सार्वजनिक रूप से पोषित शैक्षणिक संस्थानों से किसी भी तरह के ऑनलाइन एवं वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस या सेमिनार का आयोजन करने के लिए संबंधित प्रशासनिक सचिव से मंज़ूरी लेने को कहा गया है. द इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेस और द इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस ने शिक्षा मंत्रालय को पत्र लिखकर इन पाबंदियों को वापस लेने की मांग की है.
नई दिल्लीः देश की दो सबसे बड़ी और सबसे पुरानी विज्ञान अकादमियों ने शिक्षा मंत्रालय को पत्र लिखकर कहा है कि सभी संस्थानों के लिए वेबिनार के लिए अनिवार्य रूप से सरकार की मंजूरी लेने के मंत्रालय के हाल के आदेश से सभी वैज्ञानिक चर्चा पूरी तरह से रुक सकती हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, द इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेस और द इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस ने कहा कि इसके साथ ही इन नए नियमों की वजह से युवाओं के बीच विज्ञान को लेकर उनकी रुचि बाधित हो सकती है.
इन दोनों संस्थानों के साथ एक तीसरी संस्था द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस भी इसमें शामिल हो सकती है.
द इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेस, द इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस और द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में कुल मिलाकर देश के 2,500 से अधिक शीर्ष वैज्ञानिक हैं.
शुरुआती दोनों संस्थानों ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को अलग-अलग पत्र लिखकर इन प्रतिबंधों को वापस लेने की मांग की है.
सूत्रों का कहना है कि तीसरा संस्थान इस याचिका का समर्थन करने से विचार कर रहा है.
यह आदेश 15 जनवरी को जारी किया गया. इसे पिछले साल नवंबर महीने में विदेश मंत्रालय ने नई प्रक्रिया अधिसूचित की थी, जिसमें सार्वजनिक रूप से पोषित शैक्षणिक संस्थानों और यूनिवर्सिटी सहित सभी सरकारी इकाइयों से किसी भी तरह के ऑनलाइन एवं वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस या सेमिनार का आयोजन करने के लिए संबंधित प्रशासनिक सचिव से मंजूरी लेने को कहा गया है.
यह भी कहा गया कि इस तरह के कार्यक्रमों के आयोजन की मंजूरी देते हुए मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस कार्यक्रम का विषय राज्य, सीमा, पूर्वोत्तर राज्यों, जम्मू कश्मीर, लद्दाख जैसे केंद्रशासित प्रदेशों या किसी अन्य मुद्दे जो स्पष्ट रूप से भारत क आंतरिक मामलों से जुड़े हुए हों, उनसे संबंधित नहीं होने चाहिए.
इससे पहले आयोजकों को नॉन वर्चुअल सेमिनार में विदेशी वक्ताओं के तौर पर विदेशी अतिथियों को भारत बुलाने के लए राजनीतिक मंजूरी की जरूरत होती थी, लेकिन जिस विषय पर वे बोलने जा रहे हैं, इसके लिए पूर्व में मंजूरी की जरूरत नहीं थी. इसके साथ ही भारत के आंतरिक मामले जैसी कोई विशेष श्रेणी प्रतिबंधित नहीं थी.
पोखरियाल को लिखे पत्र में इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेस के अध्यक्ष पार्थ मजूमदार ने कहा है, ‘अकादमी का दृढ़ विश्वास है कि हमारे देश की सुरक्षा निश्चिंत किए जाने की जरूरत है. हालांकि, ऑनलाइन वैज्ञानिक बैठकें या भारत के आंतरिक मामलों से जुड़े हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के लिए पूर्व में मंजूरी लेना भारत में विज्ञान की प्रगति के लिए अहितकर है.’
देश के सबसे प्रतिष्ठित जैव-सांख्यिकीविदों में से एक और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स के संस्थापक निदेशक मजूमदार ने कहा कि इस आदेश में भारत के आतंरिक मामलों को परिभाषित नहीं किया गया या यह स्पष्ट नहीं किया गया कि ऑनलाइन कार्यक्रमों के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय से क्या तात्पर्य है.
मजूमदार ने कहा, ‘भले ही सभी वक्ता या प्रशिक्षक भारतीय संस्थानों के वैज्ञानिक हैं. यह भारत के बाहर के संस्थानों के वैज्ञानिकों के लिए संभव है कि वे ऑनलाइन दिए गए व्याख्यान को सुनें, सवाल पूछें और चर्चा में भाग लें. यह अकादमी के लिए स्पष्ट नहीं है कि क्या इस तरह के कार्यक्रमों को अंतरराष्ट्रीय समझा जाएगा और पूर्व मंजूरी मांगे जाने की जरूरत है?’
उन्होंने आगे कहा, ‘अगर ऐसा है तो यह सभी सामूहिक वैज्ञानिक कार्यक्रमों के लिए मंजूरी प्राप्त करने के समान है, जिससे भारत में सभी सामयिक वैज्ञानिक चर्चाओं पर पूर्ण रोक लगेगी, क्योंकि बड़ी संख्या में मंजूरी के लिए आवेदन प्राप्त होंगे, जिन्हें समय पर मंजूरी नहीं दी जा सकेगी.’
शिक्षा मंत्री को लिखे उनके पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि यह आदेश केवल सरकारी संस्थानों पर लागू है.
उन्होंने कहा, ‘यह सार्वजनिक क्षेत्र में वैज्ञानिक खोज पर गंभीर बाधा डालेगा, लेकिन निजी संस्थानों पर ऐसा नहीं होगा. अकादमी इसे अनुचित मानती है.’
मजूमदार ने कहा कि वेबिनार और ऑनलाइन कार्यक्रमों ने देश के वैज्ञानिकों के लिए संभावनाओं के द्वार खोले हैं, विशेष रूप से युवाओं और छात्रों के लिए.
उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के लिए किसी कार्यक्रम में नोबेल पुरस्कार विजेता को आमंत्रित करना बहुत मुश्किल होता था लेकिन वेबीनार में छोटे या कम लोकप्रिय संस्थान भी प्रसिद्ध हस्तियों को आमंत्रित कर उन्हें सुन सकते हैं.’
उन्होंने कहा कि इन नए नियमों से देश में युवा पीढ़ी के लिए शैक्षिक अवसरों की वृद्धि और विज्ञान में रुचि बाधित होगी.