खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण संबंधी संसद की स्थायी समिति ने सरकार से विवादित कृषि क़ानूनों में से एक आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 को लागू करने की सिफ़ारिश की है. इस समिति में भाजपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आप, एनसीपी और शिवसेना सहित 13 दलों के सदस्य शामिल हैं.
नई दिल्ली: विवादों से घिरे तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध कर रहे किसान संगठनों के समूह ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ ने शनिवार को एक संसदीय समिति से आग्रह किया कि वह अपनी उस अनुशंसा को वापस ले, जिसमें उसने केंद्र से ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम-2020’ को लागू करने के लिए कहा है.
दरअसल यह अधिनियम भी उन तीन विवादास्पद कृषि कानूनों में से एक है, जिनके खिलाफ किसान तीन महीनों से अधिक समय से दिल्ली की सीमा के निकट कई स्थानों पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
मोर्चा ने आरोप लगाया कि यह अधिनियम निजी क्षेत्र को ‘असीमित मात्रा में जमाखोरी और कालाबाजारी करने’ की छूट देता है. इस मोर्चे में 40 से अधिक किसान संगठन शामिल हैं.
किसान मोर्चा ने ये टिप्पणियां उस वक्त की हैं, जब खाद्य संबंधी संसद की स्थायी समिति ने सरकार से अनुशंसा की है कि ‘आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम-2020’ को ‘अक्षरश:’ लागू किया जाए. तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुदीप बंधोपाध्याय की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट गत 19 मार्च को लोकसभा के पटल पर रखी गई.
इस 30 सदस्यीय समिति में संसद के दोनों सदनों के 13 दलों के सदस्य शामिल हैं जिसमें आप, भाजपा, कांग्रेस, डीएमके, जदयू, नगा पीपुल्स फ्रंट, नेशनल कॉन्फ्रेंस, एनसीपी, पीएमके, शिवसेना, सपा, टीएमसी और वाईएसआरसीपी शामिल हैं. इसके अलावा एक सदस्य नामित हैं. इन पार्टियों में से अधिकांश तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रही हैं और कांग्रेस चाहती है कि उन्हें निरस्त किया जाए.
यह मामला सामने आने के बाद कांग्रेस के तीन सांसदों ने शनिवार को संसद की एक स्थायी समिति की इस रिपोर्ट से खुद को अलग कर लिया है.
कांग्रेस के तीन सांसदों- सप्तगिरी उलाका, राजमोहन उन्नीथन और वी. वैथिलिंगम ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को अलग-अलग पत्र लिखकर आग्रह किया है कि वह इस मामले में संज्ञान लें और उन्हें लिखित असहमति दर्ज कराने की अनुमति दें.
संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बयान जारी कर आरोप लगाया, ‘यह अधिनियम निजी क्षेत्र को असीमित मात्रा में जमाखोरी और कालाबाजारी करने की अनुमति देता है. इसके लागू होने से देश में जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) और इसका पूरा ढांचा खत्म हो जाएगा.’
उसने कहा, ‘यह बहुत ही शर्मनाक है कि किसान आंदोलन के समर्थन का दावा कर रहीं कई पार्टियों ने इस अधिनियम को लागू करने की पैरवी की है. हम समिति से अपील करते हैं कि वह अपनी अनुशंसाएं वापस ले.’
बता दें कि केंद्र सरकार तीनों कानूनों को कृषि क्षेत्र में ऐतिहासिक सुधार के रूप में पेश कर रही है. हालांकि, प्रदर्शनकारी किसानों ने यह आशंका व्यक्त की है कि नए कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुरक्षा और मंडी प्रणाली को खत्म करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे तथा उन्हें बड़े कॉरपोरेट की दया पर छोड़ देंगे.
नए कृषि कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य के लिए कानूनी गारंटी की मांग को लेकर दिल्ली के- सिंघू, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर किसान पिछले साल नवंबर के अंत से धरना दे रहे हैं. इनमें अधिकतर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान हैं.
आठ दिसंबर के बाद किसान एक बार फिर से 26 मार्च को भारत बंद की तैयारी कर रहे हैं. इसके साथ ही वे चुनावी राज्यों के साथ देशभर में घूम-घूमकर केंद्र में सत्ताधारी भाजपा को वोट न देने की अपील कर रहे हैं.
किसान मोर्चा ने शनिवार को एक बैठक में यह फैसला किया कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ 22 मार्च को पूरे देश में जिला स्तर पर जनसभाओं का आयोजन किया जाएगा.
उसने यह निर्णय भी लिया कि 26 मार्च को आहूत ‘भारत बंद’ सुबह छह बजे से शाम छह बजे तक रहेगा और इस दौरान सड़क एवं रेल यातायात तथा विभिन्न सेवाओं को अवरुद्ध किया जाएगा, हालांकि, आपात सेवाओं को इस बंद से अलग रखा जाएगा.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)