असम में नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों में पिछले साल 12 दिसंबर को पांच लोगों की मौत हो गई थी. इसे काला दिवस कहते हुए 18 संगठनों ने क़ानून के विरोध में प्रदर्शन किया. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि सीएए राज्य के मूल निवासियों की पहचान, भाषा और सांस्कृतिक धरोहर के ख़िलाफ़ है.
गुवाहाटी: असम में 18 संगठनों ने संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध में शुक्रवार को ताजा प्रदर्शन शुरू किया.
इस दौरान इन संगठनों ने किसान मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) के नेता अखिल गोगोई की रिहाई की मांग की जिन्हें पिछले साल विरोध प्रदर्शन के दौरान हिरासत में ले लिया गया था.
बता दें कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान पिछले साल 12 दिसंबर को अखिल गोगोई को जोरहाट से गिरफ्तार किया गया था. इसके अगले दिन उनके तीन साथियों को हिरासत में लिया गया था.
13 दिसंबर को असम पुलिस ने उन पर राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज किया और 14 दिसंबर को मामला एनआईए के पास पहुंचा था. तब एजेंसी ने आरोप लगाया था कि गोगोई और अन्य ने प्रकट रूप से सरकार के खिलाफ नफरत और असहमति भड़काई है.
शुक्रवार को राज्य भर में कृषक मुक्ति संग्राम समिति, ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (आसू), असम जातीयतावादी युवा छात्र परिषद, लाचित सेना समेत कई संगठनों ने रैलियां निकालीं.
विरोध प्रदर्शन शिवसागर से प्रारंभ हुआ जहां से पिछले साल इसकी शुरुआत की गई थी. 12 दिसंबर 2019 को सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान पांच लोगों की मौत हो गई थी.
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि सीएए राज्य के मूल निवासियों की पहचान, भाषा और सांस्कृतिक धरोहर के खिलाफ है. उन्होंने कानून को वापस लेने की मांग की.
आसू के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने संवाददाताओं को बताया कि संगठन ने अपने कार्यालय पर काले झंडे लहराए और सीएए के विरोध में ‘नार्थ ईस्ट स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन’ के तत्वावधान में पूर्वोत्तर के सात राज्यों में काले झंडे प्रदर्शित किए गए.
आसू के अध्यक्ष दीपांक कुमार नाथ और महासचिव शंकर ज्योति बरुआ की ओर से जारी एक वक्तव्य में कहा गया, ‘सरकार को असम विरोधी यह कानून वापस लेना होगा. इसकी वजह से पांच असमी नागरिकों की जान चली गई, जिनमें निर्दोष छात्र भी शामिल थे. दिवंगत लोगों के परिजन और आसू न्याय की मांग करते रहेंगे.’
द टेलीग्राफ के मुताबिक, नागरिकता (संशोधन) कानून की पहली वर्षगांठ पर शुक्रवार को पूर्वोत्तर के प्रमुख छात्र संगठनों ने इसे ‘काला दिवस’ के रूप में मनाया. सभी महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थानों पर काले झंडे और बैनर लेकर प्रदर्शन किया.
मालूम हो कि बीते साल 11 दिसंबर को संसद से नागरिकता संशोधन विधेयक पारित होने के बाद से देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए थे. बीते 12 दिसंबर को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के साथ ही ये विधेयक अब कानून बन गया है.
इस विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.
समुज्जल भट्टाचार्य ने द टेलीग्राफ को बताया कि पूर्वोत्तर में शुक्रवार का विरोध दर्शाता है कि छठवीं अनुसूची और इनर-लाइन परमिट के तहत आने वाले क्षेत्रों को छूट देकर इलाके को विभाजित करने के केंद्र के कथित प्रयासों के बावजूद सीएए के खिलाफ वह एकजुट था, है और रहेगा.
भट्टाचार्य ने कहा, ‘सीएए को वापस लेना ही होगा क्योंकि पूर्वोत्तर बांग्लादेशियों का अवैध डंपिंग ग्राउंड नहीं है. हम अपनी लड़ाई जारी रखेंगे. शनिवार को हम सभी जिला मुख्यालयों में विरोध प्रदर्शन करेंगे. गुवाहाटी में पांच सीएए शहीदों की याद में एक बैठक करेंगे. वे निर्दोष लोग थे और अब तक किसी भी अमानवीय सरकार द्वारा उनकी मौत की जांच नहीं की गई है. हम उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा मौतों की जांच की अपनी मांग दोहराते हैं.’
शुक्रवार को हुए प्रदर्शन में नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन के अलावा खासी स्टूडेंट्स यूनियन, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन, नगा स्टूडेंट्स फेडरेशन,, मिजो जिरलाई पॉल, ट्विप्रा स्टूडेंट्स फेडरेशनल, ऑल मणिपुर स्टूडेंट्स यूनियन, गारा स्टूडेंट्स यूनियन, ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन ने भाग लिया.
इस संगठन ने राज्य के सार्वजनिक स्थानों पर बैनर और झंडे आदि का प्रदर्शन कर काला दिवस मनाया.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)