उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों का साल भर बीतने के बाद आज भी पीड़ित इंसाफ के इंतज़ार में हैं और सरकार कार्यकर्ताओं को अपराधी ठहराने के अपने अभियान में लगी हुई है.
नई दिल्लीः दिल्ली दंगे होने के बाद से ही देश की प्रवर्तन एजेंसियों की लगातार कोशिश रही है कि वे पीड़ितों को न्याय और उचित मुआवजे से वंचित कर पीड़ितों की ओर से लड़ रहे वकीलों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ मुहिम छेड़े हुए है.
‘द कंसर्नड सिटिजन्स कलेक्टिव’ (सीसीसी) द्वारा आयोजित मीडिया कॉन्फ्रेंस में वक्ताओं ने यह राय रखी.
यह नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं का एक समूह है, जिन्होंने बीते 26 फरवरी को दिल्ली दंगे और उसके बाद के हालातों समेत कई मुद्दों पर बात की.
इस कॉन्फ्रेंस में सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण, वरिष्ठ पत्रकार हरतोष सिंह बल, कार्यकर्ता नवदीप कौर की बहन राजवीर कौर, दिल्ली दंगों संबंधी मामले में गिरफ्तार खालिद सैफी की पत्नी नरगिस सैफी और युवा अतहर खान की मां नूरजहां मौजूद थे, जिन दोनों पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया.
इन वक्ताओं ने न्याय में देरी, दंगा पीड़ितों को मुआवजा, यूएपीए के तहत युवा कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी और दंगें के बाद नागरिक समाज और मीडिया की भूमिका सहित कई मामलों पर अपने विचार रखे.
कॉन्फ्रेंस की शुरुआत करते हुए सीसीसी की सदस्य बनोज्योत्सा लाहिरी ने कहा कि कार्यकर्ता इशरत जहां और खालिद सैफी को गिरफ्तार किए हुए एक साल हो गया है.
लाहिरी ने कहा, ‘दिल्ली दंगे विनाशकारी थे लेकिन इससे भी अधिक भयानक उसके बाद शुरू हुई विच हंटिंग है. जब पुलिस को लगा कि अन्य सभी मामलों में कोई दम नहीं है तो पुलिस ने खालिद सैफी और इशरत जहां के खिलाफ यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया. मौजूदा समय में जेल में बंद ये दोनों वे पहले पीड़ित हैं, जो विच हंटिंग का शिकार हुए.’
लाहिरी ने कहा कि युवा लोग जो बेहतर समाज के लिए लड़ने के सपने के साथ सड़कों पर उतरे, उन्हें भी जेल में डाल दिया गया.
खालिद सैफी की पत्नी नगरिस सैफी उस दिन को याद करती हैं, जब उन्होंने खालिद को गिरफ्तारी के बाद पहली बार देखा था.
वह कहती हैं, ‘जब मैं उनसे मिलने गई, वे व्हीलचेयर पर थे. उनके हाथों और पैरों पर प्लास्टर था. उनकी दाढ़ी खींची गई थी. उनके चेहरे पर निशान थे. उन्होंने ऐसा क्या किया होगा, जो पुलिस ने उनके साथ ऐसा व्यवहार किया?’
उन्होंने कहा कि जब मैंने उनसे उस दिन के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आठ से नौ पुलिसकर्मियों ने उनकी लाठियों और लातों से पिटाई की थी.
उन्होंने बताया, ‘जब उन्होंने (सैफी) नमाज अदा करने के लिए उनसे साफ कपड़ा मांगा तो उनसे कहा गया कि अभी रुक जा, अभी पढ़ाते हैं तुझे नमाज. पुलिसकर्मियों ने उनकी तब तक पिटाई की जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गए. उन्होंने मुझे बताया कि एक पुलिसकर्मी ने दोबारा उनकी दाढ़ी खींची और उसकी दाढ़ी के बाल खींचकर उनके हाथ में रख दिए. वहीं, एक अन्य पुलिसकर्मी ने का कि चलो इस पर पेशाब करते हैं. उन्हें बार-बार कहा जा रहा है कि उनका एनकाउंटर किया जाएगा.’
उन्होंने कहा, ‘शुक्र है कि अदालत ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और जज ने उन्हे मंडोली जेल में शिफ्ट करने के आदेश दिए. जेल में उन्होंने मुझे बताया कि वहां लोग अपराधी हैं लेकिन सांप्रदायिक नहीं हैं.’
मीडिया की संदिग्ध भूमिका
कारवां पत्रिका के पॉलिटिकल एडिटर हरतोष सिंह बल ने कहा कि जेल एक समाज के रूप में बाहरी दुनिया से अधिक स्वस्थ है.
बल ने कहा, ‘अपराधी के व्यवहार का एक निश्चित पैटर्न होता है. आज हम इस सरकार को बार-बार उन्हीं पदचिह्नों पर चलते देख सकते हैं. ऐसे कानून लाना, जिनकी सार्वजनिक स्वीकृति नहीं है, लोगों को उन्हें स्वीकार करने को मजबूर किया जा रहा है और जब लोग विरोध करते हैं तो प्रदर्शनकारियों का अपराधीकरण किया जा रहा है.’
उन्होंने कहा कि सरकार का इसी तरह का व्यवहार सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान देखा गया था और अब किसान आंदोलन के दौरान भी ऐसा देखा जा रहा है.
बल ने कहा, ‘भाजपा अपने चुनाव अभियानों पर बहुत पैसा खर्च कर रही है. भाजपा इतना पैसा खर्च कर रही है कि विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच इस तरह का असंतुलन कभी नहीं देखा गया.’
प्रदर्शनों सीएए विरोधी और कृषि कानूनों के खिलाफ सहित प्रदर्शनों की कवरेज में मीडिया की भूमिका के बारे में उन्होंने कहा कि प्रदर्शनों का गला घोंटने और असहमति की आवाज दबाने के लिए मीडिया भी समान रूप से सांप्रदायिक हो गई है.
उन्होंने कहा, ‘बड़ी निजी कंपनियों के अप्रत्यक्ष स्वामित्व की भी भूमिका है. मीडिया ने प्रदर्शनकारियों को पाकिस्तानी, आतंकवादी, अर्बन नक्सल आदि के रूप में पेश किया और ये वही लेबल हैं जिनका भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने भी इस्तेमाल किया है.’
उन्होंने कहा कि पुलिस की भी दंगों में उतनी ही भूमिका थी. उन्होंने कहा कि कारवां के संवाददाताओं पर हमला किया गया, उनका यौन उत्पीड़न किया गया और रिपोर्टिंग के लिए संवाददाताओं को गिरफ्तार किया गया.
उन्होंने कहा, ‘मीडिया की भूमिका एक काउंटर नैरेटिव तैयार करने की है.’
दलित अधिकार कार्यकर्ता नवदीप कौर को हरियाणा में विरोध प्रदर्शनों के संबंध में शुक्रवार को जमानत दी गई थी. उनकी बहन राजवीर कौर ने कहा कि हालांकि, नवदीप को जमानत मिल गई है लेकिन लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है.
उन्होंने कहा, ‘शिव कुमार अभी भी जेल में है.’ उन्होंने कहा कि मजदूरों के वेतन की मांग करने के लिए कार्यकर्ताओं को जेल में नहीं डाला जा सकता.
उन्होंने कहा, ‘यही नैरेटिव हर जगह इस्तेमाल में लाया जा रहा है. बस भाषा में थोड़ा अंतर है. जो लोग देश को बेहतर बनाने के लिए काम कर रहे है, उन्हें झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है. आज मैं सिर्फ नवदीप की बहन के तौर पर नहीं बोल रही हूं बल्कि नवदीप सहित कई युवा कार्यकर्ताओं के साथ हुए अन्याय के खिलाफ देश के सचेत नागरिक के तौर पर बात कर रही हूं.’
‘न्यायपालिका ने अपनी जिम्मेदारी छोड़ दी’
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि जो लोग अन्य लोगों के खिलाफ आवाज उठा रहे है, उन्हें लगातार फंसाया जा रहा है.
उन्होंने कहा, ‘यूपी पुलिस देश में सबसे बड़ा संगठित गिरोह है. ऐसा ही राष्ट्रीय जांच एजेंसी और दिल्ली पुलिस के साथ है. ये सभी बड़े, संगठित आपराधिक गिरोह हैं. ये कानून का परवाह नहीं करते.’
उन्होंने जेएनयू में जनवरी 2020 और जामिया के छात्रों पर दिसंबर 2019 में हुए हमलों के दौरान दिल्ली पुलिस की निष्क्रियता का उल्लेख किया.
न्यायपालिका की भूमिका पर उन्होंने कहा, ‘इस तरह के समय में अदालतों की महत्वपूर्ण भूमिका है. जब भी किसी तरह का अन्याय होता है तो स्वतः संज्ञान लेना उनका कर्तव्य है. दूसरा, इस तरह के मामलों की जांच के लिए स्वतंत्र विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन जरूर होना चाहिए.
उन्होंने मांग की कि बिना किसी सबूत के कार्यकर्ताओं को फंसाने के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों को दंडित किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘देश एक अतिवादी फासीवादी हमले के दौर से गुजर रहा है लेकिन इसके बावजूद अभी बहुत कुछ है. पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और छात्रों का दमन किया जा रहा है.’
उन्होंने कहा कि दंगों से पहले हिंसा भड़काने के लिए भाजपा नेता कपिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए.
अतहर खान बीते आठ से अधिक महीनों से यूएपीए के तहत जेल में बंद हैं. उनकी मां नूरजहां ने कहा, ‘वह सीएए प्रदर्शन के लिए जेल में हैं. उनसे शुरुआत में क्राइम ब्रांच ने बात करने को कहा, जो उन्होंने किया. अगर वह दोषी होता तो वह खुद उनसे बात करने नहीं जाता. मुझे याद है कि जब प्रदर्शन हो रहे थे तो मुझे हमेशा चिंता होती थी कि कहीं पुलिस उसे गिरफ्तार न कर ले. वह आमतौर पर मुझे बताता था कि हम समानता, न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं. वह कहता था कि वह और अन्य ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे, जिसकी संविधान इजाजत नहीं देता.’
उन्होंने सीएए के बारे में कहा, ‘1947 में हमने एक कारण की वजह से भारत में रहना चुना. हमें हमारी नागरिकता साबित करने की जरूरत नहीं है. कृपया मेरे बेटे और अन्य द्वारा किए गए बलिदान को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. मैं गौरवान्वित भारतीय मुसलमान हूं और मुझे अतहर की मां होने का गर्व है.’
शाहीन बाग की महिलाएं मौन
वकील श्रेया कपूर ने यहां एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें बताया गया कि सरकार ने शाहीन बाग की औरतों को इतना डरा दिया हैं कि वे अब बाहर आकर प्रदर्शन करने से डर रही हैं.
उन्होंने कहा, ‘ये वही महिलाएं हैं, जिन्होंने इतने बड़े शांतिपूर्ण प्रदर्शन की अगुवाई की. वही महिलाएं हैं, जो अपने सुरक्षा कवच से बाहर निकली और अपनी धार्मिक पहचान से जुड़े पूर्वाग्रहों को तोड़ा लेकिन अब ये आशंकित हैं.’
उन्होंने कहा कि दिल्ली दंगों और गिरफ्तारी के बाद मुस्लिमों के बीच डर का माहौल है.
उन्होंने कहा, ‘दिल्ली पुलिस ने बेशर्मी से काम किया है, पीड़ितों के खिलाफ फर्जी एफआईआर दर्ज की है. मीडिया कवरेज पक्षपातपूर्ण है. टीवी पर जो कुछ दिखाया जा रहा है, जमीनी हकीकत उससे अलग है. पड़ोसी एक दूसरे के खिलाफ हो गए हैं. पीड़ितों को सिर्फ नाममात्र का मुआवजा दिया गया है. ध्यान रखने वाली बात यह है कि मुआवजा न्याय का साधक नहीं है. मोदी सरकार ने गुंडों, मीडिया, दिल्ली पुलिस की मदद से पीड़ितों को दोषी बना दिया है.’
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली दंगे में 53 लोगों की मौत हुई, 581 लोग घायल हुए और कई करोड़ रुपये की संपत्ति बर्बाद हुई थी.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)