सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठतम जजों में से एक जस्टिस इंदु मल्होत्रा की सेवानिवृत्ति पर आयोजित एक कार्यक्रम में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि देश की विविधता अदालतों में भी झलकनी चाहिए. वैविध्य भरी न्यायपालिका लोगों में अधिक विश्वास की भावना लाती है.
नई दिल्ली: जस्टिस इंदु मल्होत्रा की सेवानिवृत्ति के बाद उच्चतम न्यायालय में अब सिर्फ एक महिला न्यायाधीश ही रह गई हैं. इसे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को बहुत ही चिंतित करने वाली स्थिति बताते हुए गंभीर आत्मावलोकन करने की जरूरत बताई.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने जस्टिस मल्होत्रा को सम्मानित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट यंग लॉयर्स फोरम द्वारा आयोजित एक विदाई समारोह में यह कहा. जस्टिस इंदु मल्होत्रा शनिवार को शीर्ष न्यायालय से सेवानिवृत्त हो गईं.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘जस्टिस मल्होत्रा की सेवानिवृत्ति का यह मतलब है कि उच्चतम न्यायालय में अब सिर्फ एक महिला न्यायाधीश ही पीठ में रह गई हैं. एक संस्था के तौर पर, मैं इसे बहुत ही चिंतित करने वाला तथ्य पाता हूं और इसका अवश्य ही गंभीर आत्मावलोकन करने की जरूरत है.’
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘हमें अवश्य ही हमारे देश की विविधता सुनिश्चित करनी होगी, जो हमारी अदालतों में झलकनी चाहिए. कहीं अधिक विविधता भरी न्यायपालिका लोगों में अधिक विश्वास की भावना लाती है.’
उन्होंने कहा, ‘एक संस्था के तौर पर, जिसके फैसले रोजाना भारतीयों के जीवन पर असर डालते हैं, हमें अवश्य ही बेहतर करने की जरूरत है.’
उन्होंने कहा कि विविधता से भरी न्यायपालिका विभिन्न प्रकार के दृष्टिकोणों को भी सुनिश्चित करती है और जनता के आत्मविश्वास को बढ़ाती है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि जस्टिस मल्होत्रा ने उन्हें अपने संघर्ष के बारे बताया था, साथ ही यह भी बताया था कि औरत होने के नाते उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए क्या कुछ सहन किया.
उन्होंने कहा, ‘कानून बिरादरी के सदस्य होने के नाते हम सभी को यह सुनिश्चित करने के लिए, कि महिला होने के चलते जस्टिस मल्होत्रा ने हमारे क्षेत्र की ऊंचाई तक पहुंचने में जो कठिनाइयां झेलीं, वे अब न हों, इसके लिए अपने हिस्से की कोशिश करनी चाहिए.’
उन्होंने आगे कहा कि जस्टिस मल्होत्रा ऐसी महिला हैं, जिन्होंने कई ग्लास सीलिंग तोड़ी हैं.
जस्टिस मल्होत्रा ने इस अवसर पर कहा कि एक वकील के तौर पर यह जरूरी है कि आप अत्यधिक पेशेवर व्यवहार करें.
उन्होंने कहा, ‘मैंने न्यायाधीश बनने के बाद बार कक्ष में महिला वकीलों द्वारा बुलाए जाने के बाद एक मुद्दा उठाया था. मैंने कहा था कि कृपया फैशनेबल कपड़े नहीं पहनिये, उसे आप शाम के लिए रखिए, न कि काम पर आने के लिए. आपको अवश्य ही पेशे के अनुरूप कपड़े पहनने चाहिए. दूसरी बात यह कि आप को याचिका को स्पष्ट रूप से और संक्षेप में लिखना जरूर सीखना चाहिए.’
जस्टिस मल्होत्रा ने 27 अप्रैल 2018 को शीर्ष न्यायालय की न्यायाधीश के तौर पर पदभार ग्रहण किया था. उन्होंने ऐतिहासिक सबरीमला मंदिर मामले की सुनवाई करने वाली पीठ में असहमति वाला अपना फैसला सुनाया था. इसके अलावा, उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले भी सुनाए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)