पांच जनवरी 2020 की शाम जेएनयू परिसर में लाठियों से लैस कुछ नक़ाबपोश लोगों ने छात्रों और शिक्षकों पर हमला किया था और परिसर में संपत्ति को नुकसान पहुंचाया था. जेएनयू छात्रसंघ ने एबीवीपी के सदस्यों पर हिंसा का आरोप लगाया था, वहीं एबीवीपी ने लेफ्ट छात्र संगठनों द्वारा हमले की बात कही थी.
नई दिल्लीः दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) कैंपस में नकाबपोश लोगों के हमले के ठीक एक साल बाद अब तक मामले में न कोई गिरफ्तारी हुई, और न ही इस मामले की कोई चार्जशीट दाखिल हुई है जबकि यूनिवर्सिटी की आंतरिक जांच भी भंग कर दी गई है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच की विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने 15 संदिग्धों (सभी छात्रों) की पहचान की है लेकिन लॉकडाउन के ऐलान और सभी छात्रों के अपने घर लौटने की वजह से जांच रुक गई.
पिछले साल नौ जनवरी को दिल्ली पुलिस द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस में नौ संदिग्धों के नाम जारी किए गए थे, ये सभी संदिग्ध छात्र थे, जिनमें से सात की पहचान वामपंथी छात्र संगठनों के सदस्य के तौर पर की गई थी जबकि बाकी दो एबीवीपी के सदस्य थे लेकिन पुलिस ने उनके संगठन का नाम उजागर नहीं किया.
इस मामले में वसंत कुंज पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी, लेकिन दिल्ली पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी थी और 20 पुलिसकर्मियों की एक एसआईटी टीम ने जेएनयू एडमिन ब्लॉक के भीतर डेरा डाल दिया था.
पूर्वोत्तर दिल्ली में फरवरी में हुए दंगों के बाद उसी टीम से दंगे मामले और कोविड प्रोटोकॉल के कथित उल्लंघन के संबंध में निजामुद्दीन मरकज के प्रमुख मौलाना साद के खिलाफ मामले की जांच करने को भी कहा गया था.
सूत्रों ने बताया कि एसआईटी ने 88 लोगों से पूछताछ की, जिनमें वे नौ संदिग्ध भी शामिल हैं, जिनकी तस्वीर एसआईटी प्रमुख डीसीपी जॉय टिर्की ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जारी की थी.
एसआईटी ने घायल छात्रों, शिक्षकों, वॉर्डन, सुरक्षा गार्ड के बयान दर्ज किए गए.
पुलिस सूत्र ने कहा, ‘पूछताछ के बाद हमें कुछ अन्य संदिग्धों के नाम भी मिले लेकिन लॉकडाउन का ऐलान होने की वजह से टीम उनके खिलाफ और निर्णायक सबूत नहीं जुटा पाई.’
एसआईटी ने हिंसा के संबंध में दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा कोमल शर्मा से भी पूछताछ की थी. जेएनयू हिंसा के एक वीडियो में कथित तौर पर कोमल के होने का दावा किया गया था.
सूत्र ने कहा, ‘पूछताछ के दौरान कोमल ने कहा कि कुछ लोग उसे मामले में फंसाने की कोशिश कर रहे हैं. उसने हिंसा में शामिल होने से इनकार किया. उसने यह भी कहा कि वह उस दिन कैंपस में नहीं थी.’
दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता डॉ. ईश सिंघल ने कहा कि हिंसा के संबंध में तीन एफआईआर दर्ज की गई थी और जांच फिलहाल लंबित है.
जेएनयू कैंपस में पांच जनवरी को हुई हिंसा और घायल छात्रों एवं शिक्षकों से न मिलने की वजह से आलोचना झेल रहे जेएनयू प्रशासन ने घटना की जांच के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया था.
हालांकि, एक साल बाद रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार ने कहा कि आंतरिक जांच रोक दी गई है क्योंकि पुलिस पहले ही जांच कर रही है. हमले में घायल शिक्षकों और छात्रों का कहना है कि उनसे एक बार भी समिति के सदस्यों ने संपर्क नहीं किया.
कुमार ने कहा, ‘पुलिस मामले की जांच कर रही है इसलिए समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश नहीं की है. मुद्दा क्या है? बात एक ही रहेगी कि लड़ाई किसने शुरू की. हमने इसके बजाय पुलिस की मदद की.’
जेएनयूएसयू अध्यक्ष ओईशी घोष ने कहा, ‘एक साल बाद हमें कम से कम मामले में कुछ प्रगति दिखनी चाहिए. पुलिस ने हमें बताया कि वे हमारे साथ हैं लेकिन एक बार हमारा बयान लेने के बाद उन्होंने कुछ नहीं किया. हमें आंतरिक जांच से कोई उम्मीद नहीं, उन्होंने हमसे एक बार भी बात नहीं की.’
बता दें कि 5 जनवरी की घटना के दौरान घोष पर कथित तौर से लोहे की रॉड से हमला किया गया था और उन्हें सिर में 16 टांके आए थे.
वहीं, हमले के दौरान घायल हुईं प्रोफेसर सुचारिता सेन ने कहा, ‘मैंने निष्पक्ष जांच और जेएनयू द्वारा हायर की गई सुरक्षा एजेंसी के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए पिछले साल 20 जनवरी को वाइस चांसलर को एक पत्र भेजा था लेकिन उस पर हमें आज तक कोई जवाब नहीं मिला. यहां तक कि पुलिस ने भी हमसे एक ही बार बात की.’
गौरतलब है कि पांच जनवरी की शाम जेएनयू परिसर में उस वक्त हिंसा भड़क गई थी, जब लाठियों से लैस कुछ नकाबपोश लोगों ने छात्रों तथा शिक्षकों पर हमला किया और परिसर में संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, जिसके बाद प्रशासन को पुलिस को बुलाना पड़ा था.