ग़रीब देशों में युद्ध और अस्थिरता हैं टीकाकरण कार्यक्रम के लिए चुनौतियां: यूनिसेफ

यूनिसेफ के वैश्विक टीकाकरण अभियान के उप-प्रमुख ने कहा कि एशिया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका के कई ग़रीब और विकासशील देशों में परेशानियों का एक प्रमुख कारण हिंसा है, जहां कोविड-19 के ख़िलाफ़ टीकाकरण कार्यक्रम को चलाया जाना है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

यूनिसेफ के वैश्विक टीकाकरण अभियान के उप-प्रमुख ने कहा कि एशिया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका के कई ग़रीब और विकासशील देशों में परेशानियों का एक प्रमुख कारण हिंसा है, जहां कोविड-19 के ख़िलाफ़ टीकाकरण कार्यक्रम को चलाया जाना है.

A nurse prepares a vaccine as part of the start of the seasonal flu vaccination campaign as a preventive measure due to the outbreak of coronavirus disease (COVID-19), in Santiago, Chile, March 16, 2020. Picture taken March 16, 2020. REUTERS/Ivan Alvarado
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

डार मंगी (पाकिस्तान): यूनिसेफ के वैश्विक टीकाकरण अभियान के उप-प्रमुख बेंजामिन श्रेइबर ने कहा है कि युद्ध और अस्थिरता के कारण गरीब देशों में टीकाकरण को लेकर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

उन्होंने कहा, ‘सबसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्र संघर्ष और हिंसा है, जहां टीकाकरण के कार्यक्रम में बाधा पहुंचती है और ऐसे क्षेत्र जहां गलत सूचना प्रसारित की जा रही है, वहां समुदाय की भागीदारी हतोत्साहित होती है.’

एशिया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका के कई गरीब और विकासशील देशों में परेशानियों का एक प्रमुख कारण हिंसा है और इन देशों में कोविड-19 के खिलाफ आबादी के बीच टीकाकरण कार्यक्रम को चलाया जाना है.

श्रेइबर ने कहा कि यूनिसेफ, जो दुनियाभर में टीकाकरण कार्यक्रम चलाता है, कोविड-19 टीकों की खरीद और वितरण में मदद करने के लिए कमर कस रहा है.

उन्होंने कहा कि आधा अरब सीरिंज का भंडार कर लिया गया है और 70,000 रेफ्रिजरेटर उपलब्ध कराने का लक्ष्य है, जिनमें ज्यादातर सौर ऊर्जा से संचालित हैं.

यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर ने एक बयान में कहा कि एजेंसी का लक्ष्य अगले साल एक महीने में 850 टन कोविड-19 टीके का परिवहन करना है.

हेनरीटा फोर ने कहा, ‘यह एक विशाल और ऐतिहासिक जिम्मेदारी है. इस कार्य की विशालता परेशान करने वाली है, और दांव पर भी बहुत कुछ लगा है, शायद अतीत से कहीं ज्यादा, मगर हम इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए पूरी तरह मुस्तैद हैं.’

द हिंदू के मुताबिक रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान में टीका पहुंचाना जानलेवा भी हो सकता है. क्योंकि वहां 2012 से पोलियो टीकाकरण में शामिल 100 से अधिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, टीकाकार और सुरक्षा अधिकारी मारे गए हैं.

आतंकवादी और कट्टरपंथी धार्मिक समूहों का मानना है कि पोलियो टीका मुस्लिम बच्चों को बांझ बनाने या उन्हें उनके धर्म से दूर करने के लिए एक पश्चिमी समझौता है.

पोलियो टीकाकरण अभियानों के समन्वयक डॉ. राणा सफदर ने बताया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और नाइजीरिया दुनिया के ऐसे देश हैं जहां अभी भी पोलियो है. इस साल अकेले पाकिस्तान में पोलियो के 82 नए मामले सामने आए हैं, क्योंकि महामारी के कारण टीकाकरण बंद हो गया था.

सफदर ने बताया कि रूढ़िवादी आदिवासी बुजुर्गों का मानना है कि टीकाकरण से बांझपन आता है. जो कि इस्लामी परंपराओं और मूल्यों के खिलाफ और अपमानजनक हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक इसके अलावा हिंसा ग्रस्त एशिया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और लैटिन अमेरिका के कई गरीब और विकासशील देशों में भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि वे कोविड-19 के खिलाफ अपनी आबादी का टीकाकरण को स्वीकार नहीं करेंगे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)