं से परे सत्यजीत रे की सिनेमाई दृष्टि को अभिव्यक्ति प्रदान की और फिल्मी पर्दे पर उन्हें दक्षता के साथ साकार किया.
चटर्जी की फिल्मी शख्सियत सिर्फ रे के आभामंडल तक ही सीमित नहीं थी, ठीक उसी तरह जैसे वह कभी सिर्फ बंगाली सिनेमा के बंगाली सितारे नहीं रहे.
सौमित्र चटर्जी अब नहीं रहे लेकिन उनका काम हमेशा मौजूद रहेगा. फिल्म ‘अपुर संसार’ से फिल्मी सफर की शुरुआत करने वाले चटर्जी ने अपनी पहली ही फिल्म से दर्शकों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ी.
फिल्म में एक शोक में डुबे विधुर का किरदार निभा रहे चटर्जी का आखिरकार अपने बेटे से जुड़ाव होता है.
1959 में आई इस फिल्म के साथ रे की प्रसिद्ध अपु त्रयी [Apu Trilogy] पूरी हुई थी और इससे विश्व सिनेमा से चटर्जी का परिचय हुआ. इसके बाद की बातें इतिहास में दर्ज हो गईं.
अपु त्रयी की पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ थी. जानकर बताते हैं कि चटर्जी ने 1957 में रे की ‘अपराजितो’ के लिए ऑडिशन दिया था, जो इस त्रयी की दूसरी फिल्म थी, लेकिन निर्देशक को किशोर अपु का किरदार निभाने के लिए तब 20 वर्ष के रहे अभिनेता की उम्र ज्यादा लगी थी.
हालांकि इसके बाद चटर्जी रे के संपर्क में बने रहे और आखिरकार ‘अपुर संसार’ में उन्हें अपु का किरदार निभाने का मौका मिला, जिसमें दाढ़ी के साथ उनके लुक को दर्शकों ने काफी पसंद किया. ऐसा कहा जाता है कि यह रे को युवा टैगोर की याद दिलाता था.
आने वाले दशकों में चटर्जी ने फिल्मों और थियेटर में कई तरह के किरदार निभाए और कविता व नाटक भी लिखे.
कलकत्ता में 1935 में जन्मे चटर्जी के शुरुआती वर्ष नादिया जिले के कृष्णानगर में बीते, जहां उन्होंने स्कूली शिक्षा प्राप्त की. चटर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बंगाली साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री ली थी.
अभिनय से चटर्जी को पहली बार पारिवारिक नाटकों में उनके दादा और वकील पिता ने रूबरू कराया. वो दोनों भी कलाकार थे.
सत्यजीत रे के पसंदीदा अभिनेता ने उनकी ‘देवी’ (1960), ‘अभिजन’ (1962), ‘अर्यनेर दिन रात्रि’ (1970), ‘घरे बायरे’ (1984) और ‘सखा प्रसखा’ (1990) जैसी फिल्मों में काम किया.
दोनों का करीब तीन दशक का साथ 1992 में रे के निधन के साथ छूटा. साल 2012 में चटर्जी ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए कहा था, ‘… उनका मुझ पर काफी प्रभाव था. मैं कहूंगा कि वह मेरे शिक्षक थे. अगर वह वहां नहीं होते तो मैं यहां नहीं होता.’
उन्होंने मृणाल सेन, तपन सिन्हा और तरुण मजूमदार जैसे दिग्गजों के साथ भी काम किया.
बताया जाता है कि इस बीच बॉलीवुड से कई ऑफर के बावजूद उन्होंने कभी वहां का रुख नहीं किया क्योंकि उनका मानना था कि अपने अन्य साहित्यिक कामों के लिए इससे उनकी आजादी खत्म हो जाएगी.
योग के शौकीन चटर्जी ने दो दशकों से भी ज्यादा समय तक एकसान पत्रिका का संपादन किया.
चटर्जी ने दो बार पद्मश्री पुरस्कार लेने से भी इनकार कर दिया था और 2001 में उन्होंने राष्ट्रीय पुरस्कार लेने से भी मना कर दिया था. उन्होंने जूरी के रुख के विरोध में यह कदम उठाया था.
बाद में 2004 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया और 2006 में उन्होंने ‘पोड्डोखेप’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता. 2012 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
उन्हें 2018 में फ्रांस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘लीजन डी ऑनर’ से भी सम्मानित किया गया. इससे अलावा भी वह कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं.
उनके परिवार में पत्नी दीपा चटर्जी, बेटी पॉलोमी बासु और बेटा सौगत चटर्जी हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)