आंध्र प्रदेश में आशा कार्यकर्ता की मौत, सहकर्मियों ने कोविड-19 टीके को ज़िम्मेदार ठहराया

आंध्र प्रदेश के गुंटुर ज़िले के एक सरकारी अस्पताल में हुई मौत. घटना के बाद अन्य आशा कार्यकर्ताओं ने अस्पताल के सामने विरोध प्रदर्शन किया और पीड़ित परिवार को 50 लाख रुपये का मुआवज़ा देने की मांग की. गुंटुर ज़िलाधिकारी ने कहा कि मौत की वास्तविक वजह की जानकारी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मिल पाएगी.

(प्रतीकात्मक फोटोः पीटीआई)

आंध्र प्रदेश के गुंटुर ज़िले के एक सरकारी अस्पताल में हुई मौत. घटना के बाद अन्य आशा कार्यकर्ताओं ने अस्पताल के सामने विरोध प्रदर्शन किया और पीड़ित परिवार को 50 लाख रुपये का मुआवज़ा देने की मांग की. गुंटुर ज़िलाधिकारी ने कहा कि मौत की वास्तविक वजह की जानकारी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मिल पाएगी.

(प्रतीकात्मक फोटोः पीटीआई)
(प्रतीकात्मक फोटोः पीटीआई)

अमरावती: आंध्र प्रदेश के गुंटुर जिले के एक सरकारी अस्पताल में रविवार को एक आशा कार्यकर्ता की मौत हो गई. उनके सहकर्मियों ने आरोप लगाया है कि कोविड-19 का टीका लगाए जाने के बाद उसकी मौत हुई.

गुंटुर जिले के जिलाधिकारी सैम्युअल आनंद ने कहा कि आशा कार्यकर्ता की मौत की वास्तविक वजह की जानकारी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद ही मिल पाएगी. साथ ही, उन्होंने कहा कि गत आठ दिनों में 10,099 स्वास्थ्यकर्मियों का टीकाकरण किया गया है, जिनमें प्रतिकूल प्रभाव का एक भी मामला सामने नहीं आया है.

गवर्नमेंट जनरल हॉस्पिटल (जीजीएस) में आशा कार्यकर्ता की मौत हो जाने के बाद अन्य आशा कार्यकर्ताओं ने अस्पताल के सामने विरोध प्रदर्शन किया और पीड़ित परिवार को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की.

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के एक नेता के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन किया गया और जब जिलाधिकारी मृतक के परिवार के सदस्यों को सांत्वना देने अस्पताल पहुंचे, तो उनके साथ बहस होते भी देखने को मिला.

जिलाधिकारी ने कहा कि वह राज्य सरकार को कोविड-19 के अग्रिम मोर्चे की कार्यकर्ता की मौत होने पर दिए जाने वाले मुआवजे की तर्ज पर मृतक (आशा कार्यकर्ता) के परिवार को मुआवजा देने के लिए प्रस्ताव भेजेंगे.

उन्होंने परिवार के एक योग्य सदस्य को नौकरी देने के अलावा मकान के लिए भूखंड देने का भी वादा किया.

उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस का टीका लगवाने के तीन दिन बाद 22 जनवरी को 44 वर्षीय आशा कार्यकर्ता ने सिर में दर्द और बुखार की शिकायत की थी.

आशा कार्यकर्ता के भाई ने बताया, ‘हम पहले उन्हें निजी अस्पताल लेकर गए, लेकिन उसका स्वास्थ्य ज्यादा खराब होने पर सरकारी अस्पताल ले आए. वह तंदुरुस्त महिला थीं और उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान बिना थके लगातार काम किया था.’

उन्होंने आशा कार्यकर्ता को मस्तिष्काघात होने से भी इनकार किया, जैसा कि अस्पताल के डॉक्टरों ने दावा किया था.

हरियाणा के गुड़गांव में छह दिन पहले कोविड-19 का टीका लगवाने वाली एक 55 वर्षीय महिला स्वास्थ्यकर्मी की बीते 22 जनवरी को मृत्यु हो गई थी. हालांकि अधिकारियों का कहना था कि इसका संबंध टीके से नहीं है.

दूसरी ओर मृतक के परिजनों का कहना था कि उन्हें संदेह है कि उनकी मौत टीका लगने की वजह से हुई है. महिला स्वास्थ्यकर्मी को 16 जनवरी को कोविशील्ड का टीका लगा था. वह गुड़गांव जिले के भांगरोला के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कार्यरत थीं.

इससे पहले तेलंगाना के निर्मल जिले में कोविड-19 का टीका लगवाने वाले एक 42 वर्षीय स्वास्थ्यकर्मी की मौत का मामला सामने आया था. इस मामले में भी अधिकारियों ने मौत के लिए टीके को जिम्मेदार नहीं ठहराया था.

स्वास्थ्यकर्मी ने जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में 19 जनवरी को कोविशील्ड टीके की खुराक ली थी और उन्हें 20 जनवरी को तड़के सीने में दर्द के बाद उनकी मौत हो गई थी.

इसी तरह मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 45 वर्षीय मजदूर दीपक मरावी की संदिग्ध परिस्थितियों में बीते साल 21 दिसंबर को मौत हो गई थी. उन्हें 12 दिसंबर 2020 को पीपुल्स मेडिकल कॉलेज (भोपाल) में भारत बायोटेक और आईसीएमआर द्वारा बनाई गई स्वदेशी कोवैक्सीन की खुराक दी गई थी. मृतक के परिवार का आरोप लगाया था कि वैक्सीन से उनकी जान गई है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)