खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण संबंधी संसद की स्थायी समिति ने सरकार से विवादित कृषि क़ानूनों में से एक आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 को लागू करने के लिए कहा है. इस समिति में दोनों सदनों से भाजपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आप, एनसीपी और शिवसेना सहित 13 दलों के सदस्य शामिल हैं.
नई दिल्ली: खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण संबंधी स्थायी समिति ने सरकार से तीन विवादित कृषि कानूनों में से एक आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 को लागू करने के लिए कहा है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इस समिति में भाजपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आप, एनसीपी और शिवसेना सहित 13 दलों के सदस्य शामिल हैं.
यह अधिनियम उन तीन विवादास्पद कृषि कानूनों में से एक है, जिनके खिलाफ किसान विरोध कर रहे हैं. इन पार्टियों में से अधिकांश की स्थिति तीनों कानूनों के विरुद्ध है और कांग्रेस चाहती है कि उन्हें निरस्त किया जाए.
टीएमसी के सुदीप बंदोपाध्याय की अध्यक्षता वाली इस समिति ने शुक्रवार को लोकसभा में रखी गई अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘यह उम्मीद करता है कि हाल ही में लागू किया गया आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 कृषि क्षेत्र में उन्नत निवेश और उत्पादक प्रतिस्पर्धा के लिए एक वातावरण बनाकर और किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि क्षेत्र में विशाल अप्रयुक्त संसाधनों को खोलने के लिए उत्प्रेरक बन जाएगा.’
इसलिए समिति ने सरकार को मूल रूप में आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 बिना किसी बाधा के लागू करने की सिफारिश की, ताकि इस देश में कृषक क्षेत्र के किसान और अन्य हितधारक उक्त अधिनियम के तहत अपेक्षित लाभ प्राप्त कर सकें.
आवश्यक वस्तुओं का मूल्य वृद्धि (कारण और प्रभाव) पर रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि यद्यपि देश अधिकांश कृषि वस्तुओं में अधिशेष हो गया है, (फिर भी) कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, प्रसंस्करण और निर्यात में निवेश की कमी के कारण किसानों को बेहतर कीमतें नहीं मिल पाई हैं क्योंकि उद्यमियों को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में नियामक तंत्र द्वारा हतोत्साहित किया जाता है.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘इसके परिणामस्वरूप भारी फसल होने की स्थिति में किसानों को भारी नुकसान होता है, जब विशेष रूप से खराब होने वाली वस्तुओं की बंपर फसल होती है, जिनमें से अधिकांश को पर्याप्त प्रसंस्करण सुविधाओं के साथ कम किया जा सकता था.’
इस 30 सदस्यीय समिति में संसद के दोनों सदनों के 13 दलों के सदस्य शामिल हैं जिसमें आप, भाजपा, कांग्रेस, डीएमके, जदयू, नगा पीपुल्स फ्रंट, नेशनल कॉन्फ्रेंस, एनसीपी, पीएमके, शिवसेना, सपा, टीएमसी और वाईएसआरसीपी शामिल हैं. इसके अलावा एक सदस्य नामित हैं.
आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) अधिनियम को उसके मूल स्वरूप में लागू करने का समिति का यह फैसला किसान आंदोलन को देखते हुए बीते 12 जनवरी को तीनों कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आया है.
अन्य दो कानून किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक, 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक, 2020 हैं.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक समिति को अगले कुछ दिनों में अपनी सिफारिशें देने की उम्मीद है. इस बीच सरकार और आंदोलनकारी किसान यूनियनों के बीच कई दौर की बातचीत गतिरोध खत्म करने में नाकाम रही है.
स्थायी समिति ने भी सरकार से कहा है कि सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर निरंतर निगरानी रखें.
रिपोर्ट में कहा गया, ‘आगे यह देखते हुए कि आलू, प्याज और दाल जैसे खाद्य पदार्थ एक आम आदमी के दैनिक आहार का हिस्सा हैं और लाखों लोग जिन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) का लाभ नहीं मिलता है, नए अधिनियम के लागू होने के बाद प्रतिकूल रूप से पीड़ित हो सकते हैं. समिति यह भी चाहती है कि सरकार सभी आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर निरंतर निगरानी रखे और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 में दिए गए उपचारात्मक प्रावधानों का सहारा ले.’
अध्यक्ष सुदीप बंद्योपाध्याय 18 मार्च को समिति की अंतिम बैठक में कुछ विशेष कारणों के कारण उपस्थित नहीं हो सके थे. बैठक ने भाजपा के कार्यवाहक अध्यक्ष अजय मिश्रा तानी के तहत रिपोर्ट को स्वीकार किया.
बता दें कि केंद्र सरकार तीनों कानूनों को कृषि क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार के रूप में पेश कर रही है. हालांकि, प्रदर्शनकारी किसानों ने यह आशंका व्यक्त की है कि नए कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुरक्षा और मंडी प्रणाली को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे तथा उन्हें बड़े कॉरपोरेट की दया पर छोड़ देंगे.
नए कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानूनी गारंटी की मांग को लेकर दिल्ली के- सिंघू, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर किसान पिछले साल नवंबर के अंत से धरना दे रहे हैं. इनमें अधिकतर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान हैं.
आठ दिसंबर के बाद किसान एक बार फिर से 26 मार्च को भारत बंद की तैयारी कर रहे हैं. इसके साथ ही वे चुनावी राज्यों के साथ देशभर में घूम-घूमकर केंद्र में सत्ताधारी भाजपा को वोट न देने की अपील कर रहे हैं.