मनु का क़ानून और हिंदू राष्ट्र के नागरिकों के लिए उसके मायने

हिंदू राष्ट्र का ढांचा और उसकी दिशा मनुस्मृति में बताए क़ानूनी ढांचे के अंतर्गत ही तैयार होंगे और ये क़ानून जन्म-आधारित असमानता के हर पहलू- सामाजिक, आर्थिक और लैंगिक, सभी को मज़बूत करने वाले हैं.

//
(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

हिंदू राष्ट्र का ढांचा और उसकी दिशा मनुस्मृति में बताए क़ानूनी ढांचे के अंतर्गत ही तैयार होंगे और ये क़ानून जन्म-आधारित असमानता के हर पहलू- सामाजिक, आर्थिक और लैंगिक, सभी को मज़बूत करने वाले हैं.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)
(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

हाल ही में चेन्नई में भाजपा ने अपनी नई नेता खुशबू के नेतृत्व में तमिलनाडु के सांसद थिरुमावलवन द्वारा मनुस्मृति के बारे में की गई टिप्पणियों के विरोध में प्रदर्शन किया गया था. यह शायद भाजपा द्वारा मनुस्मृति के समर्थन में पहला सार्वजनिक प्रदर्शन था. ऐसा लगता है कि संघ परिवार अब खुलकर इस पुरातन ग्रंथ के पक्ष मे हमलावर रुख अपनाकर सामने आना वाला है.

दरअसल, 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर के तमाम संवैधानिक और जनतांत्रिक अधिकारों की समाप्ति की पहली सालगिरह को इस नए तेवर का संकेत मिल चुका था.

कश्मीर की जनता पर इस बड़े हमले का इस्तेमाल भारत के अकेले मुस्लिम बहुल राज्य की इस विशेषता को समाप्त करने के लिए किए जाने की पूर्ण संभावना है, इसलिए इस हमले को संघ परिवार के पुराने सपने- हिंदू राष्ट्र की स्थापना को साकार करने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम के रूप मे देखा जा सकता है.

5 अगस्त, 2020 को बाबरी मस्जिद के भग्नावशेष पर बनने वाले राम मंदिर के भूमि पूजन के अवसर पर आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने निम्नांकित श्लोक का पाठ किया

एतद् देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः. स्वं स्वं चरित्रं शिक्षेरन् पृथिव्यां सर्वमानवाः ll139ll {2.20}

उस देश में जन्मे एक प्रथम जन्मे हुए (अर्थात ब्राह्मण) से
पृथ्वी पर तमाम मनुष्य अपने क्रमबद्ध कर्तव्य को सीखे

(अध्याय 1, पृष्ठ- 173, मनुस्मृति, डॉ. सुरेंद्र कुमार द्वारा संशोधित और संपादित, अर्श साहित्य प्रचार ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित और आरएसएस द्वारा विश्वसनीय संस्करण के रूप में प्रमाणित.)

2014 के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद पैदा हुए उत्साह से भरपूर भागवत ने केवल देश मे हिंदू राष्ट्र की स्थापना का संकेत ही नहीं दिया बल्कि मनुस्मृति के इस श्लोक का पाठ करके उन्होंने यह भी स्पष्ट कर दिया कि हिंदू राष्ट्र का आधार मनुस्मृति द्वारा वर्णित वर्णाश्रम धर्म होगा, जिसमें ब्राह्मण की श्रेष्ठता निहित है.

ऐसा करके उन्होंने 30 नवंबर 1949 को संघ द्वारा घोषित विचारों कि पुष्टि की. भारत के संविधान के पारित होने के 4 दिन बाद ही संघ के मुखपत्र ‘ऑर्गनाइज़र’ में प्रकाशित एक लेख का कहना था कि

‘भारत के इस नए संविधान की सबसे बुरी बात यह है कि इसमे भारतीय कुछ भी नहीं है… प्राचीन भारत के अद्भुत संवैधानिक विकास के बारे मे इसमें कोई ज़िक्र ही नहीं है…आज तक मनुस्मृति मे दर्ज मनु के कानून दुनिया की प्रशंसा का कारण हैं और वे स्वयंस्फूर्त आज्ञाकारिता और अनुरूपता पैदा करते हैं… हमारे संवैधानिक विशेषज्ञों के लिए यह सब निरर्थक है.’

चुनावी मजबूरियों के चलते संघ परिवार ने अगले सात दशकों तक मनुस्मृति के प्रति अपनी निष्ठा को ज़ाहिर नहीं किया. उन्हें पता था कि ऐसा करने से वे भारतीय समाज के बड़े हिस्से को खुद से और अपने राजनीतिक प्रभाव से दूर कर देते.

फिर भी, उसने समय-समय पर संविधान से अपनी मूल असहमति व्यक्त करते हुए प्रस्तावना से ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘समाजवादी’ हटाने की मांग की. वाजपेयी सरकार ने संविधान मे आवश्यक संशोधन सुझाने के लिए एक कमेटी भी गठित कर डाली, लेकिन इसका कोई परिणाम नहीं निकला.

2014 और 2019 में भाजपा की चुनावी जीत के बाद संघ परिवार ने बड़ी तेज़ी और शातिर अंदाज़ के साथ उन संवैधानिक संस्थाओं पर हमला किया, जिनमें भारतीय समाज को अधिक समान और न्यायपूर्ण बनाने की क्षमता थी.

उसने ऐसे कानून और नीतियों को तैयार किया, जिनका सबसे अधिक दुष्परिणाम महिलाओं, दलितों, पिछड़ों आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को बर्दाश्त करना पड़ा है.

उनके द्वारा लगातार बढ़ाए जा रहे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के माहौल ने इस प्रक्रिया में बहुत सहयोग किया- सबसे अधिक असमान लोगों की असमानता और भी अधिक बढ़ा दी गई और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के चलते इसके विरुद्ध आक्रोश और प्रतिरोध भी काफी मंद पड़ गया.

हिंदू राष्ट्र की बुनियादी सोच से प्रेरित यह कार्य पिछले 6 वर्षों से चल रहा है. इस प्रक्रिया से तमाम लोग चिंतित हैं लेकिन बहुसंख्यक समुदाय का बड़ा हिस्सा आश्वस्त है कि इससे केवल अल्पसंख्यकों के लिए खतरा पैदा हो रहा है.

जहां तक उनका अपना सवाल है उन्हें लगता है कि उन्हें इस नई समाज-रचना द्वारा एक वर्चस्व का स्थान प्राप्त होगा. सच्चाई इससे बिल्कुल परे है.


यह भी पढ़ें: मोदी ख़ुद को आंबेडकर का ‘शिष्य’ बताते हैं, लेकिन मनु पर दोनों के नज़रिये में फ़र्क़ दिखता है


हिंदू राष्ट्र का ढांचा और उसकी दिशा मनु के कानूनी ढांचे के अंतर्गत ही तैयार होंगे. यह कानून जन्म-आधारित असमानता के हर पहलू को मजबूत करने वाला हैं- सामाजिक, आर्थिक (पेशे से संबंधित) और लैंगिक.

यह असमानताएं कभी न समाप्त होने वाली हैं. इनसे कभी छुटकारा नहीं मिल सकता. जन्म से ही समाज में स्थान तय होगा, पेशा तय होगा. यह पेशे ‘पवित्र’ और ‘अपवित्र’ माने गए हैं और जो जितना असमान है, उसके लिए उतना ही अधिक अपवित्र पेशा तय किया गया है.

पेशा बदलने का प्रयास, घोर पाप समझा गया है. इस संदर्भ में सवर्णों द्वारा पिछड़ों और दलितों के शिक्षा और सरकारी पेशों के क्षेत्रों में विधान द्वारा दिया गया आरक्षण का अधिकार, जिसे कभी भी पूरी तरह लागू नहीं किया गया है, के प्रति घोर रोष को देखने की आवश्यकता है.

यही वह क्षेत्र हैं जिनमें मनुस्मृति उनका प्रवेश वर्जित करती है. उसके अनुसार, अपने पेशे को बदलकर अपने से ऊंची जाति के पेशे को प्राप्त करने का विचार करना भी दंडनीय पाप है.

पिछले 6 सालों में आरक्षण की नीति पर हुए तमाम सरकारी प्रहार मनुवादी प्रहार के रूप में देखे जा सकते है. सच तो यह है कि असली आरक्षण की नीति तो मनुस्मृति में देखने को मिलती है- सवर्ण जातियों के लिए शिक्षा और अच्छे पेशों का संपूर्ण आरक्षण.

इसी आरक्षण को सवर्णों का एक हिस्सा, जो भाजपा का अंध समर्थक है, फिर से पाने की फेर में है. हालांकि उसे पाकर भी उनकी बेरोजगारी दूर होने वाली नहीं है.

महिलाओं की असमानता तो उनके जन्म से जुड़ी हुई है ही और उसे तरह-तरह से मनुस्मृति बनाए रखती है. उनको नियंत्रित रखने के लिए जो तमाम बंधन तैयार किए गए हैं, वह उन्हीं कि नहीं बल्कि पूरे समाज की असमानता बनाए रखने के लिए अनिवार्य हैं.

मनुस्मृति के अनुसार, समाज की सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था- वर्ण-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए हर जाति के अंतर्गत ‘पवित्र’ संतान का पैदा होना अनिवार्य है, ऐसी संतान जिसके माता-पिता एक ही जाति के हैं. मिश्रित जाति की संतान के पैदा होने से, वर्णव्यवस्था ही समाप्त हो जाएगी.

पवित्र संतान ही पैदा करने के लिए महिलाओं को नियंत्रित रखना और उनके अंदर अपने लिए बनाए गए बंधनों के तोड़ने के लिए बताए गए सख्त दंड के भय को बनाए रखना ज़रूरी है. यही उनकी असमानता और अधिकार-विहीन होने का राज़ है.

वर्णाश्रम धर्म को बनाए रखना ही मनुस्मृति का उद्देश्य है. इसके लिए तमाम असमानताओं के साथ-साथ वह न्याय प्रक्रिया द्वारा लोगों के प्रति जाति-आधारित भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने को उचित ठहराता है.

हमारे संविधान और आधुनिक न्यायिक प्रणाली के मूल सिद्धांत- हरेक को सामान्य रूप से न्याय पाने का अधिकार- के लिए मनुस्मृति में कोई स्थान नहीं है.

इसके अनुसार, न्यायिक प्रक्रिया अपराधी की जाति और अपराध सहने वाले/वाली की जाति के अनुसार फैसला सुनाएगी है. अपराध एक, सज़ा अनेक.

मनुस्मृति के समर्थक और संघ परिवार के पैरोकार उसकी बुनियादी असमानता के भाव से इनकार करते हैं. वे लगातार यह सिद्ध करने की कोशिश करते रहते हैं कि उनकी श्रद्धा कर्म-आधारित वर्णव्यवस्था के प्रति है, न कि जन्म-आधारित.

उनके अनुसार प्राचीन भारत में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त थे. लेकिन मनुस्मृति के कुछ ही श्लोकों का उदाहरण देकर इनकी प्रस्तावनाओं को गलत साबित किया जा सकता है.

(सभी उद्धरण मनोज पब्लिकेशंस की सुरेंद्रनाथ सक्सेना द्वारा संपादित और अनूदित ‘मनुस्मृति’ से लिए गए हैं.)

मनुस्मृति की शुरुआत इस तरह होती है: अध्याय 1, श्लोक 33: संसार की वृद्धि के लिए ब्रह्म ने अपने मुख से ब्राह्मण की, भुजाओं से क्षत्रियों की, ऊरु से वैश्यों की, पैरों से शूद्रों कि सृष्टि की.

(टिप्पणी): … समाज मे जो लोग ज्ञान-विज्ञान की साधना करते हैं वे समाज के मुख (ब्राह्मण) हैं, जो अत्याचारियों से समाज की रक्षा करते हैं वे हाथ (क्षत्रिय) हैं, जो व्यापार-उद्योग आदि करते हैं वे जंघा हैं (वैश्य) और जो सेवा या नौकरी का कार्य करते हैं ये पैर (शूद्र) हैं.

इस श्लोक से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि दलितों का वर्णव्यवस्था में कोई स्थान है ही नहीं- वे जाति प्रणाली के बाहर हैं और इसीलिए उन्हें पहले ‘अछूत’ कहा जाता था.

दलितों की स्थिति को इस तरह से स्पष्ट किया गया है- अध्याय 10, श्लोक 51: चांडाल व श्वपच को ग्राम के बाहर रहना चाहिए, निषिद्ध पात्रों का प्रयोग करना चाहिएउन्हे शवों से उतारे तथा फटे पुराने वस्त्र पहनने चाहिए. इस दो जाति के लोगों के बर्तन मिट्टी के व आभूषण लोहे के होने चाहिए.  

‘कर्म-आधारित’ वर्णव्यवस्था की बात की काट मनुस्मृति में बच्चों के नामकरण से संबंधित श्लोक करते है-

अध्याय 2, श्लोक 33: …ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक शब्द से युक्त होना चाहिए… क्षत्रिय का नाम बलपूर्वक शब्द से युक्त होना चाहिए, वैश्य का नाम धन सूचक होना चाहिएशूद्र का नाम सेवाव्रती का सूचक होना चाहिए.  

यही नहीं, तीनों द्विज जातियों के जनेऊ भी अलग तरह के धागे के बने होने चाहिए. इन दोनों संस्कारों के समय, बच्चों की योग्यता तो दिखाई देती नहीं है, तो फिर यही माना जाएगा कि उनमें किया जा रहा फर्क उनके जन्म पर आधारित है.


यह भी पढ़ें: हिंदुत्ववादियों का मनुस्मृति से ‘मोह’ छूट नहीं रहा है


प्राचीन काल में महिलाओं के पुरुषों के समान अधिकार प्राप्ति को नकारने वाले तमाम श्लोक हैं. जैसे – अध्याय 5, श्लोक 151: स्त्री को बचपन में अपने पिता के अधीन, युवा होने पर हाथ ग्रहण करने वाले पति के अधीन तथा पति की मृत्यु के पश्चात पुत्र के अधीन रहना चाहिए. उसे स्वतंत्र कभी नहीं रहना चाहिए.

(152) स्त्री को पिता, पति तथा पुत्र से स्वतंत्र नहीं रहना चाहिए. इनसे अलग होकर रहने वाली स्वतंत्र स्त्री अपने दोनों कुलों को कलंकित करती है.

(157) पतिव्रता नारी को चरित्रहीन, कामी तथा गुणों से रहित पति की भी सेवा करनी चाहिए. उसे अपने पति को देवता के समान मानना चाहिए.

पुरुषों के लिए इस तरह के कोई नियंत्रण नहीं हैं. उनके लिए तो यह कहा गया है- अध्याय 5, श्लोक 172 : यदि पुरुष पतिव्रता स्त्री का दाह संस्कार करने के पश्चात संतान उत्पन्न करने के लिए दूसरा विवाह करता है तो उसे फिर से अग्निहोत्र आदि करना चाहिए.

पुरुष एक से अधिक विवाह करने के लिए आज़ाद हैं. बस जाति-आधारित नियमों का पालन करना आवश्यक है.

अध्याय 3, श्लोक 12: ब्राह्मण को अपनी ब्राह्मण जाति के अलावा क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र जाति की कन्याओं से भी विवाह करने का अधिकार है

इस तरह अपने से नीची जाति की महिला से दूसरी शादी करने का अधिकार क्षत्रिय और वैश्य को भी है…परंतु शूद्र को केवल शूद्र कन्या से ही शादी करने का अधिकार है.

इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि जहां पुरुषों को एक से अधिक महिलाओं से संबंध रखने की अनुमति है, इस अनुमति में भी वर्ण-श्रेष्ठता का पूरा ध्यान रखा गया है.

महिला पुरुष से निम्न स्तर पर है, लेकिन क्षत्रिय महिला का वैश्य पुरुष से ऊंचा स्थान है और ब्राह्मण महिला का क्षत्रिय पुरुष से ऊंचा स्थान है.

द्विज वर्णों की श्रेष्ठता को बनाए रखने के लिए जाति-आधारित पेशों का बंटवारा मनुस्मृति मे अनिवार्य समझा गया है. इसलिए अपनी जाति के लिए आरक्षित पेशों के अलावा अन्य पेशों को अपनाना या ऐसा सोचना दंडित पाप बताया गया है.

अध्याय 8, श्लोक 410, 412, 413,417: राजा का कर्तव्य है कि वह वैश्यों द्वारा व्यापार की रक्षा करवाए तथा शूद्रों द्वारा द्विजातियों की रक्षा करवाएचाहे वह खरीदा गया हो अथवा नहीं लेकिन शूद्र से ही सेवा करवानी चाहिए.

शूद्रों की उत्पत्ति ब्राह्मणों की सेवा के उद्देश्य से हुई हैशूद्रों को यदि उसके स्वामी से मुक्त करा भी लिया जाए, तो भी यह सेवा क्रम से मुक्त नहीं हो सकता क्योंकि सेवा उसका स्वाभाविक धर्म है, इससे कोई भी उसे मुक्त नहीं कर सकताराजा को चाहिए कि वह वैश्यों व शूद्रों को बलपूर्वक उनके नियत कार्यों मे लगाए रखे.

वर्ण और वर्ग के एक दूसरे के साथ संबंध को मनुस्मृति दिलचस्प तरीके से रेखांकित करता है. वह द्विज जातियों को भी अपने पेशे तक सीमित रहने की हिदायत देता है और कहता है कि अगर वे अपने से निचली जातियों के पेशों को अपनाते हैं तो फिर उनका स्तर उन्हीं के बराबर गिर जाएगा.

बहुत सारे उच्च जाति के लोग भी मजदूर, किसान, कारीगर और कर्मचारी हैं. उन्हें अपनी जाति पर बहुत गर्व है और उन्हें लगता है कि हिंदू राष्ट्र में उनका जाति-वर्चस्व बना ही नहीं रहेगा बल्कि वह और भी महत्वपूर्ण हो जाएगा.

दरअसल उनके लिए समझना आवश्यक है कि मनु के नियम कामकाजी लोगों को शूद्रों की ही श्रेणी मे धकेलकर उनके शोषण को सही ठहराते है.

भाजपा सरकार द्वारा मजदूरों और किसानों के अधिकारों पर किए जा रहे कुठाराघात इस संदर्भ में देखे जाने चाहिए. वह तमाम मेहनतकश जनता को गुलामी की उस अवस्था मे लाना चाहती है, जिसे मनुस्मृति उचित ठहराती है.

द्विजों द्वारा पेशा बदलने के संबंध मे मनुस्मृति के कुछ उदाहरण- अध्याय 10 श्लोक 91: वह ब्राह्मण तुरंत भ्रष्ट हो जाता है जो मांस, लाख और नमक का व्यापार करे. दूध बेचने वाला ब्राह्मण तीन दिन में ही शूद्र तुल्य हो जाता है.

आगे यह भी कहा गया है कि राजा को उन ब्राह्मणों के साथ शूद्र जैसा व्यवहार करना चाहिए जो पशु चराते हैं, व्यापार करते हैं, कलाकार बनते हैं या सूद पर ऋण देते हैं.

अध्याय 10, श्लोक 96: स्वधर्म चाहे कितना ही तुच्छ व निस्सार क्यों न हो वह श्रेष्ठ व आचरण योग्य होता है. दूसरे के धर्म को अपनाना अनुचित है. ऐसे करने वाला अपनी जाति से भ्रष्ट हो जाता है.

मनुस्मृति असमानता पर आधारित न्यायिक प्रणाली को उचित ठहराती है. भाजपा की सरकार के चलते इस प्रक्रिया की शुरुआत हो गई है. यह इस बात का संकेत है कि पूरी तरह से हिंदू राष्ट्र की स्थापना के बाद, मनुवादी न्याय प्रणाली संवैधानिक न्याय प्रणाली कि जगह ले लेगी.

मनुस्मृति मे आसमान न्याय प्रणाली के तमाम उदाहरण हैं – अध्याय 8, श्लोक 267, 268: यदि क्षत्रिय ब्राह्मण को अपशब्द कहे तो उस पर सौ पणों का, वैश्य को डेढ़ सौ पणों का अर्थदंड लगाना चाहिए तथा शूद्र को मृत्युदंड देना चाहिए.

269: ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य को यदि शूद्र द्वारा अपशब्द बोले जाएं, तो उस शूद्र की दंड स्वरूप जिह्वा काट लेनी चाहिए. तुच्छ वर्ण का होने के कारण उसे यही दंड मिलना चाहिए.

270: यदि कोई शूद्र अहंकारवाश ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य के नाम और जाति से उच्चारण करता है, तो उसके मुंह पर लोहे की दस उगल जलती हुई कील ठोंक देनी चाहिए.

271: जो शूद्र अहंकार के वशीभूत होकर ब्राह्मण को धर्मोपदेश देता है, राजा को उसके मुंह व कान मे गरम तेल डलवा देना चाहिए.

ब्राह्मण की हत्या से बड़ा कोई पाप नहीं माना गया है और उसके लिए अलग-अलग भयांकर दंड सुनाए गए हैं, लेकिन ब्राह्मण अगर हत्या करे तो उसे दंड अन्य प्रकार का मिलेगा.

अध्याय 11, श्लोक 130: जिस ब्राह्मण ने शूद्र का वध किया है उसे इस सारे व्रत को छह महीने के लिए करना चाहिए तथा एक ब्राह्मण को एक बैल तथा ग्यारह सफेद गाय दान में देना चाहिए. (यानी शूद्र की हत्या के बाद ब्राह्मण द्वारा दंड मे दिए जाने वाले बैल और गाय भी एक अन्य ब्राह्मण को ही दिये जाएंगे!)

इस तरह का एक अन्य उदाहरण- अध्याय 8, श्लोक 365: यदि नीच वर्ण का पुरुष उच्च वर्ण की कन्या के साथ व्यभिचार करता है तो उसे मृत्युदंड मिलना चाहिए और समान वर्ण वाला पुरुष अपने ही वर्ण की कन्या से सहवास करता है, तो कन्या के पिता की सहमति से उस पुरुष द्वारा कन्या के पिता को शुल्क देना चाहिए.

378: जहां अन्य वर्णो का वास्तविक वध ही मृत्युदंड होता है, वहां ब्राह्मण का सिर मुंडवाना ही उसके लिए मृत्यदंड तुल्य है.

379: ब्राह्मण चाहे कितने ही और कितने महान पाप क्यों न करे, उसका वध अथवा पिटाई कभी न करें

380: ब्राह्मण हत्या से बढ़कर इस दुनिया में अन्य और कोई पाप नहीं. अत: राजा को अपने मन में ब्राह्मण वध का विचार भी नहीं लाना चाहिए.

अध्याय 11, श्लोक 66 में गाय के वध को बड़ा पाप माना गया है. शायद यही कारण है कि भाजपा के राज में गाय को मारने के शक पर ही मुसलमान, जो मनुस्मृति द्वारा म्लेच्छ या सबसे तुच्छ की श्रेणी में माने गए हैं, को घेरकर जान से मार डालना उचित ठहराया जाता है.

मनुस्मृति में दर्ज तमाम अमानवीय और विचलित करने वाली बातों का जब उल्लेख किया जाता है, तब बहुत से समझदार लोग कहते हैं कि यह सब बीते हुए दिनों की बातें हैं,  अब ऐसा हो ही नहीं सकता है.

लेकिन मनुस्मृति में 8 तरह की विवाह-प्रथाओं को विभिन्न द्विज जातियों के लिए उचित ठहराने का उल्लेख है. इनमें कुछ तो अपहरण और बलात्कार ही हैं.

अध्याय 3, श्लोक 23: …राक्षस तथा पैशाच विवाह किसी के लिए ठीक नहीं है. श्लोक 24: प्राचीन ऋषियों के अनुसार… क्षत्रिय के लिए राक्षस विवाह उत्तम बताया जाता है.  

राक्षस विवाह कैसा होता है, उसका विवरण इस प्रकार है – 33: कन्या पक्ष वालों की हत्या कर अथवा उनके हाथपांव का छेदन कर तथा घरद्वार आदि तोड़ कर रोती या गाली देती हुई कन्या का बल से हरण कर अपने अधिकार में करना राक्षस विवाह कहा जाता है.

2,000 साल पुराने यह डरावने शब्द जिस वीभत्स घटनाक्रम को चित्रित करते हैं वह क्या आज दोहराया नहीं जा रहा है?

बलात्कार को उचित ठहराने वाली पुरानी बातें क्या नया रूप लिए लौटकर नहीं आई हैं? बल के हरण के दौरान की वे चीखें, रोना- कोसना…  क्या वह आज हमारे कानों में फिर गूंज नहीं रहा है?

2,000 हज़ार साल पहले इस बल के हरण की प्रक्रिया को उचित ठहराने वाली बात क्या हाथरस में एक बार फिर सुनाई नहीं दे रही है?

फिर पढ़िए उस श्लोक को और याद कीजिए कि इस बल से हरण की प्रक्रिया पर विवाह के एक पद्धति होने की मुहर लगाई गई है; उस श्लोक के बल पर आज आधुनिक भारत की एक सरकार अपराधी को न्याय का संरक्षण दे रही है.

यही है मनुवाद का असली चेहरा.

(सुभाषिनी अली पूर्व सांसद और माकपा की पोलित ब्यूरो सदस्य हैं.)

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq