इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को अंतरधार्मिक विवाह करने वाले युवक-युवती के संबंध में कहा कि इस अदालत ने कई बार यह व्यवस्था दी है कि जब दो बालिग व्यक्ति एक साथ रह रहे हों, तो किसी को भी उनके शांतिपूर्ण जीवन में दख़ल देने का अधिकार नहीं है.
इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को अंतरधार्मिक विवाह करने वाले युवक-युवती के संबंध में कहा कि जब दो वयस्क अपनी इच्छा से साथ रह रहे हों, तो उनके जीवन में कोई अन्य व्यक्ति हस्तक्षेप नहीं कर सकता.
शाइस्ता परवीन उर्फ संगीता और उसके मुस्लिम पति द्वारा दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सरल श्रीवास्तव ने कहा, ‘इस अदालत ने कई बार यह व्यवस्था दी है कि जब दो बालिग व्यक्ति एक साथ रह रहे हों, तो किसी को भी उनके शांतिपूर्ण जीवन में दखल देने का अधिकार नहीं है.’
इस याचिका के मुताबिक, प्रथम याचिकाकर्ता शाइस्ता परवीन उर्फ संगीता ने मुस्लिम धर्म अपनाने का निर्णय किया और धर्म परिवर्तन के बाद उसने एक मुस्लिम व्यक्ति से शादी की, जो द्वितीय याचिकाकर्ता है.
दोनों ही याचिकाकर्ताओं ने वयस्क होने का दावा किया है और इस संबंध में 1998 और 1997 में जन्म का प्रमाण-पत्र भी दिखाया. उनका आरोप है कि उनके परिजनों से उनकी जान को खतरा है.
दोनों ने ही अपनी शादीशुदा जिंदगी में परिजनों के लिए हस्तक्षेप नहीं करने का निर्देश जारी करने की अदालत से गुहार लगाई है. उनका दावा है कि वे वयस्क हैं और अपनी इच्छा से साथ रह रहे हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, अदालत ने पति को तीन लाख रुपये जमा करने का भी आदेश दिया है. हालांकि, यह साफ नहीं हो सका की किसलिए.
अदालत ने अपने इस आदेश में लता सिंह के मामले को आधार बनाया, जिसमें युवक और युवती ने अंतरजातीय विवाह किया था और उन्हें उनके परिजनों द्वारा परेशान किया जा रहा था.
लता सिंह के मामले में उच्चतम न्यायालय ने देशभर के प्रशासन और पुलिस अधिकारियों को निर्देश जारी करते हुए कहा था…
यह एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश है और जब एक व्यक्ति वयस्क हो जाता है तो वह जिससे चाहे विवाह कर सकता/सकती है. यदि युवक या युवती के माता-पिता इस प्रकार के अंतरजातीय या अंतरधार्मिक विवाह को मंजूरी नहीं देते हैं तो वे अधिक से अधिक अपने बेटे या बेटी से सामाजिक रिश्ता खत्म कर सकते हैं, लेकिन उन्हें धमकी नहीं दे सकते या उनका उत्पीड़न नहीं कर सकते.
ये निर्देश पारित करते हुए अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि आठ फरवरी, 2021 निर्धारित की.
अदालत की यह टिप्पणी महत्वपूर्ण है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में कथित लव जिहाद के खिलाफ हाल ही में एक अध्यादेश लाया गया है जिसमें जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाने का प्रावधान किया गया है.
हालांकि, वास्तव में ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020’ संघ परिवार के लव जिहाद को कानूनी रूप देना है जिसमें संघ परिवार का मानना है कि मुस्लिम शादी के माध्यम से हिंदू महिलाओं का जबरन धर्म परिवर्तन करा देते हैं.
इसमें विवाह के लिए छल-कपट, प्रलोभन देने या बलपूर्वक धर्मांतरण कराए जाने पर विभिन्न श्रेणियों के तहत अधिकतम 10 वर्ष कारावास और 50 हजार तक जुर्माने का प्रावधान किया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश विधि विरूद्ध धर्म संपविर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 लाने के बाद से राज्य में 14 केस दर्ज किए गए और 51 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिसमें से 49 अभी जेल में हैं.
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के एक भयावह मामले में तो एक 22 वर्षीय हिंदू महिला को जब महिला शेल्टर में रहने के लिए मजबूर किया गया तो उसका गर्भपात हो गया.
महिला के मुस्लिम पति को उनके भाई के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था, जबकि महिला लगातार कह रहीं थी कि वह वयस्क हैं और उन्होंने अपनी मर्जी से शादी की है.
नवंबर, 2020 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 125 अंतरधार्मिक जोड़ों को सुरक्षा प्रदान की थी. उसी महीने, अदालत ने एकल-न्यायाधीश की पीठ के उस फैसले को कानून की नजर में खराब बताते हुए खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन अस्वीकार्य है.
दिसंबर 2020 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक 21 वर्षीय हिंदू महिला शिखा को उनके मुस्लिम पति सलमान के साथ फिर से मिला दिया था. पीठ ने कहा था कि महिला अपने पति के साथ रहना चाहती है. वह किसी भी तीसरे पक्ष के दखल के बिना अपनी इच्छा के अनुसार रहने के लिए स्वतंत्र है.
आगामी 15 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट एक जनहित याचिका पर सुनवाई करेगा जिसमें उत्तर प्रदेश में लागू किए गए नए धर्मांतरण कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)