केंद्र सरकार की आर्थिक और मजदूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ मज़दूर संगठनों के आह्वान पर गुरुवार को एक दिवसीय देशव्यापी हड़ताल का विभिन्न हिस्सों में व्यापक असर देखने को मिला. इससे अलग वितरण कंपनियों के निजीकरण के ख़िलाफ़ बिजली कर्मचारियों ने भी देशभर में प्रदर्शन किया. आरएसएस से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ विरोध में शामिल नहीं रहा.
नई दिल्ली: तीन विवादित कृषि विधेयकों के खिलाफ किसानों के दिल्ली चलो मार्च से अलग भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार की आर्थिक और मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ विभिन्न मजदूर संगठनों के आह्वान पर गुरुवार को एक दिवसीय देशव्यापी हड़ताल का देश के विभिन्न हिस्सों में व्यापक असर देखने को मिला.
हड़ताल में भाग लेने वाले 10 केंद्रीय श्रमिक संगठन इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक), ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), हिंद मजदूर सभा (एचएमएस), सेंटर ऑफ इंडिया ट्रेड यूनियंस (सीटू), ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर (एआईयूटीयूसी), ट्रेड यूनियन को-ऑर्डिनेशन सेंटर (टीयूसीसी), सेल्फ-एम्प्लॉयड वीमेंस एसोसिएशंस (सेवा), ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (एआईसीसीटीयू), लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन (एलपीएफ) और युनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (यूटीयूसी) हैं.
एआईटीयूसी के महासचिव अमरजीत कौर ने कहा, ‘हड़ताल से केरल और तमिलनाडु पूरी तरह बंद रहा. ऐसी ही स्थितियां ओडिशा, पंजाब, हरियाणा, तेलंगाना और गोवा में बनी रहीं. महाराष्ट्र में भी हड़ताल को अच्छा समर्थन मिला.’
उन्होंने कहा कि बैंकों, एलआईसी, जीआईसी और आयकर विभाग में भी सेवाएं गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती हैं.
श्रमिक संगठनों ने एक संयुक्त बयान में कहा, ‘केरल, पुदुचेरी, ओडिशा, असम और तेलंगाना में हड़ताल के दौरान पूर्ण बंद रहा. तमिलनाडु के 13 जिलों में पूर्ण बंद की स्थिति रही, जबकि अन्य जिलों में औद्योगिक हड़ताल जारी रही. पंजाब एवं हरियाणा में राज्य परिवहन निगम की बसों का भी चक्का जाम रहा.’
बयान के मुताबिक झारखंड और छत्तीसगढ़ में बाल्को समेत अन्य जगहों पर पूर्ण हड़ताल रही. पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में आम जनजीवन प्रभावित रहा. पश्चिम बंगाल में छिटपुट झड़पों की खबर है.
हिंद मजदूर सभा के महासचिव हरभजन सिंह सिद्धू ने कहा कि बृहस्पतिवार की राष्ट्रव्यापी हड़ताल में करीब 25 करोड़ श्रमिकों के शामिल होने का अनुमान है.
उन्होंने कहा कि रक्षा, रेलवे, कोयला श्रमिकों समेत अन्य निजी क्षेत्र के श्रमिक संगठनों का भी इस हड़ताल को समर्थन मिला है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने हड़ताल को राजनीति प्रेरित बताते हुए इससे अलग रहने की घोषणा की है.
किसान संगठनों के संयुक्त मंच अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने भी इस आम हड़ताल को अपना समर्थन देने की घोषणा की.
यह हड़ताल केंद्र सरकार की कई नीतियों समेत विशेष तौर पर नए किसान और श्रम कानूनों के विरोध के लिए बुलाई गई थी. संगठनों ने कोरोना महामारी का हवाला देते हुए असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के खाते में 7500 रुपये भी ट्रांसफर करने की मांग भी की है.
घरेलू सहायक, निर्माण श्रमिक, बीड़ी मजदूर, रेहड़ी-पटरी वालों, कृषि मजदूर, ग्रामीण और शहरी इलाकों में स्वरोजगार करने वालों ने भी ‘चक्का जाम’ में शामिल होने की घोषणा की. कई राज्यों में ऑटोरिक्शा और टैक्सी ड्राइवरों ने भी हड़ताल में शामिल होने के लिए कहा था. रेलवे और रक्षा कर्मचारियों के संघों ने भी हड़ताल को अपना समर्थन जताया है.
सरकारी बैंकों में कामकाज आंशिक रूप से प्रभावित
मजदूर संघों की एक दिन की हड़ताल में कुछ बैंक कर्मचारी संगठनों के शामिल होने से देश भर में सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकिंग सेवाएं आशिंक रूप से प्रभावित हुईं.
इस दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के कई बैंकों की शाखाओं में जमाओं सहित नकद लेन-देन प्रभावित हुआ, जबकि विदेशी मुद्रा और सरकारी लेन-देन पर भी असर पड़ा.
हालांकि, भारतीय स्टेट बैंक और निजी क्षेत्र के बैंकों में कामकाज सामान्य रहा.
इस बीच बैंक ऑफ महाराष्ट्र सहित कई बैंकों ने अपने ग्राहकों को सूचित किया है कि वे बैंकिंग संबंधित लेन-देन और अन्य सेवाओं के लिए इंटरनेट, मोबाइल बैंकिंग और एटीएम जैसे डिजिटल माध्यमों का इस्तेमाल करें.
ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉइज एसोसिएशन (एआईबीईए), नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ बैंक एम्प्लॉइज (एनसीबीई) और बैंक एम्प्लॉइज फेडरेशन ऑफ इंडिया (बीईएफआई) से जुड़े बैंक कर्मचारी हड़ताल का समर्थन कर रहे थे.
बैंक अधिकारियों के एक संगठन- अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी) ने भी हड़ताल को समर्थन दिया था.
एआईबीईए के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने कहा कि यूनियनों की हड़ताल सरकार की श्रमिक विरोधी नीति के खिलाफ है और बैंक के कर्मचारी निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं.
वितरण कंपनियों के निजीकरण के खिलाफ बिजली कर्मचारियों का प्रदर्शन
बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों ने सरकार के वितरण कंपनियों के निजीकरण के निर्णय के विरोध में बृहस्पतिवार को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया. ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने यह जानकारी दी.
बिजली कर्मचारी विद्युत (संशोधन) विधेयक 2020 को वापस लेने और मानक बोली दस्तावेज (एसबीडी) रद्द करने की भी मांग कर रहे हैं.
26 नवम्बर – निजीकरण के विरोध व अन्य प्रमुख माँगों हेतु विरोध सभा व प्रदर्शन- अपराह्न 03 बजे से सायं 05 बजे तक। विरोध सभा व प्रदर्शन राजधानी लखनऊ सहित प्रत्येक जनपद व परियोजना मुख्यालय पर किया जाना है। pic.twitter.com/Z0JYHvaPTB
— AIPEF INDIA (@AipefIndia) November 25, 2020
एआईपीईएफ के प्रवक्ता वीके गुप्ता ने एक बयान में कहा, ‘इंजीनियर समेत बिजली क्षेत्र के लाखों कर्मचारियों ने बृहस्पतिवार को विरोध प्रदर्शन किया. उन्होंने विद्युत (संशोधन) विधेयक, 2020 को वापस लेने, एसबीडी को रद्द करने की मांग को लेकर तथा बिजली वितरण वितरण कंपनियों के निजीकरण के विरोध में विरोध प्रदर्शन किया.’
गुप्ता ने कहा कि उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाण, जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, गुजरात, मध्य प्रदेश, असम समेत अन्य राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में विरोध बैठकें की गईं.
उन्होंने कहा कि बिजली क्षेत्र में कार्यरत इंजीनियर 10 केंद्रीय श्रमिक संगठनों की हड़ताल में शामिल नहीं हुए और केवल अपनी मांगों के समर्थन में विरोध जताया.
गुप्ता ने दावा किया कि सरकार बिजली क्षेत्र में कॉरपोरेट घरानों की मदद करने के एकमात्र मकसद के साथ निजी एकाधिकार बनाने पर तुली हुई है.
एसबीडी दस्तावेज में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में वितरण कंपनियों निजीकरण का प्रस्ताव किया गया है.
एआईपीईएफ ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बिजली क्षेत्र के निजीकरण की प्रक्रिया वापस लेने और सभी मौजूदा निजीकरण तथा फ्रेंचाइजी को रद्द करने की मांग की है.
उन्होंने दावा किया कि केंद्र यह कहकर लोगों का गुमराह कर रही है कि निजीकरण के बाद बिजली सस्ती हो जाएगी.
गुप्ता ने कहा कि निजी वितरण कंपनियों को न्यूनतम 16 प्रतिशत लाभ लेने की अनुमति दी गई है. इससे बिजली की दरें उपभोक्ताओं के लिए लगभग 10 रुपये प्रति यूनिट बढ़ जाएगी.
एआईपीईएफ के अनुसार, चंडीगढ़ में बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण का रेजिडेंस वेलफेयर एसोसएिशन के साथ राजनीतिक दलों ने विरोध किया है. पुडुचेरी सरकार भी बिजली क्षेत्र के निजीकरण के खिलाफ है.
व्यापार संघ की हड़ताल से बंगाल में आम जनजीवन प्रभावित
केंद्र की आर्थिक नीतियों के विरोध में कई व्यापार संघों द्वारा बुलाई गई हड़ताल के कारण गुरुवार को पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में जनजीवन आंशिक रूप से प्रभावित हुआ.
केंद्रीय श्रमिक संगठनों की संयुक्त समिति द्वारा बुलाए गए 24 घंटे के बंद की शुरुआत सुबह छह बजे हुई.
एक अधिकारी ने कहा कि बंद समर्थक सीआईटीयू और डीवाईएफआई जैसे माकपा से संबद्ध संगठनों के कार्यकर्ताओं ने कोलकाता, जाधवपुर, गरिया, कमलगाजी, लेक टाउन और दमदम इलाकों में रैलियां निकालीं, जिससे वाहनों की आवाजाही बाधित हुई. बंद समर्थकों ने दुकानदारों से अपने प्रतिष्ठानों को बंद रखने को कहा.
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उन्होंने बताया कि बंद समर्थकों ने हावड़ा रेलवे स्टेशन के बाहर धरना दिया, वाहन चालकों से सेवाएं बंद करने को कहा लेकिन वाहनों को सामान्य रूप से चलाने के लिए पुलिस बल की एक बड़ी टुकड़ी तैनात की गई.
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अधिकारी ने कहा कि बंद लागू करने वालों ने कूचबिहार और झारग्राम जिलों में सड़कों को भी अवरुद्ध कर दिया, टायर जलाए और बसों की खिड़कियां तोड़ दी.
उन्होंने बताया कि आंदोलनकारियों ने रेलवे पटरियों को भी बाधित कर दिया था, जिससे सियालदह दक्षिण और मुख्य खंडों में रेल सेवाएं प्रभावित हुईं.
हावड़ा में डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) के एक कार्यकर्ता ने कहा कि लोग हमारे शांतिपूर्ण विरोध का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि यह उनके हित में है.
राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने हड़ताल का समर्थन नहीं किया, लेकिन कहा कि वह आर्थिक मुद्दों पर वामदलों और कांग्रेस के साथ है.
केरल करीब-करीब बंद रहा
विभिन्न मजदूर संगठनों के एक दिवसीय देशव्यापी हड़ताल का वामपंथी शासन वाले केरल में व्यापक असर देखने को मिला. इस दौरान राज्य में दुकानें नहीं खुलीं और सार्वजनिक क्षेत्र की बस सेवा केएसआरटीसी भी बंद रही.
संयुक्त मजदूर संगठनों की एक केंद्रीय समिति के आह्वान पर 24 घंटे की हड़ताल से देश के दक्षिणी राज्य में सामान्य जीवन प्रभावित हुआ और इसका असर सरकारी कार्यालयों, बैंक और बीमा सहित सभी प्रमुख क्षेत्रों पर दिखा.
26 नवंबर की ऐतिहासिक #हड़ताल संगठित व असंगठित श्रमिक का संघर्ष हैं ! @INTUCPrez के नेतृत्व में हम लड़ेंगे और जीतेंगे। @INTUCnational जिंदाबाद मजदूर एकता जिन्दाबाद! @INCIndia @RahulGandhi @priyankagandhi @INCMaharashtra @kcvenugopalmp @HKPatil1953 @bb_thorat @INCMaharashtra pic.twitter.com/3pBp2wCRnH
— Adv. Akash Jaiprakash Chhajed (@chhajedmpcc) November 26, 2020
पूरे केरल में सभी सरकारी कार्यालय और प्रमुख व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहे. सबरीमाला तीर्थयात्रियों को हड़ताल से छूट दी गई थी और मंदिर के लिए आवागमन सामान्य रूप से चलता रहा.
कुछ जिलों में छोटे दुकानदारों ने यह भी कहा कि कारोबार पूरी तरह बंद करने से उनका जीवन और भी खराब हो जाएगा, जो पहले ही कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते आर्थिक सुस्ती का सामना कर रहे हैं.
हालांकि, कोरोना वायरस महामारी के चलते मजदूर संगठनों ने रैली या जनसभा नहीं की और इसकी जगह उन्होंने शारीरिक दूरी का ध्यान रखते हुए विरोध प्रदर्शन किया और मानव शृंखला बनाईं.
मध्य प्रदेश की 7,300 बैंक शाखाओं में कामकाज ठप
सरकार की कथित तौर पर श्रमिक विरोधी नीतियों के खिलाफ हड़ताल के दौरान मध्य प्रदेश में 10 सरकारी बैंकों की 7,300 बैंक शाखाओं में कामकाज ठप रहा. इससे अलग-अलग बैंकिंग सेवाएं प्रभावित हुईं. बैंक कर्मचारियों के एक संगठन ने यह दावा किया.
मध्य प्रदेश बैंक एम्प्लॉइज एसोसिएशन (एमपीबीईए) के सचिव एमके शुक्ला ने बताया, ‘राज्य के 10 सरकारी बैंकों की 7,300 शाखाओं के करीब 18,000 अधिकारी, कर्मचारी हड़ताल में शामिल हुए.’
उन्होंने बताया कि हड़ताल से इन बैंक शाखाओं में धन जमा करने और निकालने के साथ चेक निपटान, सावधि जमा (एफडी) योजनाओं का नवीनीकरण, सरकारी खजाने से जुड़े काम और अन्य नियमित कार्य प्रभावित हुए.
शुक्ला ने बताया कि सरकारी क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक के अधिकारी, कर्मचारी हड़ताल में शामिल नहीं हुए.
उन्होंने यह भी बताया कि हड़ताली बैंक कर्मचारियों ने कोविड-19 के प्रकोप के मद्देनजर रैली नहीं निकाली और अपनी शाखाओं के बाहर तख्तियां लहराते हुए सरकार की कथित तौर पर श्रमिक विरोधी नीतियों को लेकर विरोध जताया.
मोदी सरकार द्वारा श्रम सुधार के नाम पर लाए गए तीन विधेयकों- औद्योगिक संबंध संहिता बिल 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता बिल 2020 और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशा संहिता बिल 2020– को संसद से पारित कराया है.
इन कानूनों के जरिये जहां एक तरफ सरकार ने सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ाकर इसमें गिग वर्कर और अंतर-राज्यीय प्रवासी मजदूरों को शामिल करने का प्रावधान किया है, वहीं दूसरी तरफ यह बिना सरकारी इजाजत के मजदूरों को नौकरी पर रखने एवं उन्हें नौकरी से निकालने के लिए नियोक्ता (एम्प्लॉयर) को और अधिक छूट प्रदान कर दिया है.
शेयरिंग इकोनॉमी जैसे- उबर एवं ओला के ड्राइवर, जोमैटो, स्विगी आदि के डिलीवरी पर्सन के रूप में काम करने वाले लोगों को गिग वर्कर कहा जाता है.
इस तरह की नौकरियां ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, इंडिपेंडेंट कॉन्ट्रैक्टर, ऑन-कॉल वर्कर आदि से जुड़ी हुई होती हैं, जहां कर्मचारी कंपनी से बंधे नहीं होते और वे उतने समय के लिए अपना काम चुन सकते हैं, जितने समय तक काम करना चाहते हैं.
विधेयक में सरकार ने हड़ताल पर जाने के मजदूरों के अधिकारों पर अत्यधिक बंदिश लगाने का प्रावधान किया गया है.
इसके साथ ही नियुक्ति एवं छंटनी संबंधी नियम लागू करने के लिए न्यूनतम मजदूरों की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 कर दिया गया है, जिसके चलते ये प्रबल संभावना जताई जा रही है कि नियोक्ता इसका फायदा उठाकर बिना सरकारी मंजूरी के ज्यादा मजदूरों को तत्काल निकाल सकेंगे और उसी अनुपात में भर्ती ले लेंगे.
इसके अलावा श्रम मंत्रालय ने संसद में हाल ही में पारित एक संहिता में कार्य के घंटे को बढ़ाकर अधिकतम 12 घंटे प्रतिदिन करने का प्रस्ताव दिया है. अभी कार्य दिवस अधिकतम 10.5 घंटे का होता है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)