भाषाविद और नामचीन लेखक नॉम चोम्स्की और पत्रकार विजय प्रसाद को शुक्रवार को ‘टाटा लिटरेचर लाइव फेस्टिवल’ में एक सेशन में चोम्स्की की नई किताब पर चर्चा करनी थी, जिसे ऐन समय पर आयोजकों द्वारा ‘अप्रत्याशित परिस्थितियों’ का हवाला देते हुए रद्द कर दिया गया था.
नई दिल्ली: जाने-माने लेखक और भाषाविद नॉम चोम्स्की और पत्रकार विजय प्रसाद ने ‘टाटा लिटरेचर लाइव फेस्टिवल’ में होने वाली उनकी ऑनलाइन चर्चा को अचानक रद्द किए जाने पर खेद व्यक्त किया और जानना चाहा कि क्या यह कदम सेंसरशिप का परिणाम है.
चोम्स्की की नई किताब ‘इंटरनेशनलिज्म ऑर एक्सटिंग्शन’ पर शुक्रवार रात नौ बजे चर्चा होनी थी, लेकिन दोपहर एक बजे चोम्स्की और प्रसाद को ईमेल भेज कर बताया गया कि अब यह कार्यक्रम आयोजित नहीं होगा.
कार्यक्रम रद्द हो जाने की सूचना मिलने के बाद प्रसाद ने ट्वीट किया, ‘नॉम और मैं टाटा लिटरेचर फेस्टिवल में नॉम की नई किताब पर चर्चा करने वाले थे. कार्यक्रम के कुछ ही घंटे पहले अचानक हमारे पैनल ‘अप्रत्यशित परिस्थितियों’ के चलते रद्द कर दिया गया.’
Noam Chomsky and I were to speak at the Tata Lit festival about Noam's latest book. Our panel was abruptly cancelled just hours before it was to go live. Noam and I have written this statement, https://t.co/0UC3hOE6yW
— Vijay Prashad (@vijayprashad) November 20, 2020
इसके दोनों ने एक बयान जारी करके कहा कि उन्हें कार्यक्रम को रद्द किए जाने की जानकारी ईमेल करके दी गई.
उन्होंने संयुक्त बयान में कहा, ‘तब अचानक भारतीय समय अनुसार दोपहर एक बजे हमें एक ईमेल मिला जिसमें कहा गया था ‘मुझे यह सूचित करते हुए दुख हो रहा है कि अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण हमें आपकी चर्चा आज रद्द करनी पड़ रही है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘चूंकि हम नहीं जानते कि टाटा और अनिल धारकर (फेस्टिवल डायरेक्टर) ने हमारा सेशन रद्द करने का निर्णय क्यों लिया, हम केवल कयास लगा सकते है और पूछ सकते हैं: क्या यह सेंसरशिप है?’
इस कार्यक्रम के रद्द होने से पहले गुरुवार को चोम्स्की और प्रसाद ने बताया था कि वे कार्यक्रम शुरू करते हुए एक बयान पढ़ना चाहते हैं, जो इस बात को साफ करता है कि ‘वे कॉर्पोरेशंस, खासतौर पर टाटा के बारे में क्या सोचते हैं.’
इससे पहले एक पत्र में कई कार्यकर्ताओं, कलाकारों और शिक्षाविदों ने चोम्स्की से इस लिटफेस्ट का बहिष्कार करने को कहा था क्योंकि टाटा समूह, जो इसका मुख्य स्पॉन्सर है, उसका ‘जबरन विस्थापन, मानवाधिकारों के उल्लंघन और पर्यावरणीय लूट का एक लंबा इतिहास रहा है.’
लंबे समय से चोम्स्की अमेरिकी पूंजीवाद और कॉरपोरेट हितों के मुखर आलोचक रहे हैं, वहीं विजय प्रसाद ट्राईकॉन्टिनेंटल इंस्टिट्यूट फॉर रिसर्च के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं.
अपने बयान में इन दोनों ने शुक्रवार को अपने बयान में कहा कि वे दोनों इस चर्चा के लिए राजी हुए थे क्योंकि उन्हें विश्वास था कि किताब का थीम- परमाणु युद्ध के खतरे, जलवायु संकट, ख़त्म होता लोकतंत्र- को विस्तृत चर्चा और प्रसार की जरूरत है.
उन्होंने यह भी जोड़ा था कि समारोह के स्पॉन्सर को लेकर संदेह में होने के बावजूद वे कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर खुश थे.
बयान में आगे कहा गया था, ‘हम इस ग्रह को खतरे में डालने वाले व्यापक मुद्दों को लेकर बात करने वाले थे, लेकिन फिर भी हम भारत जैसे देशों की विशेष भूमिका और टाटा जैसे कॉर्पोरेशंस के बारे में भी बात करते.’
चोम्स्की और प्रसाद ने यह भी कहा था कि ‘ख़त्म होता लोकतंत्र’ भारत के लिए गंभीर विषय है, साथ ही उन्होंने नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएए) और ‘बहुत अधिक धन के जोर से हजारों-करोड़ों गरीब मतदाताओं की आवाज दबाने की समस्या जैसे उदाहरण’ को लेकर चिंता जाहिर की थी.
उनके बयान में यह भी कहा गया था कि ‘भाजपा के नेतृत्व जैसी सरकारें और टाटा जैसी कॉर्पोरेशंस मानवता को बिना किसी देर के और गहरे संकट में ला जा रही हैं.’
उन्होंने यह भी कहा, ‘हम कुछ तथ्य सामने रखना चाहते हैं जिससे संवेदनशील लोग समझ सकें कि टाटा कंपनी के पीछे क्या छिपा है- 2006 ने ओडिशा के कलिंगा नगर में टाटा स्टील फैक्ट्री के निर्माण का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे आदिवासियों की हत्या में भूमिका, करीब दस साल पहले छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में प्रस्तावित टाटा स्टील फैक्ट्री के लिए वहां की आबादी को डरने के लिए निजी मिलिशिया (सेना) का इस्तेमाल, भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा कश्मीर के लोगों के खिलाफ टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स हथियारों का प्रयोग और ओडिशा के सुकिंदा में टाटा स्टील द्वारा जल स्रोतों में छोड़े गए हेक्सावेलेंट क्रोमियम छोड़ने से उसका दुनिया की चौथी सबसे प्रदूषित जगह बनना.’
बयान में आखिर में कहा गया, ‘हमें खेद है कि हम मुंबई लिटफेस्ट, जो अब टाटा कॉर्पोरेशंस का ही है और उनके द्वारा ही चलाया जा रहा है, में चर्चा नहीं कर सके. जल्द ही हमारे समय के इन ज्वलंत मुद्दों पर बातचीत के लिए नई जगह और तारीख तय की जाएगी.’
इसके बाद शनिवार शाम को इस समारोह की जिम्मेदारी संभाल रहे अनिल धारकर ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि उन्होंने फेस्टिवल डायरेक्टर की हैसियत से यह फैसला लिया, जो ‘इस सेशन की अखंडता बचाने के लिए लिया गया था.’
उन्होंने कहा, ‘इस सेशन की सुबह हमें सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध एक बातचीत की जानकारी मिली, जिसमें नॉम चोम्स्की, विजय प्रसाद और कार्यकर्ताओं के एक समूह ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि इस मंच का इस्तेमाल टाटा जैसे कॉर्पोरेशंस और खास तौर पर टाटा के बारे में उनके विचार साझा करने के लिए भी किया जाएगा… जो कभी भी इस सेशन का उद्देश्य नहीं था.’
उन्होंने आगे कहा कि ‘यह फेस्टिवल की सफलता का श्रेय विचारों की मुक्त अभिव्यक्ति है, न कि किसी व्यक्ति के विशेष एजेंडा की अभिव्यक्ति. इसलिए ऐसा कोई भी एजेंडा- भले ही वो किसी विशिष्ट संस्था, कॉर्पोरेशन या व्यक्ति का हो- हमारे फेस्टिवल में होने वाली चर्चाओं के लिए ठीक नहीं है.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)