इस हफ्ते की शुरुआत में प्रतिष्ठित राजनीतिक विश्लेषक प्रताप भानु मेहता ने अशोका यूनिवर्सिटी इस्तीफ़ा देते हुए कहा कि स्वतंत्रता के संवैधानिक मूल्यों और सभी को समान समझने की राजनीति के पक्ष में उनका सार्वजनिक लेखन विश्वविद्यालय के लिए जोखिम माना जाता है.
नई दिल्ली: सोनीपत की अशोका यूनिवर्सिटी की कुलपति मालबिका सरकार को भेजे गए अपने इस्तीफे में प्रतिष्ठित राजनीतिक विश्लेषक और टिप्पणीकार प्रताप भानु मेहता ने यह स्पष्ट किया था कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनके जुड़ाव को एक ‘राजनीतिक जवाबदेही’ [political liability] के रूप में देखता था.
मेहता पिछले कुछ सालों में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा की नीतियों के मुखर आलोचक रहे हैं.
यह कहते हुए कि उनका इस्तीफ़ा यूनिवर्सिटी के हित में होगा, मेहता ने लिखा, ‘स्वतंत्रता के संवैधानिक मूल्यों और सभी नागरिकों के लिए समान सम्मान देने का प्रयास करने वाली राजनीति के समर्थन में मेरा सार्वजनिक लेखन विश्वविद्यालय के लिए जोखिम भरा माना जाता है,’
उन्होंने आगे लिखा, ‘यह साफ है कि मेरे लिए यह अशोका छोड़ने का समय है. एक उदार विश्वविद्यालय को फलने-फूलने के लिए उदारवादी राजनीतिक और सामाजिक संदर्भों की जरूरत होती है. मुझे उम्मीद है कि ऐसे माहौल को बचाने में यूनिवर्सिटी अपनी भूमिका निभाएगी. नीत्शे ने एक बार कहा था कि एक विश्वविद्यालय के लिए सच में जीना मुमकिन नहीं होता. आशा है कि यह सच न हो. लेकिन आज के माहौल के मद्देनजर संस्थापकों और प्रशासन को अशोका के मूल्यों के लिए नए सिरे से प्रतिबद्धता और अशोका की आजादी सुरक्षित रखने के लिए नए साहस की जरूरत होगी.’
मंगलवार को दिए मेहता के इस्तीफे के बाद पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने गुरुवार को अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर पद से इस्तीफ़ा देते हुए कहा था कि विश्वविद्यालय अब अकादमिक स्वतंत्रता नहीं दे सकता. सुब्रमण्यम ने यह बात स्पष्ट की थी कि मेहता के जाने के चलते ही वे इस्तीफ़ा दे रहे हैं.
इस बीच विश्वविद्यालय के 90 के करीब फैकल्टी सदस्यों ने सार्वजनिक तौर पर मेहता के साथ एकजुटता दिखाते हुए प्रशासन से उन्हें वापस यूनिवर्सिटी बुलाने को कहा है.
एक फैकल्टी मेंबर ने द वायर से इस बात की पुष्टि की है कि 90 सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र कुलपति मालबिका सरकार को भेजा गया है. उन्होंने उन रिपोर्ट्स के बारे में भी बात की है कि जिनमें विश्वविद्यालय के राजनीतिक दबावों के सामने झुकने और मेहता को इस्तीफा देने के लिए कहने की बात कही जा रही है.
इसमें कहा गया है, ‘प्रोफेसर मेहता के विश्वविद्यालय से जाने की आधिकारिक घोषणा से पहले प्रसारित मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह संभव है कि उनका इस्तीफा एक बुद्धिजीवी और सरकार के आलोचक के रूप में उनकी सार्वजनिक भूमिका का परिणाम था. हम इससे बहुत परेशान हैं. इससे भी अधिक परेशान करने वाली संभावना यह है कि हमारा विश्वविद्यालय शायद प्रोफेसर मेहता को हटाने के दबाव या आग्रह के सामने झुक गया हो और उनका इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया हो.’
इससे पहले अरविंद सुब्रमण्यम द्वारा वर्तमान कुलपति मालबिका सरकार को लिखे पत्र में भी कहा गया था कि दो दिन पहले दिया गया प्रताप भानु मेहता का इस्तीफ़ा दिखाता है कि ‘निजी ओहदे और निजी वित्त’ भी विश्वविद्यालय में अकादमिक अभिव्यक्ति और स्वतंत्रता सुनिश्चित नहीं कर सकते.
उन्होंने लिखा था, ‘मैं उस विस्तृत संदर्भ से वाकिफ हूं,जिसमें अशोका और इसके ट्रस्टियों को काम करना है और अब तक यूनिवर्सिटी ने इसे जैसे संभाला, मैं उसकी प्रशंसा करता हूं.’ हालांकि उन्होंने आगे कहा कि ‘मेहता जैसे निष्ठावान और प्रखर व्यक्ति, जो अशोका के विज़न को पूरा करते थे, को इस तरह इसे छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा.’
फैकल्टी सदस्यों के पत्र में भी इसी तरह की चिंताएं नजर आती हैं. उन्होंने आगे लिखा है, ‘हम विश्वविद्यालय से निवेदन करते हैं कि वे प्रोफेसर मेहता से उनका इस्तीफ़ा रद्द करने के लिए कहें. साथ ही, हम यह भी अनुरोध करते हैं कि विश्वविद्यालय फैकल्टी की नियुक्ति और बर्खास्तगी के अपने आंतरिक प्रोटोकॉल को स्पष्ट करे और शैक्षणिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों के लिए अपनी संस्थागत प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करे.’
फैकल्टी के सदस्यों के पूरे पत्र को इस लिंक पर पढ़ सकते हैं.
इस बीच अशोका यूनिवर्सिटी स्टूडेंट गवर्नमेंट, एलुमनाई काउंसिल और अशोका समुदाय द्वारा भी अलग-अलग बयान जारी कर मेहता का समर्थन किया गया है.
Please note, this form is open to individuals outside Ashoka as well to show solidarity. Here is the link: https://t.co/jWhKwCZjhI#NotMyAshoka #AshokaWithPBM #AshokaforAcademicFreedom
— Ashoka University Student Government (@ashokaunisg) March 18, 2021
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, गुरुवार को यूनिवर्सिटी कैंपस में छात्रों ने मेहता के जाने के बारे में पारदर्शिता न बरतने को लेकर प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन किया. उन्होंने मांग कि कि मेहता को वापस लाया जाए.
बताया गया है कि उन्होंने कुलपति मालबिका सरकार के साथ हुई एक वर्चुअल टाउनहॉल मीटिंग में भी यह बात उठाई थी, जहां वीसी ने कहा कि ट्रस्टीज़ की ओर से मेहता को इस्तीफे के लिए नहीं कहा गया और वे संस्थापकों और मेहता के बीच हुई बातचीत से वाकिफ नहीं हैं.
सूत्रों के अनुसार, संस्थापकों का एक वर्ग मेहता को वापस लाना चाहता है और शायद उनसे इस बारे में उनसे बातचीत भी करेगा.
मेहता का इस्तीफे के साथ लिखा पूरा पत्र पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें.