आरोप है कि भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बैजयंत पांडा की कंपनी ने क़ानून का उल्लंघन करते हुए दलितों की ज़मीन ख़रीदी थी. इसे लेकर दर्ज एफ़आईआर को ओडिशा हाईकोर्ट ने ख़ारिज करने से मना कर दिया. पांडा इससे पहले मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजद से सांसद रह चुके हैं.
नई दिल्ली: भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बैजयंत पांडा को बड़ा झटका देते हुए ओडिशा हाईकोर्ट ने उनकी स्वामित्व वाली कंपनी द्वारा कथित तौर पर धोखाधड़ी से दलित समुदाय की जमीन खरीदने वाले मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है.
ओडिशा पुलिस आईपीसी की विभिन्न धाराओं एवं एससी/एसटी (अत्याचार से रोकथाम) कानून के तहत इस मामले की जांच कर रही है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने पूर्व के सभी आदेशों को खारिज करते हुए पांडा एवं उनकी पत्नी जागी, जो कि ओडिशा इन्फ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड (ओआईपीएल) कंपनी में सह-प्रमोटर हैं, की गिरफ्तारी का भी रास्ता साफ कर दिया है. हाईकोर्ट ने इससे पहले एक अंतरिम आदेश पारित कर इनकी गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी.
पांडा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उनके एवं ओआईपीएल के खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज करने की मांग की थी.
हालांकि बैजयंत पांडा ने इन आरोपों को खारिज किया और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक पर बदले की राजनीति करने का आरोप लगाया है. जागी पांडा ने एक बयान में कहा, ‘हमारे द्वारा कुछ भी गलत नहीं किया गया है और हम निश्चिंत हैं कि कोर्ट में यह साबित भी हो जाएगा.’
शुक्रवार को जारी आदेश में जस्टिस बीपी रौत्रे ने कहा, ‘मैं इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहता हूं, खासकर ऐसे समय में जब जांच लंबित है. इस तरह याचिकाकर्ताओं की मांग खारिज की जाती है और सभी अंतरिम आदेश खत्म किए जाते हैं.’
पांडा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि ये एफआईआर दुर्भावना से ग्रसित है और इसे सत्ताधारी दल के निर्देश पर दर्ज किया है. हालांकि कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा था कि इसका कोई प्रमाण नहीं है.
बीते एक नवंबर को को ओडिशा पुलिस के आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने ओडिशा इन्फ्राटेक प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मनोरंजन सारंगी को अवैध तरीके से जमीन खरीदने के मामले में गिरफ्तार किया था. सारंगी एक निजी चैनल ओटीवी के मुख्य वित्तीय अधिकारी भी हैं. यह चैनल बैजयंत पांडा के परिवार के स्वामित्व में है.
सेठी दलित समुदाय से आते हैं और एक समय वे पांडा की कंपनी ओआरटीईएल कम्यूनिकेशन लिमिटेड में ड्राइवर थे.
इस संबंध में 31 अक्टूबर को ओडिशा पुलिस के आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ ने एफआईआर दर्ज की थी. इसमें कहा गया था, दलित समुदाय से आने वाले रवींद्र कुमार सेठी, जो पांडा की कंपनी ओआरटीईएल कम्यूनिकेशन लिमिटेड में ड्राइवर थे, पर पांडा ने दबाव डालकर उनसे ओडिशा के खुर्दा जिला में साल 2010 से 2013 के बीच 22 दलित परिवारों से 7.294 एकड़ की जमीन खरीदवाई थी.
यह कथित रूप से राज्य के उन कानूनों को दरकिनार उल्लंघन था, जो गैर-दलितों द्वारा दलितों के स्वामित्व वाली भूमि की खरीद को रोकता है.
एफआईआर के अनुसार, कथित रूप से बाजार मूल्य से 50 फीसदी कम दर पर ये जमीन खरीदी गई थी. इसके बाद ओआईपीएल द्वारा 65 लाख रुपये में ये जमीन सेठी से ले ली गई, लेकिन उन्हें कोई राशि अदा नहीं की गई थी.
ओडिशा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘सेठी और जिनसे जमीन खरीदी गई है, उनके बीच कोई वित्तीय लेन-देन नहीं हुआ था. अगली खरीद के लिए भी पांडा द्वारा सेठी को कोई पैसा नहीं दिया गया था. सब कुछ सिर्फ कागज पर है, जो कि नकद लेन-देन और बेनामी अधिनियम के तहत अपराध का संकेत है. सेठी और अन्य (जिनसे जमीन खरीदी गई थी) ने मजिस्ट्रेट के सामने अपने बयान दर्ज कराए हैं.’
ओडिशा में भूमि राजस्व अधिनियम के तहत दलितों को गैर-दलितों को अपनी जमीन बेचने पर रोक लगी हुई है, जब तक कि जिला कलेक्टर इसकी इजाजत न दे दे.
एक बयान में जागी पांडा ने कहा है, ‘पिछले दो महीनों में ओडिशा पुलिस ने ओटीवी, इसकी सहयोगी कंपनियों, कर्मचारियों और मेरे परिवार के सदस्यों, जिसमें मेरे 84 वर्षीय पिता भी शामिल हैं, के खिलाफ 20 झूठे केस दर्ज किए हैं. हम इन आरोपों को खारिज करते हैं.’
बयान के अनुसार, ‘हम दावा करते हैं कि हमारे खिलाफ ये मामले मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के हमसे निजी प्रतिशोध के कारण ओडिशा में 21 साल पुरानी बीजद सरकार की शह पर दर्ज किए गए हैं.’
मालूम हो कि बैजयंत पांडा पूर्व में नवीन पटनायक के पार्टी बीजू जनता दल (बीजद) के वरिष्ठ सांसद रह चुके हैं. कुछ मतभेदों के कारण वे बीजद से अलग हो गए थे और साल 2019 के मार्च महीने में भाजपा में शामिल हो गए थे.
बीजद ने उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के आधार पर पार्टी से निलंबित कर दिया था. इसके बाद उन्होंने पार्टी और लोकसभा की सदस्यता से त्याग-पत्र दे दिया था. साल 2009 और 2014 में पांडा ओडिशा की केंद्रपाड़ा सीट से लोकसभा के लिए चुने गए थे, जबकि 2000 से 2009 तक राज्यसभा सदस्य रहे थे.
बीजद ने उन पर पार्टी विरोधी और धन शोधन गतिविधियों में शामिल होने का भी आरोप लगाया था. हालांकि पांडा ने इन आरोपों से इनकार किया था.