बीते छह मार्च को जम्मू शहर में सत्यापन अभियान के दौरान क़रीब 168 रोहिंग्या मुसलमानों को अवैध रूप से रहते हुए पाए जाने पर उन्हें कठुआ जिले के एक विशेष केंद्र में भेज दिया गया था. आंकड़ों के अनुसार, जम्मू और सांबा ज़िलों में रोहिंग्या मुसलमानों एवं बांग्लादेशियों समेत 13,700 से अधिक विदेशी बसे हुए हैं और उनकी जनसंख्या में 2008 से 2015 के बीच छह हज़ार से अधिक की वृद्धि हुई.
जम्मू: जम्मू कश्मीर में इस माह के प्रारंभ में अवैध आव्रजकों के विरूद्ध चलाए गए विशेष अभियान में हिरासत में लिए गए 150 से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को वापस उनके देश भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. एक सरकारी प्रवक्ता ने बुधवार को यह जानकारी दी.
प्रवक्ता ने बताया कि ये लोग कठुआ जिले के एक विशेष केंद्र में रखे गए हैं, जहां उन्हें सभी जरूरी सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं.
उन्होंने कहा कि जम्मू के संभागीय आयुक्त राघव लांगेर बुधवार को हीरानगर में स्थित इस केंद्र में गए और उन्होंने वहां लोगों को उपलब्ध कराई जा रही सुविधाओं पर संतुष्टि प्रकट की.
बीते छह मार्च को जम्मू शहर में सत्यापन अभियान के दौरान करीब 168 रोहिंग्याओं को अवैध रूप से रहते हुए पाए जाने पर उन्हें इस केंद्र में भेज दिया गया था.
रोहिंग्या म्यांमार के बंगाली भाषी मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं. उनमें से कई अपने देश में हिंसा के बाद भागकर भारत आ गए थे.
जम्मू में कई राजनीतिक दलों एवं सामाजिक संगठनों ने केंद्र से रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों को वापस भेजने के वास्ते कदम उठाने की अपील की है जो अवैध रूप से इस क्षेत्र में रह रहे हैं.
इन दलों एवं संगठनों का आरोप है कि उनकी मौजूदगी ‘जनसांख्यिकी चरित्र को बदलने की साजिश’ एवं ‘शांति के लिए खतरा’ है.
सरकारी आंकड़े के अनुसार जम्मू कश्मीर के जम्मू और सांबा जिलों में रोहिंग्या मुसलमानों एवं बांग्लादेशियों समेत 13,700 से अधिक विदेशी बसे हुए हैं और उनकी जनसंख्या में 2008 से 2015 के बीच 6,000 से अधिक वृद्धि हुई.
अमर उजाला के मुताबिक, बीते 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में जम्मू के शिविरों में रखे गए 150 से अधिक रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार भेजने से रोक लगाने की मांग वाली याचिका का विरोध करते हुए केंद्र सरकार ने कहा था कि भारत अवैध घुसपैठियों की राजधानी नहीं बन सकता. रोहिंग्या राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा हैं.
याचिकाकर्ता मोहम्मद सलीमुल्लाह समेत रोहिंग्याओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि हिरासत में रखे रोहिंग्या लोगों को रिहा कर भारत में ही रहने दिया जाए. भारत में रह रहे सभी रोहिंग्याओं को शरणार्थी का दर्जा दिया जाए. इस बात के कोई सबूत नहीं है कि रोहिंग्या लोग भारत की सुरक्षा को खतरा पहुंचा रहे हैं.
दो महीने पहले केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा था कि जम्मू कश्मीर के रोहिंग्या मुसलमानों को निर्वासित कर दिया जाएगा, क्योंकि वे नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के तहत योग्य नहीं हैं और वे किसी भी तरह से अपनी नागरिकता सुरक्षित नहीं रख पाएंगे.
हालांकि, अधिकांश रोहिंग्या शरणार्थियों के पास संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त द्वारा जारी किए गए कार्ड हैं, जो उन्हें शरणार्थियों के रूप में उनकी स्थिति को स्वीकार करते हैं और उन्हें कुछ सुरक्षा प्रदान करते हैं.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)