पंजाब में किसानों ने नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ बीते एक अक्टूबर से अनिश्चितकालीन ‘रेल रोको’ आंदोलन शुरू किया था. रेलवे ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के कारण 3,850 मालगाड़ियों का संचालन प्रभावित हुआ है. अब तक 2,352 यात्री ट्रेनों को रद्द किया गया या उनके मार्ग में परिवर्तन किया गया है.
नई दिल्ली: रेलवे ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र के कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ किसानों द्वारा जारी विरोध के कारण उसे यात्री राजस्व में 67 करोड़ रुपये सहित 2,220 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
उसने कहा कि 24 सितंबर से शुरू हुए विरोध प्रदर्शन के कारण 3,850 मालगाड़ियों का संचालन प्रभावित हुआ है. अब तक 2,352 यात्री ट्रेनों को रद्द किया गया या उनके मार्ग में परिवर्तन किया गया.
प्रदर्शनकारी किसानों और रेलवे के बीच अभी गतिरोध बना हुआ है क्योंकि रेलवे ने प्रदर्शनकारियों के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया है कि राज्य में केवल मालगाड़ियों को ही चलने दिया जाएगा.
रेलवे ने कहा, ‘यात्री ट्रेनों को रद्द करने के कारण राजस्व घाटा 67 करोड़ रुपये है. आईआर स्तर पर कमाई का कुल नुकसान 2,220 करोड़ रुपये है.’
उसने कहा कि पंजाब के लिए लगभग 230 भरे हुए डिब्बे (रेक) इस समय राज्य के बाहर खड़े हैं. इनमें कोयले के 78 डिब्बे, उर्वरक के 34, सीमेंट और पेट्रोलियम, तेल के आठ और इस्पात और अन्य वस्तुओं को ले जाने वाले 102 कंटेनर शामिल हैं.
वहीं, उत्तर रेलवे को मालगाड़ियों में लदान नहीं होने के कारण प्रतिदिन 14.85 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा है.
रेलवे ने कहा कि पंजाब में ही लगभग 33 रेक फंसे हुए हैं.
रेलवे ने कहा है कि उसे राज्य सरकार से पूर्ण गारंटी की आवश्यकता है कि कोई भी ट्रेन बाधित नहीं होगी और यात्री और मालगाड़ियों दोनों को ही चलने दिया जाएगा.
हालांकि, किसानों का कहना है कि वे मालगाड़ियों को चलने देंगे लेकिन यात्री ट्रेनों के लिए कोई गारंटी नहीं दे सकते है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक पंजाब में पांच थर्मल पावर प्लांटों को कोयला नहीं मिलने के कारण, उर्वरक की आपूर्ति बंद हो गई है. उसी प्रकार राज्य के गोदामों से खाद्यान्न की निकासी नहीं हुई है. लुधियाना में होजरी बेल्ट (कपड़ा) से निर्यात के लिए सामग्री ले जाने वाले कंटेनर संचालन भी बंद हो गया है.
रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) के महानिदेशक अरुण कुमार ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘कानून और व्यवस्था राज्य सरकार का विषय है. यह उनके ऊपर है कि वे प्रदर्शनकारियों से कैसे निपटना चाहते हैं. हमने राज्य सरकार से बार-बार कहा है कि सभी प्रकार की ट्रेनों को सुरक्षित रूप से चलाने के लिए पटरियों को हमें सौंप दिया जाए.’
उन्होंने कहा, ‘जब तक प्रदर्शनकारी रेल पटरियों और स्टेशन परिसर के आसपास बैठे हैं, तब तक कोई गारंटी नहीं कि वे ट्रेनों को बाधित नहीं करेंगे.’
रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार सुबह पटियाला जिले में शंभू स्टेशन पर 10 किसान यूनियनों के प्रदर्शनकारी स्टेशन के भीतर और बाहर डेरा डाले हुए थे. सुबह 4 बजे से शिफ्ट बदलते ही 29 किसानों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया.
वहीं, बीकेयू (राजेवाल) के ब्लॉक अध्यक्ष और शंभू में मोर्चा के मुख्य आयोजक हजूरा सिंह (57) ने कहा कि वे 1 अक्टूबर को ओवरब्रिज के पास पटरियों पर उतरे थे. किसानों में बहुत गुस्सा था, लगभग 21 दिनों के लिए पटरियों पर जाम लगा दिया था.
बीते 21 अक्टूबर को 30 किसान यूनियनों ने मालगाड़ियों के लिए पटरियों को साफ करने का फैसला किया और प्रदर्शनकारियों को प्लेटफार्मों पर ले जाया गया. तीन दिनों तक मालगाड़ियां चलीं. उसके बाद रेलवे ने 24 अक्टूबर को इस दलील पर मालगाड़ियों को रोक दिया कि उनके कर्मचारियों को सुरक्षा का डर है.
घर्मा गांव के पूर्व सरपंच नाथू लाल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘एक अभूतपूर्व स्थिति का सामना करते हुए राज्य सरकार ने यूनियनों से प्लेटफार्मों को खाली करने का आग्रह किया था. उसके बाद 5 नवंबर से हम पार्किंग में चले गए, अब हम कभी प्लेटफॉर्म में नहीं आते हैं, यहां तक कि पानी पीने के लिए भी नहीं. लेकिन रेलवे अभी भी हम पर गाड़ियों को रोकने का आरोप लगा रहा है.’
रेल मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने एक बार मालगाड़ी सेवाओं को फिर से शुरू करने की पेशकश की है. रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष वीके यादव ने कहा कि प्रदर्शनकारियों की इच्छा के अनुसार केवल मालगाड़ियों को चलाना संभव नहीं है.
बता दें कि किसान केंद्र सरकार द्वारा पारित नए कृषि कानूनों के खिलाफ बीते एक अक्टूबर से अनिश्चितकालीन ‘रेल रोको’ आंदोलन शुरू किया था. राज्य में कई जगहों पर ट्रेन की पटरियों को अवरुद्ध कर दिया गया था.
बीते 27 सितंबर को विरोध के बीच राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने तीन कृषि विधेयकों को मंज़ूरी दी थी. ये विधेयक हैं- किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020.
सरकार का दावा है कि नए कानूनों के जरिये कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार की जाएगी. हालांकि किसानों एवं विशेषज्ञों को इस बात को लेकर चिंता है कि यदि ये कानून लागू किया जाता है तो एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समितियों) और एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) व्यवस्था खत्म हो जाएगी.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)