यूपी: ‘मैंने जो कहा उसके लिए सरकार मुझे जेल भेज दे, लेकिन स्कूल से दुश्मनी न निकाले’

23 मार्च को गोरखपुर के बांसगांव के भीमराव आंबेडकर पूर्व माध्यमिक विद्यालय के प्रबंधक दीपक कुमार कन्नौजिया ने एक वीडियो में कोरोना के मद्देनज़र स्कूल बंद करने के चलते होने वाली परेशानियों का हवाला देते हुए सरकार के निर्णय पर सवाल उठाए थे. अब इसी वीडियो के चलते उनके स्कूल की मान्यता रद्द की जा रही है.

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दीपक कुमार कन्नौजिया. (फोटो स्पेशल अरेंजमेंट)

23 मार्च को गोरखपुर के बांसगांव के भीमराव आंबेडकर पूर्व माध्यमिक विद्यालय के प्रबंधक दीपक कुमार कन्नौजिया ने एक वीडियो में कोरोना के मद्देनज़र स्कूल बंद करने के चलते होने वाली परेशानियों का हवाला देते हुए सरकार के निर्णय पर सवाल उठाए थे. अब इसी वीडियो के चलते उनके स्कूल की मान्यता रद्द की जा रही है.

दीपक कुमार कन्नौजिया. (फोटो स्पेशल अरेंजमेंट)
दीपक कुमार कन्नौजिया. (फोटो स्पेशल अरेंजमेंट)

गोरखपुर: कोरोना नियंत्रण को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के दोहरे मापदंड पर सवाल उठाने वाले एक स्कूल के युवा प्रबंधक पर सरकार-प्रशासन खफा हो गया है. बेसिक शिक्षा विभाग ने स्कूल की मान्यता रद्द करने की कार्यवाही शुरू कर दी है तो पुलिस प्रबंधक को पकड़ने के लिए उसके घर पर चार बार छापा मार चुकी है.

गोरखपुर के बासगांव क्षेत्र के कोटिया मान सिंह गांव में स्थित डाॅ. भीमराव आंबेडकर पूर्व माध्यमिक विद्यालय के प्रबंधक दीपक कुमार कन्नौजिया का 23 मार्च को एक वीडियो वायरल हुआ था.

इस वीडियो में वह अपने विद्यालय के छात्र-छात्राओं, शिक्षकों के बीच कह रहे हैं कि कोरोना के बढ़ते केस के नाम पर स्कूलों को एक बार फिर बंद करने का निर्णय तुगलकी है. इससे छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा है. निजी विद्यालयों शिक्षकों-कर्मचारियों के पेट पर लात मारा जा रहा है. वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सवाल करते हैं कि कोरोना के कहर के बीच गोरखपुर महोत्सव का आयोजन हुआ, खिचड़ी मेले का आयोजन हुआ, बिहार में चुनाव हुआ और अब हरिद्वार में कुंभ का आयोजन हो रहा है. क्या इन आयोजनों से कोरोना नहीं फैल रहा है?

दीपक वीडियो में कह रहे हैं, ‘पिछले वर्ष जब कोरोना के कारण स्कूल बंद हुए तो प्रबंधकों, शिक्षकों ने पूरा सहयोग किया और सरकार के इस निर्णय का विरोध नहीं किया. हालांकि निजी विद्यालयों का हालत इस बीच बहुत खराब हो गई. लीज पर भवन लेकर चल रहे स्कूल लगातार बंद हो रहे हैं. कोरोना को रोकने के लिए सरकार की नीयत ठीक नहीं है. जब उसे चुनाव, रैली करनी होती है तो कोरोना का कोई डर नहीं है लेकिन जब कोई विपक्ष खड़ा होता है तो कोरोना का डामा शुरू हो जाता है. सरकार यदि सही मन से कोरोना रोकना चाहती है तो वह स्कूल बंद करने के साथ-साथ कुंभ मेले का आयोजन निरस्त करे, चुनाव-रैली न करे. पहले वह खुद नियम का पालन करे तभी और लोग भी इसका पालन करेंगे.’

दीपक का यह वीडियो वायरल हो गया और इसके लोगों ने सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया. इस वीडियो को अब तक तीन लाख से अधिक लोग देख चुके हैं. इस वीडियो के वायरल होने के बाद सरकार के कई महकमे सक्रिय हो गए और दीपक कुमार कन्नौजिया की खोज होेने लगी.

पता चला कि दीपक बासगांव क्षेत्र के कोटिया मान सिंह में डा. भीमराव आंबेडकर पूर्व माध्यमिक विद्यालय संचालित करते हैं और वे इस स्कूल के प्रबंधक हैं.

यह जानकारी मिलने के बाद बेसिक शिक्षा विभाग ने कार्रवाई शुरू कर दी. बेसिक शिक्षा विभाग ने उनके विद्यालय की जांच के लिए अफसर भेजे. अफसरों की रिपोर्ट आने के बाद विद्यालय की मान्यता खत्म करने की कार्रवाई शुरू कर दी गई है.

जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी बीएन सिंह ने कहा कि विद्यालय की मान्यता रद्द करने की कारवाई शुरू की गई है. तय प्रक्रिया के मुताबिक कार्रवाई चल रही है.

यह पूछे जाने पर कि स्कूल की मान्यता रद करने की कार्रवाई किसी अनियमितता की वजह से हो रही है या उसके प्रबंधक दीपक कुमार कन्नौजिया द्वारा स्कूल बंद, कोरोना नियंत्रण के दोहरे मापदंड को लेकर उठाए गए सवाल पर हो रही है तो बीएसए ने स्पष्ट रूप से कहा कि मान्यता रद्द करने की कार्यवाही वायरल वीडियो के संदर्भ में ही हो रही है.

इस वीडियो के बाद पुलिस भी दीपक के पीछे पड़ गई है. पुलिस अब तक चार बार उनके घर जा चुकी है. दीपक कुमार का आरोप है कि उन्हें ढूंढने के नाम पर पुलिस उनके घर में घुस गई. वह डरकर भूमिगत हो गए हैं. उनके परिवार को डराया-धमकाया जा रहा है.

दीपक के खिलाफ अभी तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं है फिर भी पुलिस उनके घर लगातार दबिश दे रही है. दीपक कुमार ने अपना मोबाइल बंद कर रखा है.

एक दोस्त के जरिये उनसे हुई बातचीत में दीपक कुमार ने कहा कि वीडियो में उन्होंने छात्र-छात्राओं की पढ़ाई के हो रहे नुकसान को लेकर अपनी पीड़ा व्यक्त की है. उन्होंने कोई गलत बात नहीं की है. देश का संविधान अभिव्यक्ति की आजादी देता है. इस अधिकार के तहत ही उन्होंने अपनी बात रखी है.

वे कहते हैं, ‘मैंने किसी को अपशब्द नहीं कहा है न हिंसा की कोई बात की है. मैने सिर्फ सरकार के विद्यालयों के बांद करने के निर्णय पर सवाल उठाए हैं, कोरोना काल में निजी विद्यालयों में काम करने वाले शिक्षकों-कर्मचारियों की पीड़ा बयां की है और कहा है कि इसके विरोध में आंदोलन भी कर सकता हूं. मेरी सभी बातें संविधान के दायरे में हैं लेकिन मीडिया के एक वर्ग द्वारा मुझे देशद्रोही के बतौर पेश किया जा रहा है और मेरे खिलाफ केस दर्ज कराने की बात की जा रही है.’

उन्होंने बताया कि उनके पिता बीमार है. घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं. पुलिस के बार-बार घर जाने से सभी लोग दहशत में हैं.

वे कहते हैं कि यदि सरकार और प्रशासन उन्हें वीडियो में कही गई बात के लिए उन्हें दोषी मानती है तो उन्हें जेल भेज दे. वह जेल जाने को तैयार हैं, लेकिन परिवार के लोगों को क्यों परेशान किया जा रहा है, विद्यालय की मान्यता क्यों निरस्त की जा रही है?

दीपक कुमार ने एमए और बीएड की पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 2014 में बाबा साहब आंबेडकर के विचारों से प्रेरित होकर अपने गांव में इस विद्यालय को शुरू किया था और और इसे उन्हीं का नाम दिया था. एक वर्ष बाद उनके विद्यालय को मान्यता मिली.

इस स्कूल में एक से आठ तक पढ़ाई होती है, जहां 800 बच्चे पढ़ते हैं. दीपक कुमार के अनुसार उनके स्कूल में गरीब घरों के बच्चे पढ़ते हैं, जहां 150 बच्चों की पढ़ाई का सारा खर्च वे खुद उठाते हैं क्योंकि इन बच्चों के अभिभावक बहुत गरीब हैं और किसी तरह दो जून की रोटी जुटा पाते हैं.

स्कूल में 20 ऐसे बच्चे पढ़ते हैं जिनके पिता नहीं हैं. उनकी पढ़ाई का खर्च भी स्कूल प्रबंधन द्वारा ही वहन किया जाता है. स्कूल में 16 कंप्यूटर लगाकर एक छोटी लैब भी स्थापित की गई है जिसमें निशुल्क कंप्यूटर शिक्षा दी जाती है.

अगर बच्चे किसी कारण से पढ़ाई छोड़ देते हैं, उनके लिए दीपक खुद अभिभावकों से मिलते हैं और हर तरह की सहायता कर वापस स्कूल में लाते हैं. दीपक गुरुकुल पॉइंट नाम से एक यू ट्यूब चैनल भी चलते हैं जिसमें वे गणित, इतिहास सहित कई विषय पढ़ाते हैं.

कोरोना काल में एक वर्ष तक स्कूलों की बंदी रही, तब दीपक कुमार के स्कूल की भी हालत खराब हो गई. स्कूल की वार्षिक परीक्षा के समय ही अभिभावक फीस जमा करते हैं. इसी पैसे से शिक्षकों को वेतन दे दिया जाता है.

पिछले वर्ष वार्षिक परीक्षा के समय ही लाॅकडाउन लगा दिया गया और विद्यालय बंद हो गए. उन्होंने बताया, ‘उस समय विद्यालय के शिक्षकों को करीब तीन महीने का वेतन बकाया था. शिक्षकों ने हमारे ऊपर दबाव नहीं बनाया लेकिन जब विद्यालय बंदी लंबी खिंचने लगी और उनके आर्थिक हालात बिगड़ने लगे तो उनसे भी रहा नहीं गया.’

दीपक कहते हैं कि उन्होंने अपनी सोने की दो चेन और पत्नी के कुछ गहने बेचकर शिक्षकों को ढाई लाख रुपये वेतन के मद में दिया. इस बार जब फिर स्कूलों को बंद करने का आदेश आया तो उन्हें  लगा कि पिछले वर्ष जैसे हालात फिर बनने लगे हैं.

उन्होंने आगे बताया, ‘मजबूरी में दो शिक्षक स्कूल छोड़ कर चले गए. स्कूल के प्रिसिंपल के आर्थिक हालात इस कदर खराब हो गए कि वे दिल्ली चले गए और एक कारखाने में मजदूरी कर रहे हैं. कोरोना काल में 193 निजी विद्यालयों ने अपनी मान्यता निरस्त करा ली क्योंकि वे स्कूल चला पाने में असमर्थ हो गए. ये सभी प्रबंधक 40 से 50 हजार रुपये किराये पर भवन लेकर स्कूल संचालित कर रहे थे. भवन का किराया और शिक्षकों का वेतन नहीं दे पाने के कारण ये सभी स्कूल हमेशा के लिए बंद हो गए.’

दीपक कहते हैं, ‘स्कूलों के बंद होने का सीधा प्रभाव गरीब परिवार के बच्चों की पढ़ाई पर पड़ रहा है. मैंने यही पीड़ा वीडियो में व्यक्त की थी. भूख और रोजगार की पीड़ा ने मुझे यह सब कहलवाया. यह पीड़ा सभी के दिल में है लेकिन कह नहीं पा रहे हैं. मैने यह बात कह दी जिसकी मुझे सजा मिल रही है. विद्यालय की मान्यता निरस्त करने के लिए कमेटी बैठा दी गई है और हमारा पक्ष भी नहीं लिया जा रहा है. जबसे मैंने सुना है कि विद्यालय की मान्यता रद्द की जा रही है, मै बेहद निराशा में डूबा हूं. यह विद्यालय मेरा सपना है. सरकार मुझे जेल भेज दे, मगर विद्यालय से दुश्मनी न निकाले.’

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)