अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर का अच्छा अभिनय भी फिल्म को बोझिल होने से नहीं बचा पाता.
इस हफ्ते बॉक्स आॅफिस पर अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर के अभिनय से सजी टॉयलेट एक प्रेम कथा ने दस्तक दी है. फिल्म की कहानी एक ऐसी महिला पर आधारित है जो शादी के बाद ससुराल में शौचालय न होने वजह से अपने पति को छोड़ देती है.
वेबसाइट बॉलीवुड लाइफ डॉट कॉम ने लिखा कि अक्षय और भूमि का अच्छा अभिनय फिल्म को बोर होने से नहीं बचा पाता. वेबसाइट के अनुसार, फिल्म का सेकेंड हाफ कमज़ोर और अस्थिर हो जाता है. फिल्म इतनी लंबी होती चली जाती है कि इसके ख़त्म होने से पहले आप कई लू-ब्रेक (टॉयलेट जा) ले सकते हैं.
इंटरवल के बाद निर्माताओं ने फिल्म को कॉमर्शियल लुक देने के लिए तमाम गाने ठूंस दिए हैं. कहानी इतनी बोझिल हो जाती है कि फिल्म के दोनों मुख्य कलाकार जो शुरुआत में वास्तविक और प्रभावशाली नज़र आ रहे थे, वे खीझ उत्पन्न करने लगते हैं.
इसके निर्देशक श्रीनारायण सिंह की ये पहली फिल्म है. एनडीटीवी ख़बर डॉट कॉम लिखता है कि फिल्म दिल की कम और सरकार की बात ज़्यादा करती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इंटरवल के बाद फिल्म, फिल्म न रहकर संदेशों का ओवरडोज़ हो जाती है, जिससे दिमागी कब्ज़ का एहसास होता है. कुछ सीन तो ऐसे लगते हैं जैसे मौजूदा सरकार के कामकाज की तारीफ करने के लिए ही गढ़े गए हैं. यही नहीं फिल्म में कहीं न कहीं निर्देशक ने सरकार के अलग-अलग अभियानों के साथ जोड़ने की कोशिश की है.
अंग्रेज़ी वेबसाइट एनडीटीवी के अनुसार, अक्षय कुमार्स फिल्म स्टिंक्स टू हाई हैवेन मतलब ये फिल्म बहुत ही ख़राब है.
उत्तर प्रदेश में रिलीज़ के पहले ही टैक्स फ्री कर दी गई इस फिल्म के बारे में वेबसाइट आईचौक लिखता है, टॉयलेट: एक प्रेम कथा देखकर निकले तो बदहज़मी हो गई. अच्छी कहानी और शानदार एक्टिंग फिल्म की जान हैं लेकिन इसे सरकारी घोषणा पत्र बनाकर बर्बाद कर डाला गया.
वेबसाइट के अनुसार, कहानी दिलचस्प है. लेकिन स्क्रीनप्ले पूरी तरह से बांधने में कामयाब नहीं होता. फिल्म का पहला हाफ प्रेम कहानी में ही निकल जाता है. फिर कहानी आगे नहीं बढ़ती और सीन रिपीट होने लगते हैं.
वेबसाइट के अनुसार, अक्षय के सितारे बुलंद हैं इसलिए फिल्म पर फ्लॉप का तमगा न लगे लेकिन दर्शक इससे निराशा महसूस कर सकते हैं.
फिल्म वेबसाइट देसीमार्टिनी के अनुसार, फिल्म की सबसे अच्छी बात इसका पूरी तरह से देसी होना है. जब भी कोई देसी फिल्म आती है तो दर्शकों का भरपूर मनोरंजन करती है. सामाजिक संदेश को मनोरंजन के साथ बेहद संतुलित तरीके से दिखाया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, कई बार अच्छे विचारों के साथ इतना भद्दा व्यवहार किया जाता है कि कहानी पटरी से उतर जाती है. कुछ ऐसा ही टॉयलेट एक प्रेमकथा के साथ होता है.
दैनिक भास्कर के मुताबिक, मोहब्बत के रास्ते अर्थपूर्ण संदेश देती हैं टॉयलेट: एक प्रेमकथा. फिल्म का डायरेक्शन अच्छा है. कहीं-कहीं कहानी थोड़ी बोर करती है हालांकि बैकड्रॉप ठीक है.
फिल्म समीक्षक श्वेता तिवारी लिखती हैं कि कुछ डायलॉग्स चीप लगे हैं, जैसे- भाभी जवान हो गई, दूध की दुकान हो गई. कई डायलॉग्स अच्छे लिखे गए हैं, जैसे- जब तक समस्या ख़ुद की न हो, कौन लड़े, कौन हल निकाले, इस देश में सभ्यता से लड़ना कठिन काम है.
श्वेता के अनुसार, इन सबके बाद भी फिल्म एक भाषण ही लगी. शौच की समस्या को सेकेंड हाफ में दिखाया गया है, जिसको झेलना थोड़ा मुश्किल लगता है. फर्स्ट हाफ जहां थोड़ा एंटरटेन करता है, सेकेंड हाफ उतना ही पकाऊ है. कहानी को छोटा किया जा सकता है.