बच्चों को आठवीं तक फेल नहीं करने की नीति ख़त्म करने को मंज़ूरी

सरकार की छात्रों को आठवीं तक फेल नहीं करने की नीति पर अब विराम लग जाएगा. कैबिनेट ने बुधवार को ‘नो डिटेंशन नीति’ ख़त्म करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है.

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(फोटो :पीटीआई)

सरकार की छात्रों को आठवीं तक फेल नहीं करने की नीति पर अब विराम लग जाएगा. कैबिनेट ने बुधवार को ‘नो डिटेंशन नीति’ ख़त्म करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है.

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सरकार जल्द ही आठवीं तक छात्रों को फेल न करने की नीति पर रोक लगाने वाली है. इस नीति के अनुसार आठवीं तक के छात्रों को फेल होने के बावजूद भी अगली कक्षा में प्रमोट कर दिया जाता है.

अमर उजाला की ख़बर के अनुसार नो डिटेंशन नीति ख़त्म करने से संबंधित प्रावधान को मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (आरटीई) के संशोधन बिल में शामिल किया जाएगा.

इस नीति को साल 2010 में 1 अप्रैल को यूपीए के कार्यकाल के दौरान लागू किया गया था. इसका मक़सद 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को शिक्षा के अधिकार से मुहैया कराना था. अप्रैल 2010 से लागू आरटीई कानून की ये बड़ी विशेषता रही है. पिछले कुछ वर्षों से इस नीति को कारण मानते हुए परीक्षाओं में छात्रों के ख़राब प्रदर्शन पर चर्चा चल रही है.

हिंदुस्तान टाइम्स की ख़बर के अनुसार इस संशोधन के अनुसार राज्यों को अधिकार होगा कि वे पांचवी और आठवीं कक्षा में छात्रों को फेल कर सकें. हालांकि, अगर पांचवी और आठवीं कक्षा में कोई छात्र फेल होता है तो उसे परीक्षा पास करने का एक और मौक़ा दिया जाएगा.

जैसे यदि कोई छात्र मार्च में फेल हो जाए तो उसे रेमेडियल क्लासेज दी जाएंगी और कुछ समय बाद जैसे जून में उसकी दोबारा परीक्षा होगी. यदि उसमें भी छात्र फेल होता है तभी संबंधित शिक्षा बोर्ड छात्र को फेल कर सकेंगे. ये संशोधन लागू होने के बाद परीक्षा लेने या ना लेने का निर्णय राज्य के हाथ में होगा. इस संशोधन विधेयक को संसद में मंज़ूरी के लिए रखा जाएगा.

अमर उजाला की ख़बर के अनुसार देश में 20 विश्व स्तरीय संस्थान बनाने को लेकर कैबिनेट जून तक सहमत नहीं थी, लेकिन बुधवार को इसे भी मंज़ूरी मिल गई. विश्व स्तरीय 20 विश्वविद्यालयों के लिए दस निजी और 10 सरकारी संस्थानों को चुना जाएगा. सरकार उन्हें इंफ्रास्ट्रक्चर फंड मुहैया कराएगी, जिसके लिए पांच साल में 10 हजार करोड़ रुपये खर्च होने हैं. इन संस्थानों का 10 साल के अंदर 100 सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में शामिल कराने का लक्ष्य है.

इस मामले पर अलग अलग राज्यों की प्रतिक्रियाएं आती रहीं हैं. तेलांगना और तमिलनाडु ने इस संशोधन का विरोध किया है. इस नीति के 2018 से लागू होने की संभावना है.

शिक्षा के अधिकार फ़ोरम के संयोजक अम्बरीश राय ने बताया, ‘ये क़दम पूरी तरह से दुर्भाग्यपूर्ण है. इसने शिक्षा के अधिकार के अर्थ को ही ख़त्म कर दिया है. इस नीति के तहत आठवीं तक छात्रों को बिना फेल किए प्रमोट किया जाता है. लेकिन इसके साथ निरंतर और व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) भी जुड़ा हुआ था जिसे कभी भी लागू करने का प्रयास नहीं किया गया है.

‘अनुच्छेद 16 के अनुसार हर बच्चे को प्राथमिक शिक्षा दिए जाने का प्रावधान है. नो डिटेंशन नीति को ठीक से नहीं समझा गया है, इसमें कहीं नहीं लिखा है कि परीक्षाएं नहीं ली जाएंगी या फिर मूल्यांकन नहीं किया जाएगा. हमारा मक़सद बच्चों को पास होने के दबाव और डर से दूर रखना था.’

‘ये मेरी समझ के बाहर है कि आप शिक्षा की गुणवत्ता को फेल-पास करने से कैसे जोड़ के देख सकते हैं. अगर आपको शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देना है तो आप अच्छे से अच्छे अध्यापकों को नियुक्त करें और इस तरह की व्यवस्था लाएं जिसमें बच्चों को आगे बढ़ने का मौक़ा मिले. अगर कोई छात्र फेल होता है तो वो अकेले वही फेल नहीं होता, आपकी शिक्षा प्रणाली भी फेल होती है.’

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