वैश्विक महामारी दौर में केंद्रीय बजट के बाद शहरों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था जिसमें शब्दों के परे ऐतिहासिक करने का अवसर था. शहरी ग़रीबों को लगा था कि यह बजट उनका होगा, लेकिन कुछ घोषणाओं व शब्दों के खेल के अलावा बजट में महत्वपूर्ण रूप से उनकी बात नहीं हो पाई.
लगा था पैदल चल के गए मजदूरों के लिए शहरी रोजगार गारंटी आएगा, मेट्रोलाइट और मेट्रो नीओ आया है. लगा था इस बार उन्हें सुरक्षित आवास का अधिकार मिलेगा, रेंटल हाउसिंग परियोजनाओं पर बनाने वालों को टैक्स में छूट मिला है.
लगा था कम से कम इस बार तो बेघरों को आश्रय स्थलों से आगे बढ़ाकर आवास सुनिश्चित कराने की बात की जाएगी, किफायती आवास परियोजनाओं पर बिल्डरों को एक साल और का टैक्स छूट मिला है.
कहने की बात यह है कि वैश्विक महामारी के बाद शहरी गरीबों को लगा था कि यह बजट उनका होगा, लेकिन हुआ यह कि इस बजट में उनके अलावा सबके लिए कुछ है. शहरी गरीब के हिस्से में पानी के अलावा कुछ नहीं आया, पानी भी यूं कि छह साल में वादा किया गया है, तब तक देखा जाएगा क्या होता है.
एक फरवरी 2021 को भारत की वित्त मंत्री ने केंद्रीय बजट प्रस्तुत किया. यह बजट इसलिए महत्वपूर्ण था कि यह मई 2020 में ‘आत्मनिर्भर भारत’ में किए गए घोषणाओं के बाद किया जा रहा था, जिनमें कुल 395 वादे किए गये थे.
इनमें से मात्र 25 घोषणाएं शहरी गरीबों के लिए थे जिनमें प्रवासी श्रमिकों के लिए रेंटल आवास तथा वन नेशन वन राशन कार्ड, पथ विक्रेताओं (रेहड़ी-पटरी वाले) के लिए स्वनिधि योजना आदि शामिल हैं. यह बजट आत्मनिर्भर भारत की घोषणा का आगे का रास्ता होना चाहिए था, जिसमें शहरी गरीब व श्रम की भूमिका अहम है.
बजट में सबसे अधिक आवंटन जिन मंत्रालयों को किया गया उनमें आवास एवं शहरी मामले मंत्रालय 54,581 करोड़ रुपए के साथ दसवें स्थान पर है. पहले नंबर पर बिना किसी शक के रक्षा है, हालांकि इस बार स्वास्थ्य मंत्रालय का आवंटन ऊपर जाना तय माना जा रहा था, और ऐसा हुआ भी.
बात करें आवास एवं शहरी मामलों और श्रम विभाग की तो शहरी मामलों में बजट का आवंटन पिछले वर्ष के मुकाबले 09 प्रतिशत बढ़ा है, जो एस्टिमेटेड (अनुमानित) बजट 50,039 करोड़ से बढ़कर 54581 करोड़ हो गया है.
वहीं श्रम व रोजगार मंत्रालय का बजट पिछले वर्ष के 12,065 करोड़ के मुकाबले 10 प्रतिशत बढ़कर 13306 करोड़ हुआ है. देखना पड़ेगा कि संशोधित बजट के समय वह कितना रह जाएगा क्योंकि पिछले वर्ष आवास एवं शहरी मामले मंत्रालय का बजट अपने एस्टिमेटेड बजट से घटकर 46,790 करोड़ रह गया था लेकिन इसके विपरीत श्रम मंत्रालय के बजट में यह देखने को मिला कि संशोधित बजट अपने मूल बजट से बढ़कर 13719 करोड़ हो गया, और सच यह है कि इस वर्ष श्रम मंत्रालय का बजट पिछले वर्ष के संशोधित बजट से घट गया है.
जिसका सीधा मतलब यह है कि जिस समय देश में श्रमिकों व रोजगार के लिए किए जाने वाले प्रयासों की सबसे ज्यादा जरूरत है, उस समय श्रम मंत्रालय के बजट में कटौती की गई है.
आवास एवं शहरी मामले मंत्रालय के बजट को कुछ महत्वपूर्ण आयामों में देखना जरूरी है; घोषणाएं, योजनाओं का क्रियान्वयन, आवास व जमीन, तथा सरकार का शहरी विकास के प्रति विजन.
कुछ महत्वपूर्ण घोषणाएं की गई हैं. सभी के लिए जल आपूर्ति के लिए ‘जल जीवन मिशन (शहरी)’ की शुरुआत करना, स्वच्छ भारत मिशन 2.0 की शुरुआत करना, शहरों में सार्वजनिक यातायात को बढ़ावा देने के लिए सरकारी-निजी सहभागिता (पीपीपी) में बस परिवहन में निवेश, तथा मेट्रो परिवहन के नए मॉडल मेट्रो नियो व मेट्रो लाइट की घोषणा, जिससे कि कई शहरों को मेट्रो परिवहन से जोड़ा जा सके.
इसके अतिरिक्त किफायती आवास व रेंटल हाउसिंग की परियोजनाओं से जुड़े निर्माणकर्ताओं को टैक्स में छूट का प्रावधान किया गया है. इन सभी घोषणाओं में जल जीवन मिशन से जुड़ी अपेक्षाओं को छोड़ दें तो कहीं भी शहर के मजदूर व गरीब वर्ग के लिए कोई प्रावधान नहीं दिखते हैं.
श्रम मंत्रालय के लिए महत्वपूर्ण घोषणा यह है कि सभी राज्यों में वन नेशन-वन राशन कार्ड का क्रियान्वयन किया जाएगा, गिग व प्लैट्फॉर्म मजदूरों के लिए भी सामाजिक सुरक्षा का विस्तार होगा तथा इन सभी तरह के मजदूरों के लिए एक विशेष पोर्टल बनाई जाएगी, जिसमें सभी की जानकारी एकत्रित की जाएगी.
योजनाओं का क्रियान्वयन
इस समय देश में शहरी मामले मंत्रालय की ओर से आठ महत्वपूर्ण योजनाएं चल रही हैं, जिनमें पांच योजनाएं फ्लैगशिप योजनाओं की तरह हैं, जिसमें प्रधानमंत्री आवास योजना, स्मार्ट सिटीज मिशन, स्वच्छ भारत मिशन, AMRUT व राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन हैं.
इन सभी योजनाओं को एनडीए सरकार के पहले कार्यकाल में ही घोषित किया गया था. स्मार्ट सिटीज मिशन, प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी अति महत्वकांक्षी योजनाऐं जो इस बजट के साथ अपने क्रियान्वयन के आखिरी पड़ाव पर पहुंच जानी हैं, उनके लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं, और ना ही बजट में कोई विशेष वृद्धि.
जिन योजनाओं का नाम ले कर सरकार अपने पीठ थपथपाती रही है, उन केंद्रीय योजनाओं में भी आवंटन सीमित कर दिया गया है. उन पर कोई विशेष टिप्पणी या वक्तव्य नहीं दिया गया है.
फिर राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन में आवंटन जस का तस रख छोड़ा है, जबकि इस समय बढ़ती बेरोजगारी, लोगों के बिगड़े कारोबार व आवासीय संकट के बाद इस योजना पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
प्रधानमंत्री आवास योजना के बारे में बात करने की विशेष आवश्यकता है. इस योजना के चार प्रमुख आयाम हैं, जिसमें पांचवे आयाम के रूप में रेंटल आवास को जोड़ा गया. इन आयामों में सरकारी आवंटनों में दो आयाम ‘क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम’ तथा ‘बेनिफिशीएरी लेड कन्स्ट्रक्शन’ पर बात करना आवश्यक है.
आर्थिक रूप से कमजोर व निम्न आय समूहों के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के प्रमुख आयाम ‘क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी स्कीम’ के तहत पिछले दो वर्षों से बजट में 600 करोड़ रुपये व 900 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, लेकिन इस साल केवल 10 फीसदी की वृद्धि के साथ 1000 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ है.
वहीं इस वर्ष रेंटल हाउसिंग स्कीम को प्रमुख रूप से तवज्जो दिया गया है, जिसके लिए बजट में कोई आवंटन तो नहीं है, लेकिन इसके निर्माण के लिए परियोजनाओं में टैक्स की छूट जैसे प्रावधान हैं.
इससे तय है कि सरकार ने अपने बजट में लोगों की मांगों और उनके हालात से अधिक महत्व निर्माण कार्य व संरचनात्मक विकास को दिया है. शहरी विकास को अक्सर आधारभूत संरचनाओं के विकास से जोड़ कर देखा जाना शहरी जनसंख्या के प्रति सरकार व सरकारी तंत्र के रवैए को दर्शाता है.
वैश्विक महामारी के दौरान भी शहरों में तमाम संरचनाओं के होते हुए भी मजदूर व अन्य शहरी गरीब वर्ग क्यों बदहवास अपने मूल स्थान पर जाने को विवश हुए? क्या इसका जवाब इस बजट में दिया जा सकता था?
देश के 34 फीसदी जनसंख्या के लिए करीब एक प्रतिशत बजट और वह भी कुछ शहरी विकास के योजनाओं को केंद्रित करते हुए.
हालांकि ऐसा जरूरी नहीं कि शहर में रह रहे लोगों के लिए मात्र शहरी मामले मंत्रालय का ही आवंटन देखा जाना चाहिए, लेकिन जिन मुद्दों के लिए एक मंत्रालय को आवंटन मिलने चाहिए वह बजट में प्रमुखता से जगह नहीं बना पाते. आवास, सुविधाएं, रोजगार, सुरक्षा व किफायती परिवहन के अलावा शिक्षा व स्वास्थ्य भी. शिक्षा व स्वास्थ्य में नाममात्र का प्रावधान किया गया है.
मजदूरों के लिए श्रम विभाग का प्रावधान तो लगभग नदारद है. प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत शहरी स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए भी प्रावधान हैं, जिसमें 11000 शहरी स्वास्थ्य व कल्याण केंद्र को सहायता व हर जिले में जन स्वास्थ लैब की स्थापना करने की योजना है.
आवास व जमीन
इस बजट में आवास का जिक्र मात्र दो मामलों में ही किया गया है. एक तो किफायती आवास से जुड़े परियोजनाओं में टैक्स में मिलने वाली छूट की अवधि एक वर्ष के लिए बढ़ा दी गई है, और दूसरी बार रेंटल आवास की परियोजनाओं को भी टैक्स में छूट मिलेगा.
टैक्स में छूट शहरी आवास के लिए उठाया गया इस बजट में सबसे बड़ा कदम है, और हम इस बजट में विभिन्न शहरों में रह रहे अनौपचारिक बस्तियों, बेघरों, व आर्थिक रूप से कमजोर विभिन्न वर्गों के प्रति सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदमों की बात कर रहे हैं.
बजट में आवंटन के साथ साथ क्रियान्वयन में कुछ बातों पर भी ध्यान देना आवश्यक है. 2015 से 2019 तक प्रधानमंत्री आवास योजना के विभिन्न आयामों के अंतर्गत कुल 32 लाख घर स्वीकृत किए गये थे, परंतु 2019 से 2020 व 2021 आते आते स्वीकृत घरों की संख्या 110 लाख हो गयी है.
केवल दो वर्षों में स्वीकृत घरों की संख्या में 244% वृद्धि हो गयी, जो पिछले 5 वर्षों से 100% की वृद्धि तक था. इस वृद्धि के बावजूद बजट में कोई खास प्रावधान नहीं हुआ है. सब के लिए आवास इस सरकार की प्रमुखताओं में से एक है, व इसे अलग-अलग प्लैट्फ़ॉर्म पर प्रधानमंत्री व शहरी मामले के मंत्री द्वारा बार-बार दोहराया भी गया है. इसके बावजूद आवास के बजट में मामूली बढ़ोत्तरी, और वह भी किस आयाम में, यह स्पष्ट नहीं.
इस सब के साथ इस बजट में कुछ बातें काफी चिंताजनक हैं. जिनमें महत्वपूर्ण है कि अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा कि सभी मंत्रालयों के अधीन खाली या बेकार पड़े सरकारी जमीनों को आर्थिक उपयोग में लाया जाए.
इसका सीधा असर विभिन्न सरकारी जमीनों पर बसी वर्षों पुरानी बस्तियों के आवासीय खतरों से है. विभिन्न शहरों की प्लानिंग व विकास योजनाओं के दस्तावेजों में बस्तियों व अनौपचारिक बसाहटों को खाली जमीन या अतिक्रमण के रूप में दिखाया जाता है.
बजट के इस प्रावधान का असर यह हो सकता है कि वो सरकारी जमीन जिन पर बस्तियां बसी हुई हैं, उन्हें आर्थिक उपयोग में लाने के लिए खाली करवाया जा सकता है, जिससे शहर में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आवासीय संकट गहरा सकता है.
हालांकि यह सिर्फ एक कयास है, लेकिन सरकार ने पहले भी ऐसे कई प्रयास किए हैं, जिसके कारण जमीन पर रह रहे लोगों में अचानक आवास का खतरा बाढ़ गया है. यह जमीन अधिग्रहण के समय भी होता है व किसी सरकारी कंपनी के विनिवेश से.
विनिवेश इस बजट का एक मुख्य मुद्दा रहा और इसे अब एक सामान्य प्रक्रिया के रूप में देखा जाने लगा है, जिसके अपने प्रभाव व दुष्प्रभाव हैं. अनौपचारिक बस्तियों में रह रहे लोगों के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है.
क्या किया जा सकता था?
बजट भाषण में बार बार ‘V शेप ग्रोथ’ की बात की गयी. इसमें V शेप का मतलब भी समझना आवश्यक है. क्या यह त्वरित विकास बिना असंगठित मजदूरों व शहरी गरीब समुदायों के संभव है?
आत्मनिर्भर भारत का कोई भी कार्यक्रम असंगठित, अनौपचारिक व स्वयं पर आश्रित मजदूरों के परे सोची जा सकती है क्या? यह महत्वपूर्ण है.
कई कयास लगाए गये थे कि क्या और बेहतर हो सकता था. वर्तमान परिस्थितियों में कोविड-19 व उसके पहले की स्थितियों को देखते हुए कुछ महत्वपूर्ण प्रयास करने छूट गये.
इसमें सबसे महत्वपूर्ण है शहर के लिए रोजगार गारंटी योजना या कानून. कोविड-19 के दौरान फैली स्थिति को देखकर यह तय लग रहा था कि शहर में रोजगार को लेकर कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाए जाएंगे व कई समूहों व संगठनों ने इस बात का भी सुझाव दिया था कि ‘मनरेगा’ की तर्ज पर शहरों में भी एक रोजगार गारंटी के लिए एक योजना बनायी जाए जिससे कि शहरी मजदूरों को रोजगार की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
प्रवासी श्रमिकों के पलायन व आवास के संकट को ध्यान में रखते हुए रेंटल आवास के साथ-साथ दो अन्य प्रयास भी किए जा सकते थे, जिनमें वर्किंग मेन हॉस्टल व एम्प्लॉयर द्वारा वित्त पोषित श्रमिकों के लिए आवास शामिल हैं.
रेंटल आवास की तरह यह दो उपाय भी सरकार की निगरानी में निजी संस्थानों द्वारा संचालित किए जा सकते थे, व यह बेहतर विकल्प भी साबित हो सकते थे.
रेंटल आवास योजना के माध्यम से पहले से ही स्थापित रेंटल आवास बाजार को और बेहतर ढंग से नियंत्रित किया जाए तथा उन्हें किफायती बना कर उसमें हर वर्ग की सुगमता को बढ़ाया जाए.
इसके अतिरिक्त एक अन्य उपाय वित्तीय रूप से नगर निकायों को और भी सक्षम करने का प्रयास किया जा सकता था जिससे कि वह स्वतंत्र रूप से भी कुछ पहल ले सकें.
2021-22 का केंद्रीय बजट कोरोना के बाद शहरों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था जिसमें शब्दों के परे ऐतिहासिक करने का अवसर था, लेकिन कुछ घोषणाओं व कुछ शब्दों के खेल के अलावा बजट में शहरी गरीबों की महत्वपूर्ण रूप से बात नहीं हो पाई. बहुत सारे शब्दों में अर्थ ढूंढना महत्वपूर्ण है, ढूंढना भी पड़ेगा.
(अंकित झा आवास कार्यकर्ता हैं और युवा नामक संगठन से जुड़े हैं. एविटा दास रिसर्चर हैं और जाति एवं आवास संबंधी विषयों पर काम कर रही हैं.)