आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने इस मामले में बीते 15 सितंबर को किसी तरह की मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी थी. साथ ही किसी तरह की जांच और किसी आरोपी के ख़िलाफ़ कार्रवाई न करने का भी आदेश दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा जांच पर लगाई गई रोक के आदेश में कोई हस्तक्षेप नहीं किया.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें अमरावती जमीन घोटाला मामले में मीडिया रिपोर्टिंग पर पाबंदी लगाई गई थी.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले में प्राथमिकी की जांच पर लगाई गई रोक सहित हाईकोर्ट के अन्य निर्देशों पर इस समय रोक लगाने से इनकार कर दिया.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अशोक भूषण, आर. सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की पीठ ने आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा हाईकोर्ट के 15 सितंबर के आदेश को चुनौती देते हुए दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान ये स्टे ऑर्डर जारी किया है.
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए जनवरी 2021 की तारीख सूचीबद्ध की है और सभी पक्षकारों को निर्देश दिया है कि इस बीच वे हलफनामा दायर करें. कोर्ट ने हाईकोर्ट से भी गुजारिश की है कि इस बीच वे मामले में कोई फैसला न लें.
आंध्र प्रदेश की नई राजधानी अमरावती में जमीन खरीद के संबंध में भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो (एसीबी) द्वारा गुंटुर थाने में राज्य के पूर्व कानून अधिकारी और अन्य के खिलाफ दर्ज एफआईआर के सिलसिले में द वायर द्वारा 15 सितंबर को एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी.
हालांकि इस रिपोर्ट के प्रकाशन के करीब घंटे भर बाद ही आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने इस एफआईआर और इसकी विषय-वस्तु की मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगा दी गई.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि इस बारे में दायर याचिका में याचिकाकर्ता के वकील ने कहा है, ‘इस एफआईआर के दर्ज होने के फौरन बाद सोशल मीडिया और अखबारों में याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के एक वर्तमान जज की दो बेटियों को लक्षित किया जाने लगा, जो दुर्भावना के इरादे से मीडिया ट्रायल के जरिये प्राधिकरण को अपमानित करना है. इसके मद्देनजर यह विनती की गई है कि एफआईआर दर्ज होने के आधार पर रिट याचिका दायर करने के बाद जांच और इसके प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया के प्रकाशन की अनुमति न दी जाए.’
चीफ जस्टिस जेके माहेश्वरी ने अपने आदेश में कहा था, ‘अंतरिम राहत के माध्यम से यह निर्देशित किया जाता है कि किसी भी आरोपी के खिलाफ इस रिट याचिका को दायर करने के बाद कोई कदम नहीं उठाया जाएगा. किसी भी तरह की पूछताछ और जांच पर भी रोक रहेगी.’
आदेश में आगे कहा गया था, ‘यह निर्देशित किया जाता है कि इस संबंध में कोई भी समाचार इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट या सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक नहीं किया जाएगा.’
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अमारावती जमीन घोटाले में दर्ज एफआईआर को लेकर जांच पर रोक लगाने के हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया है.
राज्य सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा जांच पर रोक लगाना उचित नहीं है, क्योंकि जो याचिका दायर की गई थी, उसमें मुख्य रूप से अग्रिम जमानत और मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक की मांग की गई थी.
उन्होंने कहा कि एफआईआर में 13 लोगों को नाम हैं, लेकिन हाईकोर्ट में जो याचिका दायर की गई है वो सिर्फ पूर्व एडवोकेट जनरल से जुड़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने याचिका की मांगों से बाहर जाकर आदेश दिया है.
धवन ने तथ्यों को पेश करते हुए कहा कि क्या इस मामले की जांच नहीं की जानी चाहिए? क्या हाईकोर्ट द्वारा इस पर रोक लगाना सही है?
उन्होंने कहा कि इस एफआईआर के खिलाफ जो याचिका दायर की गई है उसमें लफ्फाजी के सिवाय और कुछ नहीं है, कोई विशेष तथ्य पेश नहीं किए गए हैं. धवन ने सहारा फैसले का हवाला देते हुए मीडिया रिपोर्टिंग पर लगी रोक को तत्काल हटाने की मांग की, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया.
धवन ने सवाल किया, ‘क्या इस याचिका को लेकर कुछ विशेष बात है जो है इस तरह के आदेश पारित किए गए हैं?’
वहीं पूर्व एडवोकेट जनरल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि जब ये याचिका दायर की गई थी, तब तक एफआईआर रजिस्टर नहीं हुआ था.
उन्होंने कहा कि एफआईआर की बातें याचिका में नहीं आ सकती हैं, क्योंकि जिस दिन इस याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई होने वाली थी, उसी दिन एफआईआर दर्ज की गई थी.
रोहतगी ने आरोप लगाया कि चूंकि सरकार ने याचिकाकर्ता की छवि को खराब करने के लिए एफआईआर को मीडिया में सार्वजनिक कर दिया था, इसलिए मामले की तत्काल सुनवाई हुई.
इस एफआईआर में कई नामचीन हस्तियों के नाम हैं.