रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के रिपोर्ट के मुताबिक इस साल जान गंवाने वाले पत्रकारों में से 68 प्रतिशत की जान संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों के बाहर गई. साल 2020 में पत्रकारों को निशाना बनाकर उनकी हत्या करने के मामलों में वृद्धि हुई और ये 84 प्रतिशत हो गए हैं.
पेरिस: रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) नामक संगठन ने दावा किया है कि अशांत क्षेत्रों के बाहर बड़ी संख्या में पत्रकारों की हत्या के मामले आ रहे हैं और इस साल कम से 50 पत्रकारों को जान-बूझकर निशाना बनाया गया जिनमें से अधिकतर को संगठित अपराध, भ्रष्टाचार और पर्यावरण क्षय जैसे विषयों पर काम करने के दौरान मारा गया.
पत्रकारों और मीडियाकर्मियों को उनके काम के सिलसिले में मारे जाने का दिसंबर के मध्य तक का आंकड़ा 2019 के आंकड़ों से थोड़ा ही कम है. उस साल इस संगठन ने 53 पत्रकारों के मारे जाने का दावा किया था. हालांकि 2020 में कोरोना वायरस महामारी की वजह से बड़ी संख्या में पत्रकार फील्ड में नहीं थे.
🔴 #2020RsfRoudnUp: 50 journalists killed, 2/3 in countries “at peace”.
The most dangerous stories are investigations into cases of corruption/misuse of public funds – organised crime. In a new development, 7 journalists were killed while covering protestshttps://t.co/0LUhik7hE0 pic.twitter.com/gA01p4kDuN— RSF (@RSF_inter) December 29, 2020
संगठन ने कहा कि इस साल जान गंवाने वाले पत्रकारों में से 68 प्रतिशत की जान संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों के बाहर गई. साल 2020 में पत्रकारों को निशाना बनाकर उनकी हत्या करने के मामलों में वृद्धि हुई और ये 84 प्रतिशत हो गए हैं. 2019 में यह आंकड़ा 63 प्रतिशत था.
इसमें मैक्सिको को मीडियाकर्मियों के लिए सबसे खतरनाक देश बताया गया है.
अल जजीरा के मुताबिक, रिपोर्ट में कहा गया है कि मैक्सिको के बाद इराक, अफगानिस्तान, भारत और पाकिस्तान मीडियाकर्मियों के लिए खतरनाक स्थान रहा.
रिपोर्ट के मुताबिक, मादक पदार्थों के तस्करों और राजनेताओं के बीच संबंध बने हुए हैं, जो पत्रकार इनसे संबंधित मुद्दों को कवर करने की हिम्मत करते हैं, वे बर्बर हत्याओं का निशाना बनते हैं.
मैक्सिको में इन हत्याओं के लिए अब तक किसी को भी दंडित नहीं किया गया है.
युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में पांच पत्रकारों की मौत हो गई. रिपोर्ट में कहा है कि हाल के महीनों में मीडियाकर्मियों पर लक्षित हमलों में वृद्धि के बावजूद सरकार और तालिबान के बीच शांति वार्ता जारी है.
आरएसएफ के रिपोर्ट के मुताबिक, 387 पत्रकारों को जेल में डाला गया, जो कि ऐतिहासिक रूप से बहुत बड़ी संख्या है. जिनमें से चौदह लोगों को कोरोना वायरस संकट के कवरेज के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था.
आरएसएफ ने कहा कि इसके अलावा दुनिया भर में सैकड़ों पत्रकारों की मृत्यु कोविड-19 से हुई है, लेकिन आरएसएफ ने उनकी सूची नहीं बनाई है.
रिपोर्ट में कहा है कि मिस्र, रूस और सऊदी अरब की जेलों में कोरोना वायरस और चिकित्सा देखभाल की कमी के कारण कम से कम तीन पत्रकारों की मौत हो गई है.
पेरिस स्थित रिपोर्टर्स सैन्स फ्रंटियर्स (आरएसएफ) या रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स एक गैर लाभकारी संगठन है, जो दुनियाभर के पत्रकारों पर हमलों का दस्तावेजीकरण करता है.
बता दें कि पिछले साल मीडिया की आजादी से संबंधित ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ की सालाना रिपोर्ट में प्रेस की आजादी के मामले में भारत दो पायदान खिसक गया था. 180 देशों में भारत 140वें स्थान पर था.
सूचकांक में कहा गया था कि भारत में प्रेस स्वतंत्रता की मौजूदा स्थिति में से एक पत्रकारों के खिलाफ हिंसा है, जिसमें पुलिस की हिंसा, नक्सलियों के हमले, अपराधी समूहों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का प्रतिशोध शामिल है.
2018 में अपने काम की वजह से भारत में कम से कम छह पत्रकारों की जान गई थी. इसमें कहा गया है कि ये हत्याएं बताती हैं कि भारतीय पत्रकार कई खतरों का सामना करते हैं, खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में गैर अंग्रेजी भाषी मीडिया के लिए काम करने वाले पत्रकार.
रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में 2019 के आम चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा के समर्थकों द्वारा पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)