कृषि क़ानूनों पर किसानों के विरोध के बीच मोदी सरकार ने बार-बार दावा किया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी व्यवस्था ख़त्म नहीं होगी, पर आम बजट में इसे दिलाने वाली योजनाओं के फंड में बड़ी कटौती की गई है, जिसके चलते किसानों को उतनी एमएसपी भी नहीं मिलेगी, जितनी सरकार तय करती है.
नई दिल्ली: तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे देशव्यापी आंदोलन के बीच मोदी सरकार ने कई बार दावा किया कि उनकी सरकार में किसानों को उपज का उचित दाम मिल रहा है और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर पहले की तुलना में अत्यधिक खरीद हुई है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय कृषि मंत्री, केंद्रीय वित्त मंत्री एवं भाजपा नेताओं ने राजनीतिक रैलियों से लेकर संसद तक में ये बात कही. हालांकि सरकार के ये दावे नए बजट आवंटन के आंकड़ों पर खरे नहीं उतरते हैं.
किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य यानी एमएसपी दिलाने के लाई गईं दो प्रमुख योजनाओं के बजट में इस बार भारी कटौती की गई है. इतना ही नहीं, आलम ये है कि पिछले साल घोषित इन योजनाओं की बजट राशि को भी कम कर दिया गया है.
गेहूं, धान और मोटा अनाज (ज्वार, बाजरा और मक्का) के अलावा अन्य कृषि उत्पादों क्रमश: दालें, तिलहन और कोपरा की एमएसपी पर खरीद सुनिश्चित करने और इनके भंडारण के लिए दो प्रमुख योजनाएं- बाजार हस्तक्षेप योजना एवं मूल्य समर्थन प्रणाली (एमआईएस-पीएसएस) और प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना (पीएम-आशा) चल रही हैं.
सरकारी दस्तावेज के मुताबिक वित्त वर्ष 2021-22 के लिए एमआईएस-पीएसएस का बजट 1,500.50 करोड़ रुपये और पीएम-आशा का बजट 400 करोड़ रुपये रखा गया है. लेकिन ये राशि पिछले साल के बजट की तुलना में काफी कम है.
वित्त वर्ष 2020-21 के लिए एमआईएस-पीएसएस का बजट 2,000 करोड़ रुपये और पीएम-आशा का बजट 500 करोड़ रुपये रखा गया था. इस तरह इस बार इन दोनों योजनाओं का बजट पिछले साल की तुलना में क्रमश: 500 करोड़ रुपये और 100 करोड़ रुपये कम है.
इसके अलावा सरकार ने पिछले साल के बजट को भी संशोधित करके कम कर दिया है. इसका मतलब ये है कि सरकार ने जितना वादा किया था, वे उतनी राशि खर्च नहीं कर पाए.
वित्त वर्ष 2020-21 (जो 31 मार्च 2021 को खत्म होगा) के लिए एमआईएस-पीएसएस के बजट को संशोधित करके आधे से भी कम 996 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
इसके अलावा पीएम-आशा योजना में भी कटौती करके इसके बजट को 300 करोड़ रुपये कर दिया गया है. यानी कि 31 मार्च 2021 तक सरकार इन योजनाओं के तहत इतनी ही राशि खर्च कर पाएगी.
इन योजनाओं का इस साल का बजट दो साल पहले दी गई राशि से भी काफी कम है. वित्त वर्ष 2019-20 में एमआईएस-पीएसएस के तहत 3,000 करोड़ रुपये और पीएम-आशा के तहत 1,500 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे.
हालांकि इसमें से क्रमश: 2004.60 करोड़ और 313.18 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाए हैं.
मालूम हो कि वर्तमान में चल रहे कृषि आंदोलनों की एक प्रमुख मांग ये है कि सरकार किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी प्रदान करे, ताकि कोई भी ट्रेडर किसानों से एमएसपी से कम कीमत पर खरीददारी न करे और यदि कोई ऐसा करता है तो उन पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए.
ऐसे में एमएसपी दिलाने वाली योजनाओं में कटौती करना मोदी सरकार पर सवालिया निशान खड़े करता है.
दालें, तिलहन और कोपरा उत्पादों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिए बड़ी लंबी मांग के बाद कृषि मंत्रालय ने अक्टूबर, 2018 में पीएम-आशा योजना को लॉन्च किया था. इस योजना में पहले से ही चली आ रही मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) को भी शामिल किया गया है.
वहीं बंपर उत्पादन के समय किसानों को औने-पौने दाम पर अपनी उपज बेचने से बचाने के लिए बाजार हस्तक्षेप योजना (एमआईएस) है. यह योजना आम-तौर पर आलू, टमाटर, प्याज जैसे उत्पादों पर लागू होती है.
हालांकि द वायर ने इन योजनाओं के तहत वित्त वर्ष 2018-19 और 2019-20 के दौरान हुई खरीदी का तुलनात्मक अध्ययन करके बताया था कि कुल उत्पादन के मुकाबले काफी कम खरीद हो रही है. कृषि जानकार बताते हैं कि इसका एक प्रमुख कारण इन योजनाओं के बजट आवंटन में कमी है.
इसी रिपोर्ट में बताया गया था कि किस तरह कृषि मंत्रालय ने किसानों को लाभकारी मूल्य देने वाली योजनाओं बाजार हस्तक्षेप योजना/मूल्य समर्थन प्रणाली (एमआईएस/पीएसएस) और पीएम-आशा का बजट बढ़ाने की मांग की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय ने इसे खारिज करते हुए वित्त वर्ष 2020-21 के लिए इनका बजट इससे पिछले साल दिए गए बजट से भी कम रखा था.
खास बात ये है कि ऐसी मांग रखते हुए कृषि मंत्रालय ने पीएम-किसान योजना का बजट कम करने को कहा था क्योंकि इसके तहत आवंटित पूरे पैसे खर्च नहीं हो पा रहे थे.
कृषि मंत्रालय की ये दलील सोमवार को जारी नए बजट में सही साबित होती दिख रही है, क्योंकि वित्त मंत्रालय ने पीएम-किसान के तहत पिछले साल आवंटित 75,000 करोड़ रुपये के बजट को कम करके यानी संशोधित करते 65,000 करोड़ रुपये कर दिया है.
वित्त वर्ष 2021-22 के लिए भी पीएम-किसान के तहत 65,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.
मालूम हो कि द वायर ने अपनी पिछली कई रिपोर्टों में बताया था कि किस तरह पीएम-किसान योजना का इतना बजट एक साल के भीतर खर्च कर पाना संभव नहीं है.
इसका एक प्रमुख कारण यह है कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय के पास ये स्पष्ट आंकड़ा नहीं है कि भारत में कुल कितने किसान हैं. पीएम-किसान योजना के तहत एक साल में 2,000-2,000 रुपये की तीन किस्त में किसानों के खाते में 6,000 रुपये डालने का प्रावधान है.
किसानों को पेंशन देने वाले फंड में बड़ी कटौती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 सितंबर 2019 को झारखंड की राजधानी रांची में प्रधानमंत्री किसान मान-धन योजना का शुभारंभ किया था. इसके तहत 60 वर्ष की आयु पूरी करने वाले किसानों को न्यूनतम 3000 रुपये प्रति माह पेंशन उपलब्ध कराने का प्रावधान किया था.
केंद्र ने कहा था कि इससे पांच करोड़ लघु एवं सीमांत किसानों को लाभ मिलेगा. हालांकि हकीकत ये है कि केंद्र ने इस योजना के बजट में काफी कटौती की है.
वित्त वर्ष 2021-22 के लिए प्रधानमंत्री किसान मान-धन योजना के लिए सिर्फ 50 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है. जबकि पिछले साल इसके तहत 220 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था.
इतना ही नहीं, सरकार ने पिछले वर्ष के बजट को भी घटा कर 50 करोड़ रुपये कर दिया है, यानी 31 मार्च 2021 तक इस योजना के तहत सरकार इतनी ही राशि खर्च कर पाएगी.
बजट आंकड़ों से पता चलता है कि योजना के तहत वित्त वर्ष 2019-20 में 125 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे.
ऐसे में सवाल उठता है कि जब सरकार ज्यादा से ज्यादा किसानों को ये लाभ देने का दावा कर रही है तो पहले की तुलना में इसका बजट किस आधार पर कम किया जा सकता है?
एग्रीकल्चर मार्केटिंग और सिंचाई योजना का भी बजट घटा
तीन नए कानूनों के पक्ष में सरकार की एक प्रमुख दलील ये है कि वे किसानों को एक नया कृषि बाजार मुहैया करा रहे हैं, जहां किसान मंडियों के बाहर ‘मनमुताबिक’ स्थान पर बिक्री करके उचित दाम प्राप्त कर सकेगा.
हालांकि कृषि बाजार के दृष्टिकोण से लाई गई मंत्रालय की अन्य योजनाओं की हालत खराब होती प्रतीत होती है, जहां उनके फंड में लगातार कटौती हो रही है.
ऐसी ही एक स्कीम है ‘कृषि विपणन पर एकीकृत योजना’, जिसके तहत वित्त वर्ष 2021-22 के 410 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो कि पिछले साल की तुलना में कम है.
वित्त वर्ष 2020-21 में इस योजना के तहत 490 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, हालांकि इसमें भी कटौती कर इसे 350 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
इस योजना का उद्देश्य देश में कृषि उत्पादों की भंडारण क्षमता को बढ़ाना और इसे लेकर तकनीकी व्यवस्थाओं का विकास करना है.
इसके अलावा देश में रासायनिक खेती को कम करके जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए लाई गई ‘परंपरागत कृषि विकास योजना’ के बजट में भी कमी देखने को मिल रही है.
वित्त वर्ष 2021-22 के लिए इस योजना के तहत 450 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जबकि इससे पिछले साल बजट राशि 500 करोड़ रुपये थी.
वित्त वर्ष 2020-21 में आवंटित राशि को भी सरकार खर्च नहीं कर पाई, जिसके कारण इसे घटाकर 350 करोड़ रुपये कर दिया गया है.
कृषि में सिंचाई व्यवस्था में सुधार करने के लिए लाई गई ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ के तहत पिछले साल 4,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे. लेकिन अब इसे कम करके 2,563.20 करोड़ रुपये कर दिया गया है, जो कि दर्शाता है कि सरकार आवंटित राशि को खर्च करने में असमर्थ रही है.
यदि कुल मिलाकर देखें तो कृषि मंत्रालय के बजट में पिछले साल की तुलना में करीब आठ फीसदी की कटौती हुई है.
वित्त वर्ष 2020-21 में मंत्रालय के कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग का बजट 1.34 लाख करोड़ रुपये था, जिसे वित्त वर्ष 2021-22 में घटाकर 1.23 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है.
इस बजट का ज्यादातर हिस्सा 65,000 करोड़ रुपये पीएम-किसान योजना के लिए आवंटित किया गया है, जो कि सीधे किसानों के खाते में डाला जाता है.
इस तरह कृषि संकट को ध्यान में रखते हुए इस क्षेत्र की समस्याओं का संस्थागत समाधान करने के लिए काफी कम राशि बचती है.