केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ पिछले नौ दिनों से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर हज़ारों की संख्या में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका कहना है कि वे निर्णायक लड़ाई के लिए दिल्ली आए हैं और जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा.
नई दिल्ली: बीते गुरुवार को किसान आंदोलन के दौरान टिकरी बॉर्डर पर चल रहे प्रदर्शन में शामिल एक और किसान की मौत कथित तौर पर दिल का दौरा पड़ने से हो गई. मृतक की पहचान बठिंडा के रहने वाले लखवीर सिंह के रूप में हुई.
लखवीर सिंह भारतीय किसान यूनियन (उग्रहण) की ओर से किए जा रहे प्रदर्शन का हिस्सा थे. लखवीर की मौत के साथ किसानों आंदोलनों के दौरान अब तक कम से कम छह लोगों की मौत की ख़बरें सामने आ चुकी हैं.
लखवीर कृषि कानूनों के खिलाफ बीते जून महीने से बीकेयू (उग्रहण) द्वारा किए जा रहे पंजाब में किए गए प्रदर्शनों में शामिल हो रहे थे. 15 सितंबर के बाद से वह लगातार संगठन के प्रदर्शनों में शामिल रहे.
रिपोर्ट के अनुसार, वह बीते 28 नवंबर को दिल्ली आए और टिकरी बॉर्डर पर लंगर सेवा में ड्यूटी कर रहे थे.
बीकेयू (उग्रहण) के सदस्य हरजिंदर सिंह बुग्गी ने बताया, ‘दो नवंबर की रात को उन्होंने बेचैनी की शिकायत की. बाद में उन्हें पीजीआई रोहतक ले जाया गया, लेकिन रास्ते में ही उनकी मौत हो गई.’
लखवीर के बेटे जगजीत सिंह ने बताया कि लक्षण के आधार पर ऐसा लग रहा है कि दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हुई, लेकिन पोस्टमॉर्टम के बाद ही असल कारणों का पता चल पाएगा.
जगजीत ने कहा कि उनके पिता परिवार से यह कहकर गए थे केंद्र सरकार द्वारा सभी मांगें मान लेने के बाद ही वह घर लौटेंगे.
रिपोर्ट के अनुसार, लखवीर की पत्नी रंजीत कौर भी पंजाब में हुए विरोध प्रदर्शनों में शामिल हुई थीं.
इस बीच बीकेयू (उग्रहण) के उपाध्यक्ष शिंगार सिंह मान ने लखवीर के परिजनों के लिए मुआवजे की मांग की है. उन्होंने कहा, ‘उनका शव मोर्चरी में रखा गया है और जब 10 लाख रुपये का मुआवजा, परिवार के एक सदस्य को नौकरी और उनका कर्ज माफ कर दिया जाएगा, तभी अंतिम संस्कार किया जाएगा.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, लखवीर छठे व्यक्ति हैं, जिनकी बीते 26 नवंबर से दिल्ली की सीमा पर जारी किसान आंदोलन के दौरान मौत हुई है.
लखवीर से पहले बीते दो नवंबर की सुबह पंजाब के मानसा जिले कि 60 वर्षीय गुरजंत सिंह की मौत भी टिकरी बॉर्डर पर हो गई थी. वह मानसा जिले के बछोअना गांव के रहने वाले थे. वह भी बीकेयू (उग्रहण) के साथ प्रदर्शन में भाग ले रहे थे. एक दिसंबर की देर रात वह अचानक बीमार हो गए थे. उन्हें एक अस्पताल ले जाया गया, वहां से उन्हें रोहतक रिफर कर दिया गया, जहां उनकी मौत हो गई.
इसी तरह बीते एक दिसंबर की देर रात 32 वर्षीय बलजिंदर सिंह की कुरुक्षेत्र में हुई सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी. वह दिल्ली में किसानों के प्रदर्शन स्थल से वापस लौट रहे थे. बलजिंदर लुधियाना के झम्मत गांव के रहने वाले थे.
बीते 29 नवंबर की रात को लुधियाना के 55 वर्षीय किसान गज्जन सिंह की बहादुरगढ़ के पास दिल्ली बॉर्डर पर मौत हो गई. उनके साथ के किसानों ने बताया कि हार्ट अटैक के चलते उनकी मृत्यु हुई है.
इसी तरह बीते 29 नवंबर को ही एक गाड़ी में आग लगने के चलते 55 वर्षीय मैकेनिक जनक राज अग्रवाल की मौत हो गई. अग्रवाल इसी गाड़ी में आराम कर रहे थे.
पंजाब के बरनाला जिले के धनौला में मैकेनिक का काम करने वाले जनक किसानों ट्रैक्टर ठीक करने वाले तीन अन्य लोगों के साथ आंदोलन में शामिल किसानों के ट्रैक्टर और ट्रकों को रिपेयर करने के लिए टिकरी बॉर्डर आए थे.
26 नवंबर से शुरू हुए दिल्ली चलो मार्च के तहत ये सभी किसान राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर डटे हुए हैं.
‘दिल्ली चलो’ प्रदर्शन के दौरान सबसे पहली मौत पंजाब के मानसा जिले के रहने वाले 45 वर्षीय किसान धन्ना सिंह की हुई थी. बीते 27 नवंबर को हरियाणा के भिवानी में एक सड़क दुर्घटना में सिंह की मृत्यु हुई.
बता दें कि नए कृषि कानून के खिलाफ पिछले नौ दिनों (26 नवंबर) से दिल्ली की सीमाओं पर हजारों की संख्या में किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि वे निर्णायक लड़ाई के लिए दिल्ली आए हैं और जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा.
मालूम हो कि केंद्र सरकार की ओर से कृषि से संबंधित तीन विधेयक– किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 को बीते 27 सितंबर को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी थी, जिसके विरोध में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसानों को इस बात का भय है कि सरकार इन अध्यादेशों के जरिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) दिलाने की स्थापित व्यवस्था को खत्म कर रही है और यदि इसे लागू किया जाता है तो किसानों को व्यापारियों के रहम पर जीना पड़ेगा.
दूसरी ओर केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली मोदी सरकार ने बार-बार इससे इनकार किया है. सरकार इन अध्यादेशों को ‘ऐतिहासिक कृषि सुधार’ का नाम दे रही है. उसका कहना है कि वे कृषि उपजों की बिक्री के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था बना रहे हैं.