अंधविश्वास बढ़ाने के आरोपों के बीच राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की गौ-विज्ञान परीक्षा स्थगित

केंद्र सरकार ने बीते पांच जनवरी को घोषणा की थी कि गाय की देसी नस्ल और इसके फायदे के बारे में रुचि पैदा करने की कोशिश के तहत 25 फरवरी को गौ-विज्ञान परीक्षा का आयोजन किया जाएगा. इस परीक्षा की यह कहते हुए आलोचना की जा रही थी कि यह अंधविश्वास फैलाने और देश में शिक्षा क्षेत्र का भगवाकरण करने की कोशिश है.

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(फोटो साभार: फेसबुक)

केंद्र सरकार ने बीते पांच जनवरी को घोषणा की थी कि गाय की देसी नस्ल और इसके फायदे के बारे में रुचि पैदा करने की कोशिश के तहत 25 फरवरी को गौ-विज्ञान परीक्षा का आयोजन किया जाएगा. इस परीक्षा की यह कहते हुए आलोचना की जा रही थी कि यह अंधविश्वास फैलाने और देश में शिक्षा क्षेत्र का भगवाकरण करने की कोशिश है.

(फोटो साभार: फेसबुक)
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नई दिल्ली/तिरुवनंतपुरम: गाय के बारे में अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सूचना फैलाने को लेकर चौरफा आलोचना के बीच राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने 25 फरवरी को होने वाली राष्ट्रीय गौ-विज्ञान ऑनलाइन परीक्षा को स्थगित कर दिया है.

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर एक घोषणा में कहा कि कृपया ध्यान दें कि कामधेनु गौ विज्ञान प्रचार प्रसार ऑनलाइन परीक्षा/प्रतियोगिता जो 25 फरवरी 2021 के लिए निर्धारित की गई थी, जिसमें 21 फरवरी 2021 को मॉक परीक्षा आयोजित की जानी थी, को स्थगित कर दिया गया है.

Please note that online Kamdhenu Gau Vigyan Prachar Prasar Exam /Pratiyogita which was scheduled for 25th Feb 2021, including Mock Examination on 21st Feb 2021 has been postponed.

Posted by Rashtriya Kamdhenu Aayog on Saturday, February 20, 2021

 

बताया जा रहा है कि इस परीक्षा के लिए देशभर में पांच लाख से अधिक उम्मीदवारों ने पंजीयन कराया था. हालांकि इस परीक्षा को अंधविश्वास बढ़ाने वाला बताकर इसकी आलोचना होने लगी.

केरल शास्त्र साहित्य परिषद ने ‘गौ-विज्ञान’ पर राष्ट्रीय स्तर की स्वैच्छिक ऑनलाइन परीक्षा को रद्द करने की मांग करते हुए कहा कि यह अंधविश्वास फैलाने और देश में शिक्षा क्षेत्र का भगवाकरण करने की कोशिश है.

परिषद ने हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा सभी कुलपतियों को जारी उस निर्देश को नजरअंदाज करने की नागरिक संस्थाओं से अपील की है, जिसके जरिये छात्रों को राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) द्वारा आयोजित परीक्षा में बैठने के लिए प्रोत्साहित किया गया है.

उल्लेखनीय है कि केरल शास्त्र साहित्य परिषद केरल में एक प्रगतिशील संगठन है और लोगों का विज्ञान आंदोलन है.

केंद्र सरकार ने पांच जनवरी को घोषणा की थी कि गाय की देसी नस्ल और इसके फायदे के बारे में छात्रों और आम आदमी के बीच रुचि पैदा करने की कोशिश के तहत 25 फरवरी को गौ-विज्ञान परीक्षा का आयोजन किया जाएगा.

परिषद ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘यह निंदनीय और स्तब्ध कर देने वाला है कि देश में विश्वविद्यालय शिक्षा की शीर्ष संस्था छात्रों को एक ऐसी परीक्षा में बैठने के लिए प्रेरित कर रही है जो अवैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है.’

आयोग ने कहा था कि प्रारूप परीक्षा का पाठ्यक्रम आरकेए की वेबसाइट पर उपलब्ध करा दिया जाएगा.

परिषद ने कहा कि वेबसाइट पर कई सारे बेकार के दावे किए गए हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.

परिषद ने कहा, ‘वेबसाइट पर यह दावा किया गया है कि देशी नस्ल की गाय के दूध में सोना घुले होने के सुराग मिले हैं, जिस कारण उसका दूध हल्के पीले रंग का होता है. इसमें यह भी कहा गया है कि गाय का दूध मानव को परमाणु विकिरण से बचाता है.’

परिषद ने बयान में कहा कि यह कदम देश में शिक्षा प्रणाली का भगवाकरण करने की प्रक्रिया का हिस्सा है.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक परिषद ने कहा कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 51ए (एच) कहता है कि प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद, जांच और सुधार की भावना का विकास करे.

परिषद ने कहा, ‘यह अपमानजनक है कि एक देश जिसका संविधान वैज्ञानिक जागरूकता पर जोर देता है उसकी एक सरकारी एजेंसी अंधविश्वास फैलाने में सहयोग कर रही है.’

परिषद ने कहा, ‘यह भारतीय विश्वविद्यालयों और शिक्षा प्रणाली को दुनिया के सामने शर्मिंदा करेगा.’

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के तहत आता है. केंद्र ने इसका गठन फरवरी 2019 में किया था.

पश्चिम बंगाल के जाधवपुर विश्वविद्यालय ने भी इस परीक्षा को न कराने का सोमवार को निर्णय लिया है. आनंद बाजार पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार, विश्वविद्यालय ने स्पष्ट किया है कि इस तरह की कोई परीक्षा नहीं ली जाएगी.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)