मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने कहा कि केबल ऑपरेटरों को यह सुनिश्चित होगा कि केबल सेवा पर आने वाले कार्यक्रमों में महिलाओं का चित्रण ‘सौंदर्यमय और सुरुचिपूर्ण’ तथा ‘शालीनता के स्थापित मानदंडों के भीतर’ हो.
नई दिल्ली: मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै खंडपीठ ने हाल ही में सेक्सुअल विज्ञापनों- जिसका आशय कंडोम और कामोत्तेजक वस्तुओं के विज्ञापन से है- के प्रसारण के खिलाफ एक अंतरिम आदेश जारी किया और कहा कि ऐसी सामग्री अश्लील प्रकृति के हैं.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एन. किरुबाकरन और बी. पुगालेंधी की पीठ द्वारा पारित इस आदेश में ‘बच्चों एवं महिलाओं के हितों की रक्षा’ का हवाला दिया गया है.
याचिकाकर्ता केएस सागादेवारा ने सेक्सुअल विज्ञापनों के प्रसारण को रोकने के लिए एक जनहित याचिका दायर की थी. पीठ ने टेलीविजन पर व्यापक रूप से दिखाए जा रहे ऐसे विज्ञापनों पर भी असहमति जताई.
आदेश में कहा गया, ‘ये बेहद हैरानी की बात है कि रात में 10 बजे के करीब लगभग सभी टीवी चैनल कुछ न कुछ ऐसे विज्ञापन चलाते हैं जो कि कंडोम की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए अश्लीलता का प्रदर्शन करता है. ये विज्ञापन सभी उम्र के लोगों द्वारा देखे जाते हैं और ये सभी टीवी चैनलों पर उपलब्ध हैं.’
इसके बाद पीठ ने कहा कि इस तरह के विज्ञापन कार्यक्रमों में अश्लील सामग्री को देखकर कोई भी चौंक सकता है.
आदेश ने यह भी कहा कि नग्नता, जो कि केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 की धारा 16 के तहत दंडनीय है, विज्ञापनों में दिखाई देती है.
कोर्ट ने कहा कि केबल ऑपरेटरों को यह सुनिश्चित होगा कि केबल सेवा पर आने वाले कार्यक्रमों में महिलाओं का चित्रण ‘सौंदर्यमय और सुरुचिपूर्ण’ तथा ‘शालीनता के स्थापित मानदंडों के भीतर’ हो.
आदेश में कहा गया, ‘इसी तरह केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के नियम 7(1) के अनुसार, टेलीकास्ट किए गए कार्यक्रमों से सब्सक्राइबर्स की ‘नैतिकता’, ‘शालीनता’ और ‘धार्मिक संवेदनशीलता’ को ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए.’
इसके साथ ही कोर्ट ने माना कि ‘कंडोम और कामोत्तेजक, आंतरिक वस्त्र बेचने के नाम पर’ चलाए गए विज्ञापन केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के नियम 7(1) का उल्लंघन कर रहे थे.
कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ चैनल दिन भर ऐसे कार्यक्रम प्रसारित कर रहे थे, जिसके चलते युवा दर्शकों के दिमाग पर प्रभाव पड़ने की आशंका है.
आदेश में कहा गया, ‘डॉक्टर की सलाह नाम पर और साथ ही साथ विज्ञापनों में भी नग्नता उपलब्ध है. यह आसानी से उपलब्ध है और बच्चों सहित सभी द्वारा देखा जा रहा है.’ इसके साथ ही उन्होंने कहा कि ऐसे विज्ञापन युवाओं और बच्चों के दिमाग पर बुरा असर डालते हैं.
कोर्ट ने कहा, ‘न्याय के हित में इस संबंध में निर्देश जारी करने की जरूरत है, ताकि बच्चों एवं महिलाओं की सुरक्षा हो. इसे देखते हुए याचिका के मुताबिक एक अंतरिम आदेश जारी किया जाना चाहिए.’
पीठ ने यह भी कहा कि एक आरटीआई के जवाब से पता चलता है कि केबल टेलीविजन नेटवर्क अधिनियम और नियमों के तहत प्रोग्राम कोड और विज्ञापन कोड के उल्लंघन की निगरानी की जाती है. हालांकि कोड के तहत विज्ञापनों की पूर्व-सेंसरशिप नहीं की जा सकती है.
अदालत ने इस बात को नोट किया और सरकार से सिनेमैटोग्राफ अधिनियम 1952 की धारा 5 (ए) के तहत कार्यक्रमों के सेंसरशिप के पहलू पर जवाब देने के लिए कहा. इस मामले की अगली सुनवाई अब एक दिसंबर को होगी.
इससे पहले इन्हीं जजों वाली एक पीठ ने निर्देश दिया था कि इरांदम कुथु नामक तमिल फिल्म के टीजर को सोशल मीडिया से हटाया जाना चाहिए, क्योंकि यह अश्लीलता परोस रहा है.