आरबीआई द्वारा गठित एक आंतरिक कार्य समूह ने पिछले सप्ताह सिफ़ारिश की थी कि कॉरपोरेट घरानों को बैंक शुरू करने का लाइसेंस दिया जा सकता है. रेटिंग एजेंसी एस एंड पी ने कहा है कि भारत में बड़ी कंपनियों के पिछले कुछ साल में क़र्ज़ लौटाने को लेकर चूक देखते हुए हमें बैंकों में कॉरपोरेट क्षेत्र को स्वामित्व देने की अनुमति को लेकर संदेह है.
नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा है कि कॉरपोरेट घरानों को बैंक स्थापित करने की मंजूरी देने की सिफारिश आज के हालात में चौंकाने वाली बात है. इस कदम को ‘बॉम्बशेल’ (विस्फोटक यानी खतरनाक) बताया है, जो कुछ व्यापारिक घरानों में आर्थिक और राजनीतिक शक्ति को और बढ़ा सकता है.
दोनों का मानना है कि बैंकिंग क्षेत्र में कारोबारी घरानों की संलिप्तता के बारे में अभी आजमायी गईं सीमाओं पर टिके रहना अधिक महत्वपूर्ण है.
आरबीआई द्वारा गठित एक आंतरिक कार्य समूह (आईडब्ल्यूजी) ने पिछले सप्ताह कई सुझाव दिए थे. इस कार्य समूह का गठन देश के निजी क्षेत्र के बैंकों में स्वामित्व से संबंधित दिशानिर्देशों और कंपनी संचालन संरचना की समीक्षा करने के लिए किया गया था.
इन सुझावों में यह सिफारिश भी शामिल है कि बैंकिंग विनियमन अधिनियम में आवश्यक संशोधन करके बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंक शुरू करने का लाइसेंस दिया जा सकता है.
साथ ही समिति ने निजी क्षेत्र के बैंकों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी मौजूदा 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 26 प्रतिशत करने की भी सिफारिश की है.
राजन और आचार्य ने एक साझा आलेख में यह भी कहा कि इस प्रस्ताव को अभी छोड़ देना बेहतर है.
आरबीआई के समूह ने यह सिफारिश भी की है कि आपस में जुड़ी इकाइयों के बीच कर्ज तथा बैंकों तथा अन्य वित्तीय संस्थानों के बीच निवेश को रोकने के लिए बैंकिंग नियमन कानून, 1949 में जरूरी संशोधन के बाद कंपनियों को बैंकों के नियंत्रण की अनुमति दी जा सकती है.
इसके अलावा समूह ने बड़े औद्योगिक समूह के लिए निगरानी प्रणाली को मजबूत किए जाने का भी प्रस्ताव किया है.
आलेख में कहा गया है, ‘जुड़ी हुई बैंकिंग का इतिहास बेहद त्रासद रहा है. जब बैंक का मालिक कर्जदार ही होगा, तो ऐसे में बैंक अच्छा ऋण कैसे दे पाएगा? जब एक स्वतंत्र व प्रतिबद्ध नियामक के पास दुनियाभर की सूचनाएं होती हैं, तब भी उसके लिए खराब कर्ज वितरण पर रोक लगाने के लिए हर कहीं नजर रख पाना मुश्किल होता है.’
आलेख में कार्य समूह के प्रस्ताव की ओर इशारा करते हुए कहा गया कि बड़े पैमाने पर तकनीकी नियामकीय प्रावधानों को तार्किक बनाए जाने के बीच यह (कॉरपोरेट घरानों को बैंक का लाइसेंस देने संबंधी सिफारिश) सबसे महत्वपूर्ण सुझाव ‘चौंकाने वाला है.’
आलेख में कहा गया, ‘इसमें प्रस्ताव किया गया है कि बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग क्षेत्र में उतरने की मंजूरी दी जाए. भले ही यह प्रस्ताव कई शर्तों के साथ है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है: ऐसा अभी क्यों?’
यह आलेख रघुराम राजन के लिंक्डइन प्रोफाइल पर सोमवार को पोस्ट किया गया. इसमें कहा गया, ‘आंतरिक कार्य समूह ने बैंकिंग अधिनियम 1949 में कई अहम संशोधन का सुझाव दिया है. इसका उद्देश्य बैंकिंग में कॉरपोरेट घरानों को घुसने की मंजूरी देने से पहले रिजर्व बैंक की शक्तियों को बढ़ाना है.’
दोनों लेखकों ने कहा, ‘यदि अच्छा नियमन व अच्छी निगरानी सिर्फ कानून बनाने से संभव होता तो भारत में गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) की समस्या नहीं होती. संक्षेप में कहा जाए तो तकनीकी रूप से तार्किक बनाने पर केंद्रित आंतरिक समूह के कई सुझाव अपनाये जाने योग्य हैं, लेकिन इसका मुख्य सुझाव यानी बैंकिंग में कॉरपोरेट घरानों को उतरने की मंजूरी देना अभी पड़े रहने देने लायक है.’
राजन और आचार्य ने कहा कि दुनिया के कई अन्य हिस्सों की तरह भारत में बैंकों को शायद ही कभी विफल होने दिया जाता है. यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक को हाल में जिस तरह से बचाया गया है, यह इसी का उदाहरण है.
उन्होंने कहा कि इसी कारण से जमाकर्ताओं को यह भरोसा होता है कि अधिसूचित बैंकों में रखा उनका पैसा सुरक्षित है. इससे बैंकों के लिए जमाकर्ताओं के रखे पैसे के बड़े हिस्से का इस्तेमाल करना आसान हो जाता है.
रिजर्व बैंक के दोनों पूर्व अधिकारियों ने कहा कि बैंकिंग क्षेत्र में बड़े कॉरपोरेट घरानों को उतरने नहीं देने के पीछे दो वजहें हैं.
पहला तर्क है कि औद्योगिक घरानों को वित्तपोषण की जरूरत होती है. यदि उनके पास अपना बैंक होगा तो वे बिना किसी सवाल के आसानी से पैसे ले लेंगे. दूसरा कारण है कि बैंकिंग में कॉरपोरेट घरानों के उतरने से कुछ कारोबारी घरानों की आर्थिक व राजनीतिक ताकतें बढ़ जाएंगी.
रिपोर्ट के अनुसार, आरबीआई के दोनों पूर्व अधिकारियों ने इस ओर भी इशारा किया है कि आंतरिक कार्य समूह ने खुद यह नोट किया है कि समिति ने जिन विशेषज्ञों से सलाह ली उनमें से अधिकतर ने यह राय जाहिर की कि बड़े कॉरपोरेट समूहों और घरानों को बैंक चलाने की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए और फिर भी समिति ने उसके उलट सिफारिश की.
वैश्विक रेटिंग संस्था ने बताया जोखिम भरा प्रस्ताव
कॉरपोरेट घरानों को बैंक स्थापित करने की मंजूरी देने की सिफारिश ने दुनियाभर का ध्यान खींचा है. यहां तक कि वैश्विक रेटिंग संस्था एस एंड पी ग्लोबल ने इसे एक जोखिम भरा प्रस्ताव करार दिया है.
एस एंड पी ग्लोबल रेटिंग्स ने भारत में पिछले कुछ साल में कर्ज लौटाने में बड़ी कंपनियों की चूक की परिस्थिति और कंपनी संचालन की कमजोरियों का उल्लेख करते हुए बड़े औद्योगिक घरानों को बैंक चलाने का लाइसेंस दिए जाने के सुझाव पर संदेह जताया है.
उसने यह भी कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को ऐसे समय गैर-वित्तीय क्षेत्र की निगरानी में मुश्किल होगी, जब वित्तीय क्षेत्र की हालत कमजोर है.
रेटिंग एजेंसी एस एंड पी ने एक बयान में कहा, ‘भारत में बड़ी कंपनियों के पिछले कुछ साल में कर्ज लौटाने को लेकर चूक और कंपनी संचालन की व्यवस्था की कमजोरियों को देखते हुए हमें बैंकों में कॉरपोरेट क्षेत्र को स्वामित्व देने की अनुमति देने को लेकर संदेह है.’
उसने कहा कि इसके अलावा ऐसे समय जब देश के वित्तीय क्षेत्र की स्थिति कमजोर है, आरबीआई को गैर-वित्तीय क्षेत्र की इकाइयों की निगरानी को लेकर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा तथा इससे केंद्रीय बैंक की निगरानी प्रणाली पर दबाव बढ़ सकता है.
एस एंड पी ने कहा, ‘आरबीआई के समूह ने कंपनियों को बैंक खोलने की अनुमति देने में हितों के टकराव, आर्थिक शक्ति का संकेंद्रण तथा वित्तीय स्थिरता को लेकर चिंता जतायी है. निश्चित रूप से इसमें जोखिम है. बैंकों पर कंपनियों के स्वामित्व से संबंधित समूह के बीच कर्ज का वितरण, कोष का दूसरे कार्यों में उपयोग तथा साख को नुकसान का जोखिम बढ़ेगा. साथ ही इससे वित्तीय क्षेत्र में कंपनियों के चूक के मामले बढ़ने के भी आसार हैं.’
रेटिंग एजेंसी ने कहा कि बड़ी कंपनियों के चूक को देखते हुए भारतीय कंपनियों का प्रदर्शन पिछले कुछ साल से कमजोर रहा है. मार्च 2020 की स्थिति के अनुसार कंपनी क्षेत्र का गैर-निष्पादित कर्ज (एनपीएल) कुल कॉरपोरेट कर्ज का करीब 13 प्रतिशत है. जबकि मार्च 2018 में यह करीब 18 प्रतिशत था. एनपीए का यह स्तर बताता है कि भारत में अन्य देशों की तुलना में जोखिम ज्यादा है.
हालांकि अमेरिकी रेटिंग एजेंसी एस एंड पी ने कहा कि आरबीआई समिति की बेहतर तरीके से प्रबंधित गैर-वित्तीय कंपनियों को पूर्ण रूप से बैंक लाइसेंस दिए जाने की सिफारिश से वित्तीय स्थिरता में सुधार की संभावना है.
उसने यह भी कहा कि आरबीआई समिति का सभी प्रकार के बैंक कार्यों यानी सार्वभौमिक बैंकों के लिए न्यूनतम नेटवर्थ बढ़ाकर 1,000 करोड़ रुपये करने के सुझाव के अमल में आने से पूंजीकरण के मोर्चे पर स्थिति बेहतर होगी. इससे अधिक पूंजी वाले प्रवर्तक ही ही बैंक क्षेत्र में आ सकेंगे.
राहुल गांधी ने समझाई क्रोनोलॉजी
कॉरपोरेट घरानों को बैंक स्थापित करने की मंजूरी देने की आरबीआई की सिफारिश की आर्थिक विशेषज्ञों के साथ विपक्ष ने भी आलोचना की है.
Chronology samajhiye:
First, karz maafi for few big companies.
Next, huge tax cuts for companies.
Now, give people's savings directly to banks set up by these same companies. #SuitBootkiSarkar pic.twitter.com/DjK2mya4EZ— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 24, 2020
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पर एक बार फिर से सूट-बूट की सरकार होने का आरोप लगाया और क्रोनोलॉजी समझाते हुए कहा कि पहले बड़ी कंपनियों की कर्ज माफी होगी, फिर उन कंपनियों को बड़े कर छूट मिलेंगे और अब इन कंपनियों के द्वारा बनाए गए बैंक में लोगों की बचत दे देना.
राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा, ‘क्रोनोलॉजी समझिए- सबसे पहले, कुछ बड़ी कंपनियों के लिए कर्ज माफी. फिर कंपनियों के लिए भारी कर कटौती. अब उन्हीं कंपनियों द्वारा स्थापित बैंकों को सीधे लोगों की बचत दें.’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)