इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त रिकॉर्ड बताते हैं कि 2019 में वित्त मंत्रालय और नीति आयोग ने देश के छह हवाई अड्डों की बोली प्रक्रिया को लेकर आपत्ति जताई थी कि एक ही कंपनी को छह हवाई अड्डे नहीं दिए जाने चाहिए.
नई दिल्लीः केंद्रीय वित्त मंत्रालय और नीति आयोग ने 2019 में देश के छह हवाई अड्डों की बोली प्रक्रिया को लेकर आपत्ति जताई थी, जिसकी अनदेखी कर इन सभी हवाई अड्डों को अडाणी समूह को सौंप दिया गया.
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त किए गए रिकॉर्ड से यह जानकारी प्राप्त हुई है कि एक ही कंपनी को छह हवाई अड्डे नहीं दिए जाने चाहिए.
इतना ही नहीं अडाणी समूह ने पिछले साल 31 अगस्त को देश के दूसरे सबसे बड़े मुंबई हवाई अड्डे में नियंत्रित हिस्सेदारी के लिए एक और करार किया था, जिसके बाद 12 जनवरी को एयरपोर्ट अथॉरिटी ने इस हवाई अड्डे के अधिग्रहण को हरी झंडी दे दी.
पिछले वित्त वर्ष 2019-2020 के दौरान मुंबई के साथ सात हवाई अड्डों अहमदाबाद, मैंगलोर, लखनऊ, जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम पर 7.90 करोड़ यात्रियों की आवाजाही रही. यह 34.10 करोड़ घरेलू हवाई यात्रियों का लगभग एक-चौथाई है.
इसके अलावा मुंद्रा हवाईअड्डे को भी पूर्ण अंतरराष्ट्रीय कमर्शियल हवआईअड्डे में तब्दील करने की मंजूरी मिली थी.
बता दें कि केंद्र सरकार की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी योजना के तहत 2018 में वाणिज्यिक उड़ानें शुरू हुई थी. जीवीके सौदे के बाद अडाणी की नवी मुंबई में आगामी ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे में भी नियंत्रित हिस्सेदारी है.
रिकॉर्ड से पता चला है कि एनडीए सरकार के सबसे बड़े निजीकरण कार्यक्रम के तहत अहमदाबाद, लखनऊ, मैंगलोर, जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डों के निजीकरण के लिए बोलियां मंगाने से पहले केंद्र सरकार की पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप अप्रेजल कमेटी (पीपीपीएसी) ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय से 11 दिसंबर 2018 को इस प्रस्ताव पर चर्चा की थी.
इस बैठक के मिनट्स इंडियन एक्सप्रेस के पास है, जिनके मुताबिक, चर्चा के दौरान आर्थिक मामलों के मंत्रालय की ओर से एक नोट में कहा गया ,’इन छह हवाई अड्डों की परियोजना अत्यधिक कैपिटल इंटेसिव है इसलिए यह सुझाव दिया जाता है कि अत्यधिक वित्तीय जोखिम और अन्य मामलों को ध्यान में रखते हुए एक ही बोलीकर्ता को दो से अधिक हवाई अड्डे दिए जाने चाहिए.’
10 दिसंबर 2018 को लिखे वित्त मंत्रालय के इस नोट में दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों का हवाला दिया गया, जहां वास्तव में एकमात्र योग्य बोलीदाता होने के बावजूद जीएमआर को दोनों हवाईअड्डे नहीं सौंपे गए थे.
इस दौरान दिल्ली में बिजली वितरण का निजीकरण होने का हवाला देते हुए कहा गया कि दिल्ली विद्युत वितरण निजीकरण के मामले में शहर को तीन जोन में बांटा गया और इन्हें दो कंपनियों के अधीन किया गया.
बैठक के मिनट्स के मुताबिक, बैठक में वित्त मंत्रालय की आपत्तियों पर कोई चर्चा नहीं की गई. उसी दिन वित्त मंत्रालय के नोट में नीति आयोग ने भी हवाई अड्डों की नीलामी के संबंध में अलग से चिंता जताई थी.
पीपीपी द्वारा तैयार किए गए मेमो में कहा गया, ‘ऐसा बोलीदाता जिसके पास पर्याप्त तकनीकी क्षमता की कमी है, वह इस परियोजना को खतरे में डाल सकता है और गुणवत्तापूर्ण सेवाओं से समझौता कर सकता है, जिसके लिए सरकार प्रतिबद्ध है.’
इसके जवाब में वित्त मंत्रालय के सचिव एससी गर्ग ने कहा कि सचिवों के अधिकारप्राप्त समूह ने पहले ही यह तय किया है कि पहले के अनुभवों को बोली का आधार नहीं बनाया जाएगा.
बता दें कि बोली जीतने के एक साल बाद ही अडाणी समूह ने अहमदाबाद, मैंगलोर और लखनऊ हवाई अड्डों के कंसेशन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कर दिए थे.
इस संबंध में अडाणी समूह और नागरिक उड्डयन मंत्रालय को ईमेल भेजे गए लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. अडाणी समूह से जुड़े सूत्रों का कहना है कि बोली तय नियमों और उचित प्रक्रिया और मानदंडों के अनुरूप हुई.