गोरखपुर में पिछले तीन दिन में इंसेफलाइटिस से 39 और बच्चों की मौत

गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 67 बच्चों की मौत पर एक तरफ हंगामा जारी है, दूसरी ओर पिछले तीन दिनों में 39 और बच्चों की मौत हो चुकी है.

//
PTI8_12_2017_000040B

गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 67 बच्चों की मौत पर एक तरफ हंगामा जारी है, दूसरी ओर पिछले तीन दिनों में 39 और बच्चों की मौत हो चुकी है.

Gorakhpur Encephalitis PTI
गोरखपुर को बीआरडी मेडिकल कॉलेज. (फोटो: पीटीआई)

गोरखपुर के बाबा राघवदास अस्पताल में इंसेफलाइटिस के चलते मौतों का सिलसिला जारी है. अस्पताल में आक्सीजन खत्म होने से करीब 67 बच्चों की मौत के बाद काफी हंगामा हुआ लेकिन मौतें नहीं रोकी जा सकी हैं. पिछले तीन दिनों में बीआरडी कॉलेज में कम से कम 39 बच्चों की मौत हो चुकी है.

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 14 अगस्त को 21 मौतें हुईं. 15 अगस्त को 13 मौतें हुईं और 16 अगस्त को 5 और बच्चों की मौत हो चुकी है. हालांकि, वहां के स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि 16 अगस्त का आंकड़ा देर रात या 17 को पता चल सकेगा.

16 अगस्त को समाचार एजेंसी भाषा द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, बाबा राघव दास अस्पताल में पिछले 48 घंटे के दौरान इंसेफेलाइटिस की वजह से पांच और बच्चों की मौत हो गई.

अपर निदेशक स्वास्थ्य कार्यालय से प्राप्त सूचना के मुताबिक 15 और 16 अगस्त को इंसेफलाइटिस के पांच मरीजों की मौत हो गई. इसके साथ ही इस साल मेडिकल कॉलेज में सिर्फ इंसेफलाइटिस के कारण मरने वालों की संख्या बढ़कर 144 हो गई है. अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों की भी मौत हुई है, लेकिन ज्यादातर पीड़ित इंसेफलाइटिस के मरीज हैं.

आज तक पर 16 अगस्त को प्रकाशित एक खबर के अनुसार, ‘पिछले दो दिनों में बीआरडी कॉलेज में 34 बच्चों की मौत हो गई है. 13 अगस्त की आधी रात से लेकर 14 अगस्त तक 24 बच्चों ने अपनी जान गंवाई. वहीं 14 अगस्त की आधी रात से लेकर 15 अगस्त तक 10 बच्चों की मौत हुई. पिछले हफ्ते तक मरने वाले बच्चों की संख्या 63 थी.’

अमर उजाला अखबार ने 15 अगस्त के संस्करण में लिखा है कि पिछले दो दिनों यानी 13 और 14 अगस्त के दौरान इंसेफलाइटिस से 20 लोगों की मौत हो चुकी है. समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, 12 अगस्त से 14 अगस्त के बीच मस्तिष्क ज्वर इंसेफेलाइटिस से छह और बच्चों की मौत हुई.

गौरतलब है कि पिछले चार दशक से यह बीमारी पूर्वांचल में कहर ढा रही है. इस साल आठ अगस्त तक 124 मौतें हुई हैं. वहीं पिछले साल 641 तथा 2015 में 491 बच्चों की मौत हुई थी.

अपर स्वास्थ्य निदेशक डॉक्टर पुष्कर आनन्द ने भाषा को बताया है कि गत 12 अगस्त से 14 अगस्त के बीच मस्तिष्क ज्वर की वजह से छह और बच्चों की मौत हो गई. इन दो दिनों में मस्तिष्क ज्वर के करीब 21 मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराया गया. बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इस समय ऐसे करीब 75 रोगियों का इलाज किया जा रहा है.

उधर, यूपी के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह का कहना है कि अस्पताल में आक्सीजन गैस आपूर्ति कमीशनखोरी के चलते बाधित हुई. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी इस घटना का संज्ञान लिया है.

मौतें रुक नहीं रहीं और राजनीति जारी है

इंसेफलाइटिस से बच्चों की मौतों का सिलसिला तो रुका नहीं, इस मसले पर राजनीति जरूर शुरू हो गई है. बच्चों की मौत को लेकर राजनीतिक सरगर्मी बरकरार है. समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने 14 अगस्त को गोरखपुर का दौरा किया और इस त्रासद घटना के पीड़ित परिजन से मुलाकात की.

उधर, राजधानी लखनउ में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष राज बब्बर भी विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं. बब्बर ने बच्चों की मौत को हत्या करार देते हुए कहा था कि वह इस हत्यारी सरकार से पूछना चाहते हैं कि अभी और कितने बच्चे मारे जाएंगे. कांग्रेस मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग कर रही है.

‘पहली बार ऐसी घटना नहीं घटी’

आदित्यनाथ के इस्तीफे की कांग्रेस की मांग को खारिज करते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बेंगलूरु में कहा था कि कांग्रेस के शासन में भी इस तरह की घटनाएं घटी हैं. कांग्रेस के लिए योगीजी का इस्तीफा मांगना स्वाभाविक है. इतने बड़े देश में पहली बार ऐसी घटना नहीं घटी है. कांग्रेस की सरकारों में भी इस तरह की घटनाएं घटी हैं.

गोरखपुर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथा का गृह क्षेत्र है और वह यहां से सांसद भी हैं. जब शाह से पूछा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक गोरखपुर मामले पर ट्वीट क्यों नहीं किया, इस पर भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि प्रधानमंत्री इस घटना पर मीडिया में अपना दुख पहले ही व्यक्त कर चुके हैं.

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने प्रदेश के मुख्य सचिव को एक नोटिस जारी करके कहा है कि वह मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत से प्रभावित परिवारों को राहत दिलाने के लिए उठाए गए कदमों और घटना के दोषी लोगों के खिलाफ की गई कार्वाई के बारे में चार दिन के अंदर विस्तृत रिपोर्ट दें.

14 राज्यों में है इंसेफलाइटिस का असर

पूर्वी उत्तर प्रदेश के 12 जिले इंसेफलाइटिस से प्रभावित हैं. यूपी समेत देश के 14 राज्यों में इस बीमारी का असर है और रोकथाम के बजाय इलाज पर ध्यान देने की वजह से यह बीमारी बरकरार है.

केंद्रीय संचारी रोग नियंत्रण कार्यक्रम निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, असम और बिहार समेत 14 राज्यों में इंसेफलाइटिस का प्रभाव है, लेकिन पश्चिम बंगाल, असम, बिहार तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में इस बीमारी का प्रकोप काफी ज्यादा है.

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संत कबीरनगर, देवरिया समेत 12 जिले इससे प्रभावित हैं.

गोरखपुर समेत पूर्वांचल में मस्तिष्क ज्वर और जलजनित बीमारी इंटेरो वायरल की रोकथाम के लिए काम रहे डॉक्टर आरएन सिंह ने बताया कि असम और बिहार के कुछ जिलों के हालात गोरखपुर से कम बुरे नहीं है.

उन्होंने आरोप लगाया कि बाकी राज्यों में इंसेफलाइटिस की वजह से होने वाली मौतों का आंकड़ा दबा दिया जाता है इसलिए गोरखपुर समेत पूर्वांचल में इस बीमारी की मौजूदगी की गूंज सबसे ज्यादा सुनाई देती है.

‘कम से कम एक लाख मौतें’

इंसेफलाइटिस पर काम करने वाले गोरखपुर के डॉक्टर आरएस सिंह मानते हैं कि पूर्वांचल में इंसेफलाइटिस से अब तक हुई मौतों का आंकड़रा एक लाख से अधिक है. उनके मुताबिक़, ‘यह बीमारी भारत के 19 प्रदेशों में है और 40 साल से है, सिर्फ़ पूर्वांचल में यह बीमारी हर साल पांच से सात हज़ार लोगों को मारती है. पांच-छह सौ के जो हर साल के आंकड़े हैं वे केवल एक अस्पताल बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के हैं. लेकिन अगर पूर्वांचल के 12 ज़िलों के आंकड़े लें तो पांच से सात हज़ार मौतें केवल पूर्वांचल में होती हैं. यूपी के अलावा बिहार, असम, बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में भी यह बीमारी फ़ैली है. इसके बावजूद यह पार्टियों और सरकारों के लिए कोई मुद्दा नहीं है.’

Gorakhpur Incephalitis PTI
गोरखपुर को बीआरडी मेडिकल कॉलेज. (फोटो: पीटीआई)

कई वर्षों से इंसेफलाइटिस पर काम करने वाले आर एन सिंह कहते हैं, ‘मेरे हिसाब से केवल पूर्वांचल के ज़िलों में इंसेफलाइटिस से कम से कम एक लाख मौतें हो चुकी हैं. यहां के एक मेडिकल कॉलेज में पांच से छह सौ मौतें होती हैं. गोरखपुर में 150 नर्सिंग होम हैं, जिनमें सिर्फ दो-दो मौतें मान लीजिए. ज़िला अस्पताल है जहां 50-100 मौतें होती होंगी. दस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. तमाम छोटे-छोटे क्लीनिक हैं, झोलाछाप डॉक्टर हैं. ख़ाली गोरखपुर का आंकड़ा जो पांच सौ से छह सौ बताया जाता है, वह 1500 होगा. इसी तरह प्रभावित 12 ज़िलों में इसका आधा या उससे कम मान लीजिए तो भी प्रतिवर्ष पांच से छह हज़ार मौतें होती हैं. यह बीमारी 40 वर्षों से है. इस आधार पर मैं मानता हूं कि इससे मरने वालों की संख्या एक लाख से भी ज़्यादा है. यह अतिशयोक्ति नहीं है.’

आरएन सिंह इंसेफलाइटिस पर कई वर्षों से काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि उनके पास इसके उन्मूलन और बचाव का कारगर तरीक़ा है लेकिन उनकी कोई नहीं सुनता.

गोरखपुर के मुकाबले असम में ज्यादा मौतें

एनवीबीडीसीपी के आंकड़ों के अनुसार असम में इस साल जापानी इंसेफलाइटिस और एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम की वजह से उत्तर प्रदेश के मुकाबले ज्यादा लोगों की मौत हुई है. उत्तर प्रदेश में इन दोनों प्रकार के संक्रमणों से अब तक कुल 155 लोगों की मृत्यु हुई है, वहीं असम में यह आंकड़ा 195 तक पहुंच चुका है. पश्चिम बंगाल में इस साल अब तक 91 लोग मर चुके हैं.

उत्तर प्रदेश में वर्ष 2010 में इंसेफलाइटिस और एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम से 553 मरीजों, 2011 में 606, वर्ष 2012 में 580, साल 2013 में 656, वर्ष 2014 में 661, साल 2015 में 521 और वर्ष 2016 में 694 रोगियों की मौत हुई थी. असम में इन वर्षों में क्रमश: 157, 363, 329, 406, 525, 395 तथा 279 मरीजों की मौत हुई थी. इस साल यह तादाद 195 तक पहुंच चुकी है. असम में जापानी इंसेफलाइटिस से मरने वालों की तादाद उत्तर प्रदेश के मुकाबले कहीं ज्यादा है.

सरकार को पता ही नहीं क्या करना है

डॉक्टर सिंह ने कहा कि दरअसल, सरकारों को पता ही नहीं है कि उन्हें करना क्या है. शासकीय तथा सामाजिक प्रयासों से टीकाकरण के जरिये जापानी इंसेफलाइटिस के मामलों में तो कमी लाई जा चुकी है लेकिन जलजनित रोग इंटेरो वायरल को रोकने के लिए कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है. इस समय सबसे ज्यादा मौतें इंटेरो वायरल की वजह से ही हो रही हैं.

उन्होंने कहा जलजनित रोगों को रोकने के लिए केन्द्र की पूर्ववर्ती संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कार्यकाल में बना राष्ट्रीय कार्यक्रम अभी तक प्रभावी तरीके से लागू नहीं हुआ है. सरकार चाहे किसी की भी हो, सबके सब केवल इलाज पर काम कर रहे हैं, जबकि इस बीमारी का कोई इलाज ही नहीं है. यह बीमारी इसीलिए बनी हुई है. जब तक इसकी रोकथाम को प्राथमिकता नहीं दी जाएगी, तब तक कुछ नहीं होगा.

डाक्टर सिंह ने कहा कि इसकी रोकथाम के लिए होलिया मॉडल ऑफ वाटर प्यूरीफिकेशन का प्रयोग किया जाना चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस पर मुहर लगाई है. इस प्रक्रिया में पीने के पानी को करीब छह घंटे तक धूप में रखा जाता है, जिससे उसमें हानिकारक विषाणु मर जाते हैं.

पूर्वांचल में ही दिमागी बुखार का प्रकोप फैलने के कारण के बारे में पूछे जाने पर सिंह ने बताया कि इस इलाके में सबसे ज्यादा अशिक्षा और पिछड़ापन है. लोगों में साफ-सफाई की आदत नहीं है. साथ ही जागरूकता की कमी की वजह से यह इलाका इन संचारी रोगों का गढ़ बना हुआ है.

राष्ट्रीय कार्यक्रम कूड़े में फेंक दिया गया

उल्लेखनीय है कि पिछले तीन दशक के दौरान पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस की वजह से 50 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. इस साल गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में अब तक इस बीमारी से कुल 139 बच्चों की मृत्यु हुई है. पूरे राज्य में यह आंकड़ा 155 तक पहुंच चुका है. पिछले साल 641 तथा वर्ष 2015 में 491 बच्चों की मौत हुई थी. गोरखपुर मेडिकल कालेज अस्पताल में पूर्वांचल के अलावा बिहार और नेपाल से भी मरीज इलाज कराने आते हैं.

आरएन सिंह कहते हैं, ‘राहुल गांधी और ग़ुलाम नबी आज़ाद के निर्देश पर 2012 में राष्ट्रीय कार्यक्रम बना. इसके बाद 2014 में नई सरकार आई तो फिर से प्रोग्राम बना. लेकिन किसी भी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में इस बीमारी के उन्मूलन का ज़िक्र तक नहीं किया. यह प्रोग्राम सरकार की आलमारी में रखा हुआ है और बच्चे मर रहे हैं.’

1978 से है इंसेफलाइटिस

गोरखपुर में इंसेफलाइटिस का पहला मामला 1978 में सामने आया था. तब से ही इस बीमारीका क़हर जारी है. यह दो तरह का है. एक जापानी इंसेफलाइटिस या जापानी बुखार, जो मच्छरों से फ़ैलता है. जापानी बुखार पर तो काफ़ी हद तक क़ाबू पा लिया गया है, क्योंकि उसका टीका विकसित कर लिया गया है. दूसरा है जलजनित इंसेफलाइटिस (जेईएस). यह गंदे पानी से फ़ैलता है. इसका वाइरस अभी नहीं खोजा जा सका है, इसलिए इसका इलाज भी नहीं खोजा जा सका है.

इसका प्रकोप जुलाई से शुरू होता है और नवंबर के आसपास कम हो जाता है. हालांकि, अस्पतालों में मरीज पूरे साल आते रहते हैं. इसके वायरस के शरीर में पहुंचते ही तत्काल ही बुखार आता है और वायरस दिमाग़ पर अटैक करते हैं. तुरंत अस्पताल ले जाने पर तो कुछ हद तक कंट्रोल कर लिया जाता है, लेकिन ज़रा भी देर होने पर वायरस अपना काम कर चुका होता है. अगर मरीज की मौत नहीं हुई तो बहुत संभावना रहती है कि उसे मानसिक या शारीरिक अपंगता का शिकार होना पड़ता है.

सावधानी ही बचाव है

इंसेफलाइटिस का अब तक कोई कारगर इलाज तो नहीं है लेकिन यह बीमारी सावधानी बरत कर काफ़ी हद तक रोकी जा सकती है. इस बीमारी की मृत्युदर सबसे ज्यादा 35 प्रतिशत है. डॉक्टरों की सलाह है कि प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि ज़्यादा से ज़्यादा सावधानी बरती जाए. डेंगू की मृत्युदर दो से तीन प्रतिशत है, जबकि इंसेफलाइटिस की मृत्युदर 35 प्रतिशत है. अपंगता का भी प्रतिशत जोड़ लें तो 45 प्रतिशत मरीज इससे प्रभावित होते ही हैं.

यह मुद्दा कई बार संसद में उठ चुका है, लेकिन सरकारें इसे लेकर कुछ भी क़ायदे का काम नहीं कर पाई हैं. राष्ट्रीय कार्यक्रम को आलमारी में दफ़न कर दिया गया है. 70 से अधिक मौतों पर मचे हल्ले के बाद भी मौतें जारी हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)