साफ़ जल नागरिकों का मौलिक अधिकार, शासन यह सुनिश्चित करने को बाध्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यमुना नदी में प्रदूषण से संबंधित दिल्ली जल बोर्ड की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान देशभर की नदियों में प्रदूषण की न्यायिक समीक्षा का दायरा बढ़ाते हुए केंद्र सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली तथा हरियाणा सहित पांच राज्यों को नोटिस जारी किया है.

A Hindu devotee takes a ritual dip in the polluted Yamuna river in New Delhi March 21, 2010. The Earth is literally covered in water, but more than a billion people lack access to clean water for drinking or sanitation as most water is salty or dirty. March 22 is World Water Day. REUTERS/Danish Siddiqui (ENVIRONMENT)
यमुना नदी. (फोटो: रॉयटर्स)

सुप्रीम कोर्ट ने यमुना नदी में प्रदूषण से संबंधित दिल्ली जल बोर्ड की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान देशभर की नदियों में प्रदूषण की न्यायिक समीक्षा का दायरा बढ़ाते हुए केंद्र सरकार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली तथा हरियाणा सहित पांच राज्यों को नोटिस जारी किया है.

A Hindu devotee takes a ritual dip in the polluted Yamuna river in New Delhi March 21, 2010. The Earth is literally covered in water, but more than a billion people lack access to clean water for drinking or sanitation as most water is salty or dirty. March 22 is World Water Day. REUTERS/Danish Siddiqui (ENVIRONMENT)
यमुना नदी. (फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: विषाक्त कचरा प्रवाहित होने की वजह से नदियों के प्रदूषित होने का संज्ञान लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि प्रदूषण मुक्त जल नागरिकों का मौलिक अधिकार है और शासन यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है.

इसके साथ ही न्यायालय ने केंद्र, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली तथा हरियाणा सहित पांच राज्यों को नोटिस जारी किए.

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस ए स बोपन्ना और जस्टिस वी. रामासुब्रमणियन की पीठ ने ‘रेमेडिएशन ऑफ पॉल्यूटेड रिवर्स’ शीर्षक से इस मामले को स्वत: संज्ञान लिए गए प्रकरण के रूप में पंजीकृत करने का निर्देश न्यायालय की रजिस्ट्री को दिया.

पीठ ने कहा कि वह सबसे पहले यमुना नदी के प्रदूषण के मामले पर विचार करेगी. न्यायालय ने इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा को न्याय मित्र नियुक्त करने के साथ ही इसे 19 जनवरी के लिए सूचीबद्ध किया है.

न्यायालय ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को इस नदी के किनारे स्थित उन नगरपालिकाओं की पहचान कर उनके बारे में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है, जिन्होंने मल शोधन संयंत्र नहीं लगाए हैं.

न्यायालय ने दिल्ली जल बोर्ड की एक याचिका पर सुनवाई के दौरान देशभर की नदियों के प्रदूषण की न्यायिक समीक्षा का दायरा बढ़ा दिया है.

दिल्ली जल बोर्ड का आरोप था कि हरियाणा से यमुना नदी में खतरनाक दूषित तत्वों वाला जल छोड़ा जा रहा है. जल बोर्ड का आरोप था कि पड़ोसी राज्य हरियाणा द्वारा छोड़े जा रहे दूषित जल में अमोनिया की मात्रा बहुत ज्यादा है और यह क्लोरीन के साथ मिलने के बाद कार्सिनोजेनिक (कैंसर पैदा करने की संभावना वाला) बन जाता है.

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘पेश याचिका में उठाए गए मुद्दे के अलावा भी उचित होगा कि सीवेज के दूषित कचरे से नदियों के प्रदूषित होने का स्वत: संज्ञान लिया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि नदियों में सीवर का दूषित जल छोड़ने के मामले में नगरपालिकाएं इस संबंध में अनिवार्य प्रावधान लागू करें.’

न्यायालय ने कहा कि दिल्ली जल बोर्ड की याचिका दूषित जल छोड़े जाने के कारण यमुना नदी में अमोनिया का स्तर बढ़ने के बारे में है, लेकिन इसमें आम जनता के लिए ही नहीं, बल्कि सतही जल पर निर्भर रहने वाले सभी लोगों से संबंधित महत्वपूर्ण विषय उठाया गया है.

अदालत ने कहा, ‘यह न सिर्फ इंसानों की सेहत के लिए बल्कि जल पर निर्भर रहने वाले हर जीव के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा है. नदियां और जल स्रोत जीवन का आधार हैं. अत्यधिक बढ़ती जनसंख्या, आधुनिक रहन-सहन और बड़े पैमाने पर बढ़ती मानवीय गतिविधियों व उद्योगों ने साफ जल की मांग बढ़ाई है. इसके साथ ही जल में प्रदूषण भी तेजी से बढ़ा है. पानी का सीधा संबंध व्यक्ति की सेहत से है. शुद्ध जल और साफ पयार्वरण व्यक्ति के जीवन के अधिकार के तहत आता है.’

पीठ ने आदेश में कहा, ‘उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश को नोटिस जारी किए जाएं. पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालयों के सचिवों और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी नोटिस जारी किए जाएं.’

न्यायालय ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यमुना नदी के साथ स्थित उन नगरपालिकाओं की पहचान करके रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया, जिन्होंने अभी तक मल शोधन संयंत्र स्थापित नहीं किए हैं या जिनमें शोधन रहित जल प्रवाहित करने में अंतर व्याप्त है.

न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 में जीने के अधिकार और मानवीय गरिमा के साथ जीने के अधिकार का प्रावधान है. अनुच्छेद 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों के व्यापक दायरे में शुद्ध पर्यावरण और प्रदूषणरहित पानी को भी संरक्षण प्रदान किया गया है.

न्यायालय ने अपने सात पेज के आदेश में 2017 के शीर्ष अदालत के फैसले का भी हवाला दिया और कहा है कि इसमें निर्देश दिया गया था कि इसमें ‘कॉमन कचरा शोधन संयंत्र’ लगाने और ‘मलशोधन संयंत्र’ स्थापित करने के धन की व्यवस्था की योजना को 31 जनवरी, 2017 तक अंतिम रूप दिया जाए, ताकि अगले वित्त वर्ष में इस पर अमल किया जा सके.

पीठ ने संविधान की योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक वातावरण का संरक्षण करे और इसमें सुधार करे.

यमुना के जल में अमोनिया का स्तर बढ़ने पर दिल्ली जल बोर्ड आमतौर पर जलापूर्ति रोक देता है. जल बोर्ड ने हाल ही में शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर यह आरोप लगाया और हरियाणा को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया कि नदी में प्रदूषण रहित जल छोड़ा जाए.

बता दें कि हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा नियुक्त यमुना निगरानी समिति ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को प्रदूषण के ‘मुख्य स्रोतों’ की पहचान करने को कहा था, जिनके कारण दिल्ली में यमुना नदी में अमोनिया के स्तर में वृद्धि हुई है.

दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) ने आरोप लगाया था कि बार-बार ध्यान दिलाए जाने के बावजूद हरियाणा ने उद्योगों से निकलने वाले गंदे पानी का बहाव रोकने के लिए कदम नहीं उठाया है और सीपीसीबी से तुरंत समाधान के लिए उपाय करने का आग्रह किया था.

यमुना में जहरीले प्रदूषक अमोनियाकल नाइट्रोजन के बढ़ते स्तर को लेकर चिंतित सीपीसीबी ने नदी में अमोनिया के स्तर की निगरानी के लिए एक अध्ययन समूह का गठन किया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)