सरकार ने तीनों कृषि क़ानूनों को एक वर्ष या उससे अधिक समय के लिए निलंबित रखने और किसान संगठनों तथा सरकार के प्रतिनिधियों की एक समिति गठित करने भी प्रस्ताव रखा. किसान संगठनों ने प्रस्ताव पर चर्चा करने पर सहमति जताई है.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार के तीन नए और विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन शुरू करने के करीब 50 दिन बाद बुधवार को पहली बार किसान संगठनों ने केंद्र सरकार के किसी प्रस्ताव को सिरे से खारिज नहीं किया. हालांकि, उन्होंने तीनों कृषि कानूनों को खत्म करने की अपनी मांग नहीं छोड़ी है.
सूत्रों के मुताबिक, सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को एक वर्ष या उससे अधिक समय के लिए निलंबित रखने और किसान संगठनों व सरकार के प्रतिनिधियों की एक समिति गठित करने भी प्रस्ताव रखा.
सूत्रों ने बताया कि मंत्रियों ने प्रस्ताव दिया कि जब तक समिति की रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक कृषि कानून निलंबित रहेंगे. उन्होंने तब तक किसानों को अपना आंदोलन स्थगित करने का आग्रह किया.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, किसान संगठनों ने प्रस्ताव पर गुरुवार को चर्चा करने पर सहमति जताई और शुक्रवार को वापस वार्ता में शामिल होने की बात कही.
यह महत्वपूर्ण प्रगति किसान आंदोलन के करीब 50 दिन बाद बुधवार को केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच हुई 10वें दौर की वार्ता में हुई.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेल, वाणिज्य और खाद्य मंत्री पीयूष गोयल तथा केंद्रीय वाणिज्य राज्य मंत्री सोमप्रकाश लगभग 40 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में वार्ता में शामिल हुए.
बुधवार को बातचीत में शामिल होने वाले जमहूरी किसान सभा के महासचिव कुलवंत सिंह संधू ने कहा, ‘थोड़े बदलाव के साथ आज की बैठक सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई. हमारी मुश्किल से ही केंद्रीय मंत्रियों के साथ कोई तनातनी हुई. 10वें दौर की वार्ता में एक महत्वपूर्ण प्रगति हुई.’
उनके अनुसार, ‘मंत्रियों ने 18 से 24 महीने की अवधि के लिए कृषि कानूनों को लागू नहीं करने का प्रस्ताव रखा. मंत्री सोम प्रकाश ने कहा कि सरकार दो साल के लिए कानूनों को लागू नहीं करेगी, लेकिन दो अन्य मंत्रियों (नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल) ने डेढ़ साल कहा. उन्होंने यह भी कहा कि वे इस बारे में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर करेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘एमएसपी पर उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर निर्णय के लिए हमें कमेटी बनाने दें, हमारे संगठन के सदस्य भी इसका हिस्सा हो सकते हैं. हमने उन्हें कोई त्वरित जवाब नहीं दिया. हमारे पंजाब के 32 किसान संघों की बैठक गुरुवार सुबह होगी और इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक दोपहर में की जाएगी.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हम 22 जनवरी को सरकार से मिलेंगे. मैं इस बैठक को सभी के लिए बहुत महत्वपूर्ण बैठक कहूंगा. आखिरकार सरकार इस मुद्दे को हल करने के मूड में है. अभी तक गणतंत्र दिवस ट्रैक्टर परेड आयोजित करने के अपने फैसले पर हम अडिग हैं.’
महिला किसान अधिकार मंच की नेता कविता कुरूगंती ने कहा, ‘किसान संगठनों ने उन्हें (केंद्र) बताया कि वे कानूनों को रद्द करवाना चाहते हैं, लेकिन फिर भी कल इस प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे.’
उन्होंने कहा, ‘सरकार हमारी सहमति से लंबित मांगों पर गौर करने के लिए कानून बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा प्रस्तुत करने की बात कर रही है.’
ऑल इंडिया किसान फेडरेशन के हरियाणा अध्यक्ष प्रेम सिंह गहलावत ने कहा, ‘बैठक में सरकार का रुख बहुत नरम था. सभी प्रदर्शनकारी किसान यूनियन इस महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर गुरुवार को फैसला करेंगे. यह एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव है. एमएसपी पर उन्होंने हमें एक समिति बनाने के लिए कहा है. हमें इन प्रस्तावों पर चर्चा करने और 22 जनवरी को सरकार के पास वापस जाने की आवश्यकता है.’
भारतीय किसान यूनियन (राजेवाल) के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, ‘हम सभी कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग के साथ आए थे, लेकिन हमने केंद्रीय मंत्रियों से कहा कि उनके प्रस्ताव पर चर्चा की जा सकती है. हम 22 जनवरी को एक ठोस जवाब के साथ वापस आ सकते हैं.’
भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के अध्यक्ष जोगिंदर सिंह उगराहां ने कहा, ‘हमने मान लिया था कि बुधवार की वार्ता भी एक अन्य बैठक की तारीख के साथ भी समाप्त हो जाएगी. लेकिन भोजनावकाश के बाद वे डेढ़ साल तक कानून को स्थगित करने और इन कानूनों को निरस्त करने के लिए एक समिति बनाने का एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव लेकर आए. इस प्रस्ताव पर चर्चा किए जाने की आवश्यकता है.’
भारतीय किसान यूनियन के राकेश टिकैत ने कहा, ‘सरकार ने डेढ़ से दो वर्षों के लिए कानूनों को निलंबित करने की पेशकश की. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल करेगी. हम शुक्रवार को अपने फैसले से सरकार को अवगत कराएंगे. हमारा रुख बहुत स्पष्ट है कि कानून को खत्म करने की जरूरत है और एमएसपी पर एक कानून बनाने की जरूरत है.’
किसान संगठनों ने उठाया एनआईए नोटिसों का मामला
बैठक के दौरान किसान नेताओं ने कुछ किसानों को एनआईए की ओर से जारी नोटिस का मामला भी उठाया और आरोप लगाया कि किसानों को आंदोलन का समर्थन करने के लिए प्रताड़ित करने के मकसद से ऐसा किया जा रहा है.
किसान नेता कविता कुरूगंती ने कहा कि बैठक एनआईए नोटिस से जुड़े मुद्दे से शुरू हुई. वहीं, भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने भी कहा कि किसान संगठन के नेताओं ने किसानों को एनआईए की नोटिस का मुद्दा भी उठाया.
इस पर सरकार के प्रतिनिधियों ने कहा कि वे इस मामले को देंखेंगे.
जोगिंदर सिंह उगराहां ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘एनआईए नोटिस के संबंध में मंत्रियों ने कहा कि अगर नोटिस किसानों के आंदोलन से जुड़ी हैं तो वे इन्हें वापस कराएंगे. यह दिखाता है कि आंदोलन को कमजोर करने के लिए नोटिस भेजे गए थे. यह सूची सरकार को जल्द दी जाएगी.’
इससे पहले 12 जनवरी को उच्चतम न्यायालय ने तीन कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी. शीर्ष अदालत ने इस मामले को लेकर सरकार और किसान संगठनों के बीच जारी गतिरोध को समाप्त करने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया था.
हालांकि समिति बनने के बाद किसानों ने कहा था कि वे इस समिति के सामने पेश नहीं होंगे. उनका कहना था कि कोर्ट की समिति के सदस्य सरकार समर्थक और इन कानूनों के पक्षधर हैं. इसके बाद समिति के सदस्य और भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह मान ने बीते गुरुवार को समिति से अपने को अलग कर लिया.
सुप्रीम कोर्ट ने समिति के सदस्यों पर कुछ किसान संगठनों द्वारा आक्षेप लगाए जाने को लेकर बुधवार को नाराजगी जाहिर की थी. साथ ही, शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा था कि उसने समिति को फैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं दिया है, यह शिकायतें सुनेगी तथा सिर्फ रिपोर्ट देगी.
इस बीच, राष्ट्रीय राजधानी में गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रदर्शनकारी किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को रोकने के लिए एक न्यायिक आदेश पाने की दिल्ली पुलिस की उम्मीदों पर पानी फिर गया.
दरअसल, शीर्ष न्यायालय ने केंद्र को (इस संबंध में दायर) याचिका वापस लेने का निर्देश देते हुए कहा कि यह ‘पुलिस का विषय’ है और ऐसा मुद्दा नहीं है कि जिस पर न्यायालय को आदेश जारी करना पड़े. इसके बाद केंद्र सरकार ने ट्रैक्टर रैली को रोकने के लिए दाखिल अपनी याचिका वापस ले ली.
इसके बाद दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने प्रस्तावित ट्रैक्टरी रैली को दिल्ली के व्यस्त बाहरी रिंग रोड की बजाय कुंडली-मानेसर पलवल एक्सप्रेसवे पर आयोजित करने का सुझाव दिया था जिसे किसान यूनियनों ने अस्वीकार कर दिया.
मालूम हो कि केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए कृषि से संबंधित तीन विधेयकों– किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020- के विरोध में पिछले डेढ़ महीने से किसान दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
केंद्र सरकार इन कानूनों को कृषि क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार के रूप में पेश कर रही है. हालांकि, प्रदर्शनकारी किसानों ने यह आशंका व्यक्त की है कि नए कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुरक्षा और मंडी प्रणाली को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे तथा उन्हें बड़े कॉरपोरेट की दया पर छोड़ देंगे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)