साल 2018 में उत्तर प्रदेश के देवरिया और बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर स्थित बाल गृहों में यौन शोषण का मामला सामने आने के बाद सरकार ने देश के सभी बाल गृहों की सामाजिक ऑडिट करने का आदेश दिया था. ऑडिट किए गए 7,163 बाल गृहों में से 1,504 में अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है, जबकि 434 के शौचालयों और स्नानगृह में निजता की व्यवस्था नहीं है.
नई दिल्ली: देशभर की 2,764 बाल गृह संस्थाओं में बच्चों को किसी भी प्रकार के शारीरिक या भावनात्मक शोषण से बचाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, जिससे बच्चों को आघात का सामना करना पड़ता है. यह जानकारी सरकार की सामाजिक ऑडिट रिपोर्ट से सामने आई है.
उत्तर प्रदेश के देवरिया और बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर स्थित बाल गृहों में रहने वाली लड़कियों के यौन शोषण का मामला 2018 में सामने आने के बाद सरकार ने देशभर के सभी बाल गृहों की सामाजिक ऑडिट करने का आदेश दिया था.
देश के 7,163 बाल गृहों के ऑडिट किया गया, जिनमें 2.56 लाख बच्चे रहते हैं. ऑडिट में पाया गया कि कुल संस्थाओं में से करीब 40 (2764) संस्थाएं ऐसी हैं, जिनमें बच्चों को किसी भी प्रकार के शारीरिक या भावनात्मक शोषण से बचाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, जिससे उन्हें शारीरिक या मानसिक आघात का सामना करना पड़ता है.
राज्यों की बात करें तो रिपोर्ट के अनुसार, अंडमान और निकोबार में 93.8 प्रतिशत, त्रिपुरा में 86.8 प्रतिशत और कर्नाटक में 74.2 प्रतिशत बाल गृहों में बच्चों के साथ होने वाली किसी भी तरह की प्रताड़ना को रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने कहा कि ऐसी व्यवस्था की कमी से बच्चों को बाल गृहों में शारीरिक और भावनात्मक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ सकता है.
रिपोर्ट में कहा गया कि 1,504 बाल गृहों में अलग शौचालय की व्यवस्था नहीं है, जबकि 434 बाल गृह संस्थाओं के शौचालयों और स्नानगृह में निजता की व्यवस्था नहीं है.
रिपोर्ट के अनुसार, 373 बाल गृहों में सफाई, उम्र और मौसम के हिसाब से कपड़े तथा अन्य सामान की कमी है. इसके अलावा 1,069 बाल गृहों में रहने वाले बच्चों के लिए अलग बिस्तर की व्यवस्था नहीं है.
रिपोर्ट के अनुसार, 28.5 प्रतिशत (2039) बाल गृह अभी तक पंजीकृत नहीं हैं. इतना ही नहीं महाराष्ट्र के करीब 88 प्रतिशत, इसके बाद हिमाचल प्रदेश के 51 प्रतिशत और दिल्ली के 46 प्रतिशत बाल गृहों पंजीकृत नहीं हैं.
रिपोर्ट में कहा गया कि 90 प्रतिशत बाल गृहों के प्रबंधन समितियां हैं, लेकिन उनमें से 85 प्रतिशत की नियमित बैठक नहीं होती.
एनसीपीसीआर के एक अधिकारी ने कहा, ‘यदि यह बैठक नहीं होती है तो इसका अर्थ है कि बाल गृह का उत्तरदायित्व किसी के पास नहीं है. लगभग 23 प्रतिशत बाल गृहों में भोजन पकाने वाला कोई नहीं है तो भोजन कौन बनाता है? लगभग 48 प्रतिशत बाल गृहों में कॉउंसलर नहीं हैं.’
उन्होंने कहा कि 29 प्रतिशत बाल गृहों में ऐसे कर्मचारी हैं, जिनके पास बच्चों के पुनर्वास का प्रशिक्षण ही नहीं है.
उन्होंने कहा कि लगभग 70 फीसदी बाल गृहों ने अपने कर्मचारियों को बाल अधिकार संरक्षण का प्रशिक्षण नहीं दिया है. उन्होंने कहा कि इसके अलावा 61 प्रतिशत बाल गृह ऐसे हैं, जिन्होंने बच्चों को संभालने का प्रशिक्षण नहीं दिया है.
उन्होंने कहा कि ऑडिट रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर के एक बाल गृह में गंभीर मामले सामने आए थे.
अधिकारी ने बताया कि हमने उस बाल गृह के रखरखाव में कुछ नियमों का उल्लंघन पाया था. चूंकि आयोग खुद इतनी अव्यवस्था को जानकार हैरान था तो सरकार को रिपोर्ट देने से पहले उसने खुद उस बाल गृह का दौरा किया और रिपोर्ट में लिखे तथ्यों को सही पाया.
अधिकारी ने कहा, ‘बाल गृह की भौतिक हालत इतनी खराब थी कि भरोसा करना मुश्किल था. लड़कियों के लिए बने स्नानघर में दरवाजे नहीं थे और सामान्य रखरखाव भी संतोषजनक नहीं था.’
उनके अनुसार, ‘बच्चे वहां बाल कल्याण समिति के आदेश के बिना रह रहे थे. संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को बाल गृह की इस दशा को स्पष्ट करने के बारे में कहा गया है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)