एक रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के प्रबंधक ने कहा कि कोविड-19 महामारी से सबसे ज़्यादा और बुरी तरह महिलाएं ही प्रभावित हुई हैं, फिर भी महामारी का मुक़ाबला करने से संबंधित निर्णय प्रक्रिया से महिलाओं को ही व्यवस्थागत तरीके से बाहर रखा जा रहा है.
संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र की महिला निकाय की अध्यक्ष फुमजिले म्लाम्बो न्गुका ने कहा कि लैंगिक समानता के लिए सतत आवाज उठा रहे विश्व निकाय को राजनीतिक नेतृत्व के क्षेत्र में महिला-पुरुष असमानता को दूर करने के लिए और कोविड-19 महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ा करने में महिलाओं की मजबूत आवाज सुनिश्चित करने के लिए कार्य करना चाहिए.
यूएन वीमेन, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और अमेरिका के पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय की ‘लैंगिक असमानता शोध प्रयोगशाला’ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं ने कोविड-19 की भीषण तबाही झेली है, न केवल स्वास्थ्य सेवाओं के अग्रिम मोर्चों पर बल्कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के सिकुड़ जाने के परिणामस्वरूप रोजगार व आजीविकाएं खत्म होने के रूप में भी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू हिंसा में बहुत तेज और चिंताजनक बढ़ोतरी दर्ज की गई है; स्वास्थ्य देखभाल करने की जिम्मेदारी ने लगभग 4 करोड़ 70 लाख महिलाओं को अत्यधिक गरीबी में धकेल दिए जाने का जोखिम पैदा कर दिया है.
यूएनडीपी के प्रबंधक आख़िम स्टीनर ने कहा, ‘कोविड-19 का मुकाबला करने के प्रयासों में महिलाएं अग्रिम मोर्चों पर खड़ी रही हैं. फिर भी उन्हें महामारी के प्रभावों का मुकाबला करने के उपायों में निर्णय-प्रक्रिया से व्यवस्थागत रूप में बाहर रखा गया है.’
उन्होंने कहा, ‘इस समय जो अति महत्वपूर्ण निर्णय लिए जा रहे हैं, उनमें महिलाओं की आवश्यकताओं को पर्याप्त तौर पर पूरा करने के लिए जरूरी है कि सार्वजनिक संस्थाओं में महिलाओं की पूर्ण व समावेशी भागीदारी हो.’
New data included in our Global #GenderTracker with @UNDP and @GirlAtPitt shows that women remain excluded from the #COVID19 response planning and decision-making structures.
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— UN Women (@UN_Women) March 22, 2021
महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ‘यूएन वीमेन’ की अध्यक्ष फुमजिले म्लाम्बो न्गुका ने समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस को दिए साक्षात्कार में कहा कि महामारी की वजह से जहां महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामले बढ़े हैं, वहीं करीब दो तिहाई महिलाओं का रोजगार छिन गया.
उन्होंने कहा, ‘इसके अलावा 1.1 करोड़ लड़कियों पर कभी भी स्कूल नहीं लौटने का खतरा मंडरा रहा है और बाल गृहों में जाने वाले अनाथों की संख्या भी बढ़ सकती है.’
न्गुका ने कहा, ‘आप जिस क्षेत्र को भी देखें, महिलाओं की स्थिति महामारी की वजह से खराब हुई है, जहां हमेशा से भेदभाव रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘इसलिए हमारी सलाह है कि समानता, हरित अर्थव्यवस्था और संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित किया जाए ताकि महिलाओं की स्थिति सुधर सके. ऐसा होने पर लैंगिक समानता की राह भी मजबूत होगी.’
न्गुका ने कहा कि महामारी ने स्पष्ट कर दिया है जिसका उल्लेख संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने इस महीने के शुरू में अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर किया था कि ‘यह दुनिया अब भी पुरुष प्रभुत्ववादी एवं पुरुष के प्रभुत्व वाली संस्कृति की है.’
उन्होंने कहा कि इन मुद्दों पर शुक्रवार को समाप्त हुई आयोग की दो हफ्ते की बैठक में चर्चा की गई.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)