इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पीड़िता के भाई की अर्ज़ी पर चेतावनी दी कि यदि कोई व्यक्ति सुनवाई की कार्यवाही को प्रभावित करने की कोशिश करेगा या पीड़िता के परिजनों व गवाहों के जीवन, स्वतंत्रता व संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करेगा तो उसके ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई होगी और अदालती अवमानना की कार्यवाही भी चलाई जाएगी.
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने हाथरस मामले की विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी अधिनियम) के समक्ष पांच मार्च, 2021 को हुई सुनवाई के दौरान गवाहों व पीड़िता के अधिवक्ता को कथित रूप से धमकाने व अदालत में तमाशा खड़ा करने के आरोपों के बाबत जिला जज हाथरस व सीआरपीएफ के महानिरीक्षक को 15 दिन के भीतर जांच कर रिपोर्ट प्रेषित करने का आदेश दिया है.
अदालत ने कहा कि रिपोर्ट आने के बाद सुनवाई अन्यत्र स्थानांतरित करने पर विचार होगा.
इस बीच अदालत ने राज्य सरकार व हाथरस जिला प्रशासन को आदेश दिया है कि सुनवाई को सुगम रूप से चलाने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए.
अदालत ने सीआरपीएफ को पूर्व की भांति पीड़िता के परिवारजनों व गवाहों को समुचित सुरक्षा प्रदान करने का भी आदेश दिया है.
यह आदेश जस्टिस राजन राय व जस्टिस जसप्रीत सिंह की पीठ ने अदालत द्वारा पूर्व में हाथरस मामले में स्वतः संज्ञान लेकर दर्ज की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया.
अपने आदेश में पीठ ने चेतावनी दी कि यदि कोई व्यक्ति सुनवाई की कार्यवाही को प्रभावित करने की कोशिश करेगा या पीड़िता के परिजनों व गवाहों के जीवन, स्वतंत्रता व संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करेगा तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी और उसके खिलाफ अदालती अवमानना की कार्यवाही भी चलाई जाएगी.
पीठ ने विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी अधिनियम) को कार्यवाही की वीडियो रिकार्डिंग कराने का भी आदेश जारी कर दिया है.
पीड़िता के भाई की ओर से एक अर्जी पेश कर उनके वकील शरद भटनागर ने कहा था कि पांच मार्च को इस मामले की सुनवाई विशेष न्यायाधीश के समक्ष हाथरस में चल रही थी, तभी कुछ वकील व भीड़ ने आकर अदालत में तमाशा खड़ा किया और पीड़िता के अधिवक्ता को धमकाया कि वह उनका मुकदमा न लड़ें.
अर्जी के मुताबिक बाद में अदालत के आदेश पर पुलिस की सुरक्षा में अधिवक्ता को हाथरस की सीमा तक छुड़वाना पड़ा.
पीड़ित के अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को प्रदेश से बाहर स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया था, किन्तु उनकी अर्जी 12 मार्च 2021 को खारिज हो गई थी.
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पांच मार्च की घटना का जिक्र नहीं को सका था.
इस बीच, सीबीआई के अधिवक्ता अनुराग सिंह ने पीठ को बताया कि एजेंसी मामले को प्रदेश के भीतर ही स्थानांतरित करने की अर्जी देने पर विचार कर रही है. इस मामले की अगली सुनवाई सात अप्रैल को हेागी.
बता दें कि उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में 14 सितंबर 2020 को चार युवकों ने 19 साल की दलित युवती के साथ बर्बरतापूर्वक मारपीट करने के साथ बलात्कार किया था. उनकी रीढ़ की हड्डी और गर्दन में गंभीर चोटें आई थीं.
करीब 10 दिन के इलाज के बाद उन्हें दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन 29 सितंबर 2020 को युवती ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया.
परिजनों ने पुलिस पर उनकी सहमति के बिना आननफानन में युवती का अंतिम संस्कार करने का आरोप लगाया था. हालांकि, पुलिस ने इससे इनकार किया था.
इसके बाद विपक्षी दलों खासकर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस ने इसे लेकर उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को कटघरे में खड़ा किया था.
युवती के भाई की शिकायत के आधार पर चार आरोपियों- संदीप (20), उसके चाचा रवि (35) और दोस्त लवकुश (23) तथा रामू (26) को गिरफ्तार किया गया था.
इस मामले की जांच कर रही सीबीआई ने कोर्ट में सौंपी गई चार्जशीट में आरोपियों पर सामूहिक बलात्कार, हत्या और एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत आरोप लगाए हैं.
हाथरस मामले को लेकर मायावती ने योगी सरकार पर उठाए सवाल
बसपा प्रमुख मायावती ने हाथरस सामूहिक दुष्कर्म मामले को लेकर सोमवार को योगी आदित्यनाथ सरकार पर निशाना साधा और कहा कि इस मामले में जो नए तथ्य सामने आ रहे हैं, वे राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं.
हाथरस मामले की विशेष अदालत में सुनवाई के दौरान पीड़ित पक्ष के गवाहों और अधिवक्ता को धमकाने की कथित घटना पर हाईकोर्ट के कड़े रुख के बीच बसपा अध्यक्ष मायावती ने यह टिप्पणी की.
2. हाथरस काण्ड में नए तथ्यों का मा. हाईकोर्ट द्वारा संज्ञान लेकर गवाहों को धमकाने आदि की जाँच का आदेश देने से यूपी सरकार फिर कठघरे में है व लोग सोचने को मजबूर कि पीड़ितों को न्याय कैसे मिलेगा? यह आम धारणा कि यूपी में अपराधियों का राज है व न्याय पाना अति-कठिन, क्या गलत है?
— Mayawati (@Mayawati) March 22, 2021
मायावती ने सोमवार को सिलसिलेवार ट्वीट कर कहा, ‘उत्तर प्रदेश के अति-दुःखद व शर्मनाक हाथरस गैंगरेप मामले के पीड़ित परिवार को न्याय पाने में जिन कठिनाइयों का लगातार सामना करना पड़ रहा है, वह जग-जाहिर है, किन्तु उस संबंध में जो नए तथ्य अब अदालत में उजागर हुए, वे पीड़ितों को न्याय दिलाने के मामले में सरकार की कार्यशैली पर पुनः गंभीर प्रश्न खड़े करते हैं.’
उन्होंने दूसरे ट्वीट में कहा, ‘हाथरस कांड में नए तथ्यों का हाईकोर्ट द्वारा संज्ञान लेकर गवाहों को धमकाने आदि की जाँच का आदेश देने से उप्र सरकार फिर कठघरे में है, और लोग सोचने को मजबूर हैं कि पीड़ितों को न्याय कैसे मिलेगा? यह आम धारणा है कि उत्तर प्रदेश में अपराधियों का राज है और न्याय पाना अति-कठिन है, क्या गलत है?’
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)