महाराष्ट्र में एमबीबीएस के द्वितीय वर्ष के छात्रों के लिए ‘एसेंशियल्स ऑफ मेडिकल माइक्रोबायलॉजी’ में कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार को कथित तौर पर नई दिल्ली में तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम से जोड़ा गया था, जिस पर आपत्ति जताई गई थी. लेखकों ने इस संबंध में माफ़ी भी मांगी है.
मुंबई: महाराष्ट्र में एमबीबीएस के द्वितीय वर्ष के छात्रों के लिए एक संदर्भ पुस्तक के कुछ अंश पर आपत्ति उठने के बाद पुस्तक को वापस ले लिया गया है.
पुस्तक के कुछ अंश कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार को कथित तौर पर नई दिल्ली में तबलीगी जमात के कार्यक्रम से जोड़ते हैं, जिस पर आपत्ति जताई गई थी. एक अधिकारी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी.
‘एसेंशियल्स ऑफ मेडिकल माइक्रोबायलॉजी’ के तीसरे संस्करण के लेखकों ने इस संबंध में माफी भी मांगी है.
‘स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेंशन’ ने किताब के दावे पर आपत्ति जताई है. संगठन ने कहा कि ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जो इस बात की पुष्टि करता हो कि कोविड-19 महामारी का प्रसार तबलीगी जमात के कार्यक्रम में लोगों के इकट्ठा होने के कारण हुआ हो.
इस आपत्ति के बाद किताब के लेखक डॉ. अपूर्बा शास्त्री और डॉ. संध्या भट्ट ने कहा, ‘हम ईमानदारी से माफी मांगते हैं, अगर अनजाने में इससे कुछ लोगों की भावनाएं आहत हुई हों.’
उन्होंने कहा, ‘हमारा इरादा केवल महामारी विज्ञान के घटनाक्रम को व्यक्त करने का था और कुछ नहीं. हालांकि लोगों की भावनाओं को समझते हुए, इस तरह के बयानों को उस किताब के तीसरे संस्करण में बदल दिया जाएगा.’
लेखकों ने आश्वासन दिया है कि नए संस्करण में जरूरी बदलाव किए जाएंगे.
सरकारी अधिकारी ने पुष्टि की कि किताब को वापस ले लिया गया है. संगठन ने संदर्भ पुस्तक को वापस लिए जाने का स्वागत किया है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक स्टूडेंट्स इस्लामिक ऑर्गनाइजेंशन के संयुक्त सचिव (दक्षिण महाराष्ट्र) मुसद्दीक उल मोईद ने कहा, ‘उस समय में कई बड़ी सामाजिक-राजनीतिक घटनाएं और सभाएं हुई थीं. अदालतों ने सभा की ऐसी गलत व्याख्या की निंदा की थी.’
पुस्तक के तीसरे संस्करण में कोविड -19 के विस्फोटक प्रसार के बारे में एक अध्याय है. जिसमें कहा गया है कि जमात समूह वायरस के प्रसार के लिए एक महत्वपूर्ण कारण था.
पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि जमात के अधिकांश लोग स्पर्शोन्मुख थे और घर वापस आने के बाद पॉजिटिव पाए गए थे. इस प्रकार विभिन्न राज्यों में वायरस के प्रसार में कई समूहों ने नेतृत्व किया.
इस पुस्तक में भारत में कुल मामलों के लगभग एक-तिहाई के साथ-साथ लगभग 22 प्रतिशत मौतों के लिए महाराष्ट्र का उल्लेख है. मामलों में वृद्धि को जमात समूह, विदेशी नागरिकों और मुंबई के स्लम क्षेत्रों में भीड़भाड़ जैसे कारकों को जिम्मेदार ठहराया गया था.
पिछले साल अगस्त में बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में 29 विदेशी तबलीगी जमात सदस्यों सहित 34 लोगों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उन्हें बलि का बकरा बनाया गया था.
बता दें कि पिछले साल दिल्ली के निजामुद्दीन पश्चिम स्थित मरकज में 13 मार्च से 15 मार्च तक कई सभाएं हुई थीं, जिनमें सऊदी अरब, इंडोनेशिया, दुबई, उज्बेकिस्तान और मलेशिया समेत अनेक देशों के मुस्लिम धर्म प्रचारकों ने भाग लिया था.
देशभर के विभिन्न हिस्सों से हजारों की संख्या में भारतीयों ने भी इसमें हिस्सा लिया था, जिनमें से कई कोरोना संक्रमित पाए गए थे. इस लेकर मुस्लिम समुदाय पर कोरोना फैलाने का आरोप लगाया गया था.
इसमें शामिल हुए अनेक लोगों को बाद में गिरफ्तार भी किया गया था और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई थी, लेकिन अदालत ने इन मामलों को खारिज कर दिया था और कहा था कि ऐसे कोई साक्ष्य नहीं हैं जो साबित करते हों कि तबलीगी जमात के सदस्य संक्रमण फैला रहे थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)