बाल अधिकारों से जुड़े संगठनों ने आम बजट से निराशा जताते हुए कहा कि बच्चों के लिए इस बार का बजटीय आवंटन बीते दस वर्षों में सबसे कम है. कोविड-19 के दौरान बच्चों ने बहुत-सी चुनौतियों का सामना किया, उम्मीद थी कि उनकी शिक्षा पर होने वाला बजटीय आवंटन बढ़ेगा, पर उनकी शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी गई.
नई दिल्ली: बाल अधिकारों से जुड़े संगठनों ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा सोमवार को पेश किए गए आम बजट से निराशा जताई और कहा कि बच्चों के लिए पिछले एक दशक में ‘सबसे कम’ बजटीय आवंटन हुआ है.
संगठनों ने कहा कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर बच्चों को अभी सबसे अधिक वित्तीय संसाधनों की जरूरत है.
चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की प्रीति महारा ने कहा कि बच्चों के लिए इस बार का बजटीय आवंटन पिछले 10 वर्षों में सबसे कम है. उनके मुताबिक इसमें 2.05 प्रतिशत की कमी आई है.
उन्होंने कहा, ‘बजट में आर्थिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया गया है लेकिन बच्चों पर निवेश को ध्यान नहीं रखा गया है. बच्चों पर निवेश से भविष्य में बहुत फायदा होता.’
महारा ने कहा कि बजट में बच्चों की शिक्षा को नजरअंदाज किया गया है और उनकी सुरक्षा का भी ख्याल नहीं रखा गया है.
उन्होंने कहा, ‘कुल मिलाकर बजट की समीक्षा से यही पता चलता है कि इसमें देश को फिर से बेहतर बनाने की दिशा में बच्चों को शामिल करने के मौके से सरकार चूक गई है.’
महारा ने कहा कि देश को उम्मीद थी कि नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के मद्देनजर इस क्षेत्र में निवेश किया जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
अन्य बाल अधिकार संगठनों ने एक संयुक्त बयान में कहा कि कोविड-19 के मद्देनजर जहां उम्मीद की जा रही थी कि बच्चों के लिए सबसे अधिक वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता है वहीं उनके बजट में कमी कर दी गई.
बाल अधिकार संगठन ‘सेव द चिल्ड्रेन’ ने कहा कि कोविड महामारी के दौरान बच्चों ने बहुत सारी चुनौतियों का सामना किया और ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि उनकी शिक्षा पर होने वाले बजटीय आवंटन में वृद्धि होगी लेकिन उनकी शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी गई.