संसद की स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर 31 सदस्यीय संसदीय स्थायी समिति ने की सिफारिश.
साल 2016 में आए सरोगेसी बिल (बच्चे को जन्म देने के लिए किराये की कोख देने पर बना कानून) के दायरे को और बढ़ाते हुए संसद की स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर 31 सदस्यीय संसदीय स्थायी समिति ने गुरुवार को शादीशुदा दंपति की तरह लिव इन जोड़ों और विधवाओं को भी सरोगेसी से जुड़ी सेवा उपलब्ध कराने की सिफ़ारिश की है. एनआरआई और भारतीय मूल के अन्य लोगों को भी इस दायरे में लाने के लिए कहा गया है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ समिति ने किराये की कोख (सरोगेसी) वाली मां को भी पर्याप्त एवं तार्किक आर्थिक मुआवज़ा दिए जाने की वकालत की है.
इस समिति ने परोपकारी सरोगेसी की भी आलोचना की है जिसके तहत सरोगेट मां को बगैर किसी आर्थिक मुआवज़ा दिए किसी दंपति के लिए संतान पैदा करने के लिए राज़ी होना होता है.
पिछले वर्ष केंद्रीय कैबिनेट ने सरोगेसी (नियमन) बिल 2016 संसद में पेश करने के लिए हरी झंडी दे दी. जिसके तहत अविवाहित दंपति, एकल माता-पिता, लिव-इन पार्टनर और समलैंगिक लोगों के सरोगेसी सेवाएं न देने का प्रस्ताव था. कैबिनेट की बैठक के बाद उस समय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा था कि विदेशियों के साथ एनआरआई, पीआईओ (पर्सन आॅफ इंडियन ओरिजिन) और ओसीआई (ओवरसीज़ सिटीजन आॅफ इंडिया) पर यह प्रतिबंध लागू होगा.
साल 2016 के सरोगेसी बिल के ड्राफ़्ट की निंदा करते हुए संसद की समिति ने इसके स्वरूप को पितृसत्तात्मक भारतीय समाज पर संकीर्ण समझदारी होने का नतीजा बताया है.
इस समिति को बिल के प्रावधानों पर ध्यान देते हुए इस क्षेत्र में विशेषज्ञों से बात करने के लिए गठित किया गया था. अपनी 88 पन्नों की रिपोर्ट में समिति ने बिल के दायरे को बढ़ाने और सरोगेसी के क़ानून को अधिक उदार बनाने की सिफ़ारिश की है.
साल 2002 से लागू सरोगेसी बिल के अधिक कॉमर्शियलाइजेशन होने के कारण कारोबारी सरोगेसी पर रोक लगाने का प्रावधान था लेकिन ये प्रतिबंध केवल विदेशी सरोगेसी पर लगाया गया था. पहले कुछ अस्पताल ऐसी महिलाओं के संपर्क में रहते थे, जो पैसे लेकर किसी और के बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार होती हैं.
इसके व्यापारिक धंधे को नियंत्रण में लाने के लिए केंद्र सरकार ने सरोगेसी का नया बिल पेश किया था जिसके अनुसार सरोगेट मदर को पहले से ही शादीशुदा होना और एक बच्चे की मां होना भी ज़रूरी था. सरोगेट मदर बच्चे को जन्म देने के बाद उसके संपर्क में रह सकती थी.
साथ ही अविवाहित दंपती, एकल माता-पिता, लिव-इन पार्टनर और समलैंगिक लोगों के सरोगेसी सेवाएं न देने का प्रस्ताव था.
2016 के बिल के अनुसार दंपति के लिए ख़ुद को प्रसव के लिए असक्षम साबित करना और भारतीय होना अनिवार्य था. सरोगेट मां को दंपति का करीबी रिश्तेदार होना भी ज़रूरी था.
दंपति की शादी को क़म से कम 5 साल पूरे हुए हों और पत्नी की उम्र 25 से 50 साल और पति की उम्र 26 से 65 तय की गई थी. स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए सरोगेट मदर की उम्र 25 से 35 साल तय की गई थी.
समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि परोपकारी सरोगेसी के तहत सरोगेट मां को कुछ नहीं प्राप्त होता बल्कि एक महिला के शरीर पर उसके अधिकार के न होने का रूढ़िवादी विचार और मज़बूत होता है .
रिपोर्ट में कहा गया कि प्रेगनेंसी कोई एक मिनट की बात नहीं है बल्कि ये 9 महीने एक बच्चे को कोख में रखने का गंभीर और संवेदनशील मामला है. इसमें महिला का शरीर, उसका स्वास्थ्य, उसका परिवार और उसका समय सब कुछ शामिल होता है.
परोपकारी सरोगेसी के बाद दंपति को उनका बच्चा मिल जाता है और डॉक्टर, अस्पताल और वकीलों को उनकी फ़ीस लेकिन सरोगेट मां को कुछ भी हासिल नही होता.
समिति ने किसी भी महिला के सरोगेट मदर होने के लिए करीबी रिश्तेदार होने वाली शर्त को शोषण का माध्यम बताया है. समिति ने परोपकारी सरोगेसी के अंतर्गत महिला के बिना कुछ लिए प्रेगनेंसी और बच्चा देने की उम्मीद करने को नाजायज़ बताया है.
समिति ने सरोगेट मां को चुनने के लिए एक निश्चित दायरा भी तय किया है. भारतीय समाज में परिवार के बीच शक्ति समीकरण को नज़र में रखते हुए इस बात पर ध्यान दिया गया है कि किसी को भी सरोगेट मां बनने के लिए मजबूर नहीं किया जाए.
समिति ने कहा कि बिल में विनियमन की आवश्यकता तो है पर उसमें ज़रूरी बदलाव करने होंगे जैसे कि सरोगेट मदर के लिए एक निश्चित राशि तय की जाए और महिला को प्रक्रिया के शुरू होते ही उसकी फीस दिए जाने का प्रावधान भी हो.
समिति ने बिल के इस प्रावधान से सहमति जताई की किसी भी महिला को एक से अधिक बार प्रेगनेंसी न करने दी जाए और ‘कोई भी महिला ग़रीबी के कारण सरोगेसी न चुने और न ही कोई महिला इसे व्यवसाय के तौर पर चुने.’
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, सपा सांसद रामगोपाल यादव की अध्यक्षता वाली समिति का मानना है कि किराये की कोख देने के लिए किसी महिला के परोपकारी हो जाने और गर्भधारण व प्रसव के दौरान ऑपरेशन वगैरह जैसी तकलीफदेह सरोगेसी प्रक्रिया से गुज़रने की उम्मीद करना भी एक तरह का शोषण है.
उनका कहना है कि किसी परोपकार के चलते नहीं बल्कि बाध्यता और जबरदस्ती के चलते नज़दीकी रिश्तेदार सरोगेट मां बनने के लिए राज़ी हो जाती हैं.