‘इत्मीनान’ शीर्षक की यह कविता ग्वाटेमाला के क्रांतिकारी कवि ओतो रेने कास्तियो ने लिखी थी, जिन्हें ग्वाटेमाला की फौज ने 19 मार्च 1967 को जान से मार दिया था.
यही है उनके लिए
एहसास सबसे हसीं
लड़ते रहे जो ताउम्र
कि कह सके पहुंच कर
उम्र के आख़िरी मकाम पर
भरोसा किया था हमने
अवाम औ’ ज़िंदगी पर
और ज़िंदगी व अवाम ने
मायूस न किया हमें
यही है वह राह
कि चल के जिस पर
लड़के बनते जवां मर्द
और लड़कियां औरत
जद्दोजहद करते हुए
अवाम औ’ ज़िंदगी के लिए
मुसलसल
और जब ज़िंदगियां
उन मर्द-औरतों की
हो जाती हैं मुकम्मल
खोल देते हैं अवाम
अपने दिलों के दर
और उन दिलों के अंदर
मौजें मारता जो दरिया है
आगोश में ले लेता उन्हें
हमेशा के लिए
और उसमें गहरे उतर
रोशन रहते हैं वो
कहीं दूर दहकते हुए
तुंद अलावों की तरह
और बन जाते हैं फिर
एक मक़बूल नज़ीर
हमेशा के लिए
यही है उनके लिए
एहसास सबसे हसीं
लड़ते रहे जो ताउम्र
कि कह सके पहुंच कर
उम्र के आख़िरी मकाम पर
भरोसा किया था हमने
अवाम औ’ ज़िंदगी पर
और ज़िंदगी व अवाम ने
मायूस न किया हमें
(अंग्रेज़ी से कमल कांत जैसवाल द्वारा अनूदित)